मनोरंजन
08-Aug-2025
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मुंबई (ईएमएस)। उम्र बढ़ना अभिनेत्रियों के लिए कोई रुकावट नहीं, बल्कि एक समृद्ध अनुभव होता है जो उनके अभिनय को गहराई देता है। यह कहना है अभिनेत्री ईशा कोप्पिकर का। अभिनेत्री के अनुसार, जीवन में मिलने वाले अनुभव और समझ किसी भी कलाकार की सबसे बड़ी ताकत बन सकते हैं, खासकर महिलाओं के लिए जो अभिनय में भावनात्मक गहराई को संजीदगी से पेश कर सकती हैं। ईशा कोप्पिकर ने फिल्म ‘सांड की आंख’ का उदाहरण देते हुए यह सवाल उठाया कि आखिर 50-60 साल की महिलाओं के किरदार के लिए कम उम्र की अभिनेत्रियों को क्यों लिया जाता है, जबकि अनुभवी और प्रतिभाशाली वरिष्ठ कलाकारों को नज़रअंदाज़ किया जाता है। नीना गुप्ता द्वारा उठाए गए इसी सवाल का हवाला देते हुए ईशा ने कहा कि असली प्रतिनिधित्व तभी होगा जब हर उम्र की महिलाएं पर्दे पर दिखेंगी। ईशा का मानना है कि सिनेमा को समाज का प्रतिबिंब होना चाहिए और जब फिल्मों में हर उम्र के किरदारों को सही रूप में जगह मिलेगी, तभी दर्शकों को वास्तविक और भावनात्मक रूप से जुड़ने वाली कहानियां देखने को मिलेंगी। उनका कहना है कि उम्र के साथ भावनात्मक समझ विकसित होती है, जो किसी भी किरदार को अधिक वास्तविक और सशक्त बना सकती है। हाल के वर्षों में फिल्म इंडस्ट्री में आए बदलावों को लेकर ईशा आशावादी हैं। उनके अनुसार अब ऐसी फिल्में बनने लगी हैं जो उम्रदराज महिलाओं को भी मुख्य भूमिका में दिखाती हैं और उनकी कहानियों को सशक्त ढंग से प्रस्तुत करती हैं। साथ ही, हर वर्ग और उम्र के लोगों को मंच देने की दिशा में भी इंडस्ट्री में सकारात्मक प्रयास हो रहे हैं। ईशा कोप्पिकर इस बदलाव को उत्साहजनक मानती हैं और कहती हैं कि उम्र को कोई सीमा नहीं, बल्कि एक ऐसी पूंजी के रूप में देखा जाना चाहिए जो कलाकार की प्रतिभा को निखारती है। सुदामा/ईएमएस 08 अगस्त 2025