लेख
07-Aug-2025
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उत्तराखंड का धराली बाजार बादल फटने से एक बार फिर तबाह हो गया। इससे पहले तीन बार 1864, 2013 और 2014 में भी यहां बादल फटे थे और तबाही आई थी। हालांकि समय के साथ धराली बार-बार उठ खड़ा हुआ है। हो सकता है फिर से उठ खड़ा हो जाए। गंगोत्री धाम से करीब 18 किलोमीटर पहले बसा उत्तरकाशी जिले का धराली पहले गांव था, फिर कस्बा बना और अब बाजार बनकर गुलजार हो रहा था। वहां 25 से ज्यादा होटल और होम स्टे बन गए थे। कई सारे रेस्टोरेंट और दुकानें खुल गई थीं। गंगोत्री धाम जानेवाले पर्यटक यहां ठहरते और रात्रि विश्राम किया करते थे। गंगोत्री धाम जानेवालों के लिए धराली आखिरी पड़ाव होता है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल गंगोत्री धाम में 6 लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन किये थे। इस साल का आंकड़ा अभी सामने नहीं आया है। धराली की आबादी करीब एक हजार थी। मंगलवार दोपहर तक धराली के बाजार में चहल-पहल थी। बारिश के बावजूद मौसम सुहावना था। इस बीच, दोपहर करीब 1.15 बजे धराली के ऊपरी इलाके में बादल फटने से पहाड़ का मलबा महज 34 सेकेंड में धराली के बीचोंबीच बहनेवाली खीर नदी के रास्ते सब कुछ समेट ले गया। लगभग पूरा बाजार, 22 घर, कई होटल और होम स्टे जमींदोज हो गए। धराली में जो इक्का-दुक्का घर बचे भी हैं, उसमें करीब 8 फीट मलबा भरा हुआ है। जानमाल के नुकसान का पूरा ब्यौरा रिपोर्ट लिखे जाने तक नहीं मिल सका है। हादसे के दूसरे दिन शाम तक बचाव दल ने 400 से ज्यादा लोगों के रेस्क्यू करने का दावा किया है। उधर, प्रशासन ने 5 लोगों के मरने की पुष्टि की है, जिनमें एक का शव बरामद किया गया है। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी और सेना के जवान राहत और बचाव कार्य में हादसे के बाद से ही जुटे हुए हैं। हालांकि उत्तराखंड में लगातार हो रही मूसलाधार बारिश बचाव दल का रास्ता रोक रही है। इधर, केरल के 28 सदस्यीय टूरिस्टों का दस्ता धराली हादसे के बाद से लापता बताया जाता है। उनके पारिवारिक सदस्यों ने मीडिया को बताया कि सभी लोग मंगलवार की सुबह धराली में थे और गंगोत्री धाम जाने की तैयारी कर रहे थे। अब हादसे के बाद उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है। धराली स्थित प्राचीन कल्प केदार मंदिर भी मलबे में दफन हो गया है। बताया जाता है कि कल्प केदार मंदिर 1500 साल से ज्यादा पुराना है। उत्तरकाशी के लिए मंगलवार का दिन कुछ ज्यादा ही मनहूस रहा। वहां महज ढाई घंटे के भीतर धराली के अलावा हर्षिल और सुक्खी टॉप के पास भी बादल फटने की घटनाएं हुईं। हर्षिल में भारतीय सेना का बेस कैंप है। एनडीआरएफ के डीआईजी के मुताबिक हादसे के बाद सेना के 11 जवान भी लापता हैं। उन्हें ढूंढने का अभियान जारी है। प्रशासन ने अभी तक सिर्फ धराली और हर्षिल हादसे का आधा-अधूरा ब्यौरा दिया है। सुक्खी टॉप में बर्बादी की जानकारी दूसरे दिन तक नहीं मिल पायी है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बात की है। उन्होंने हर संभव मदद का भरोसा दिया है। हादसे के दूसरे दिन मुख्यमंत्री ने प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया है। वह राज्य के आपदा प्रबंधन के लोगों और सरकारी अधिकारियों के साथ लगातार संपर्क में हैं। लेकिन प्रकृति जब कोप में होती है तो आदमी बेबस हो जाता है। वरिष्ठ भू वैज्ञानिक प्रो. एसपी सती कहते हैं कि ‘धराली ट्रांस हिमालय में मौजूद मेन सेंट्रल थर्स्ट में है। यह एक दरार होती है जो मुख्य हिमालय को ट्रांस हिमालय से जोड़ती है। यह इलाका भूकंप का अति संवेदनशील जोन भी है। जिस पहाड़ से खीर गंगा नदी आती है, वह 6 हजार मीटर ऊंचा है। जब भी वहां से सैलाब आता है, धराली को तहस-नहस कर देता है।‘ उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ पीयूष रौतेला की मानें तो 2014 की आपदा के बाद भू वैज्ञानिकों ने सरकार से धराली को कहीं और बसाने को कहा था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि धराली टाइम बम पर बैठा है। यही नहीं, उत्तराखंड में सैकड़ों गांव नदियों के कछार में बसे हुए हैं। हर साल बरसात में उन गांवों का संपर्क कट जाता है। भू वैज्ञानिकों की रिपोर्ट सरकारी फाइलों में धूल फांकती रहती है और सरकार सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनी रहती है। सरकार का पूरा जोर पर्यटकों से कमाई पर केंद्रित रहता है। इसके अलावा समूचे उत्तराखंड में सड़क निर्माण, सुरंग और हाइड्रो प्रोजेक्ट के नाम पर काम सालों साल चलता रहता है। जंगल काटे जा रहे हैं। डायनामाईट से पहाड़ तोड़े जा रहे हैं। इससे पहाड़ों की मजबूती कम होती जा रही है। विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन का अभाव होते जा रहा है। पहाड़ों के बीच कई स्थानों पर झील बने हुए हैं। अगर, सरकार भू वैज्ञानिकों की सलाह को नजरअंदाज करती रहेगी तो आनेवाले दिनों में मानव और वन्यजीवों के लिए खतरा बड़ा होता जाएगा। बेशक, विकास जरूरी है लेकिन जान-माल की हानि की कीमत पर होने वाले विकास को कत्तई उचित नहीं कहा जा सकता है। ईएमएस/07/08/2025