कुलगुरू प्रो. अर्पण भारद्वाज ने घोषणा की कि विश्वविद्यालय में जल्द ही मलयालम भाषा शिक्षण का केंद्र स्थापित किया जाएगा उज्जैन (ईएमएस)। स्वतंत्रता दिवस के आयोजन की पूर्व संध्या पर विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन का परिसर लघु भारत बनकर देश की विभिन्न 22 भाषाओं और अनेक बोलियों के देशभक्ति काव्यपाठ की रचनाओं से 6 घंटे तक गूंजता रहा,इस अवसर पर कुलगुरू प्रो अर्पण भारद्वाज ने घोषणा की कि विश्वविद्यालय में जल्द ही मलयालम भाषा शिक्षण का केंद्र स्थापित किया जाएगा।स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर विक्रम विश्वविद्यालय का सुमन मानविकी भवन एक अद्भुत सांस्कृतिक संगम का साक्षी बना, जब यहाँ संस्कृत, वेद एवं ज्योतिर्विज्ञान अध्ययनशाला और भारतीय भाषा प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वावधान में “स्वतंत्रता का संघर्ष, भारत के शस्त्र” एवं “भारतीय भाषा भाषियों का रचना पाठ” कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस अवसर पर देश के विभिन्न राज्यों से जुड़ी 22 भाषाओं और अनेक बोलियों में कविताएँ, गीत और लोक प्रस्तुतियाँ हुईं, जिनमें राष्ट्रीय भावना और मातृभूमि के प्रति प्रेम स्पष्ट झलक रहा था। कार्यक्रम की शुरुआत विविध भाषाओं की गूँज के साथ हुई जिसमें मलयालम, तेलुगु, कन्नड़, मराठी, गुजराती, सिंधी, बांग्ला, उर्दू, निमाड़ी, मालवी, अरुणाचली, संस्कृत और हिंदी सहित 22 भाषाओं के कवियों और विद्यार्थियों ने मंच संभाला। हर प्रस्तुति के साथ सभागार में कभी देशभक्ति का जोश उमड़ता, तो कभी श्रोताओं की आँखें नम हो जातीं। इस अनूठे आयोजन का उद्देश्य केवल साहित्यिक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि “भाषा के माध्यम से एकता” का संदेश देना था। जैसा कि आयोजकों ने बताया “सर्वभाषा संभव है” का नारा केवल भाषाई विविधता को सम्मान देने का नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक अखंडता को मजबूती देने का प्रतीक है। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत राष्ट्रकवि श्री कृष्ण सरल की प्रसिद्ध पंक्तियों— “मैं अमर शहीदों का चारण, उनके गुण गाया करता हूँ, जो कर्ज राष्ट्र ने खाया है, मैं उसे चुकाया करता हूँ।”के काव्यपाठ से की। कुलगुरू प्रो. भारद्वाज ने कहा कि आज जब मैं विक्रम विश्वविद्यालय के मंच पर अलग-अलग भाषाओं में रचनाएँ सुनता हूँ, तो यह परिसर मुझे एक लघु भारत जैसा प्रतीत होता है। हर विद्यार्थी अपनी मातृभाषा के साथ अपने गांव और अपने घर की याद लेकर आया है। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और राष्ट्रभक्ति की भावना को प्रबल करता है। कुलगुरू प्रो. भारद्वाज ने यह भी घोषणा की कि विश्वविद्यालय में जल्द ही मलयालम भाषा शिक्षण का केंद्र स्थापित होने वाला है। यह निर्णय माननीय शिक्षा मंत्री के आदेशानुसार लिया गया है, जिसमें मध्य प्रदेश के प्रत्येक विश्वविद्यालय में प्रांत के अलावा एक अन्य भाषा के शिक्षण की व्यवस्था शुरू की जाएगी। विक्रम विश्वविद्यालय इसी योजना के तहत मलयालम भाषा का केंद्र स्थापित करेगा। भारतीय भाषा प्रकोष्ठ की समन्वयक तथा विक्रम विश्वविद्यालय की कला संकायाध्यक्ष प्रो. गीता नायक ने कहा कि हमें देश के प्रति सक्रिय और जागरूक रहना होगा। भाषा हमें जगाने का कार्य करती है। आज भाषाओं के अनेक रूप हैं, परंतु देश के प्रति सम्मान की भावना हर दिल में समान होनी चाहिए। उन्होंने प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता “किसको नमन करूँ मैं भारत” का पाठ किया और कहा कि भारत की आजादी की लड़ाई हर भाषा, हर बोली और हर समुदाय ने मिलकर लड़ी है। विभिन्न भाषाओं व बोलियों में काव्य और गीत मंच पर प्रस्तुति देने वालों में लोकेश निर्भय (हिंदी), बल्लू चौइथानी (सिंधी), मिलन पंड्या (गुजराती), अयप्पा स्वामी (केरल), विष्णु प्रसाद शर्मा (संस्कृत), राकेश जी (सिंधी), सुचित्रा पंडित (मराठी), अंजू सिंह (हिंदी), साईं सिखा नायडू (तेलुगु – भारत हमको जान से प्यारा है गीत), कैमर लिपिर (अरुणाचल प्रदेश), अलमीर पॉल (मलयालम), पारस बिरला (निमाड़ी – लोकगीत), कृतिक महावर (उर्दू), तानिया बिस्वास (बांग्ला), अर्पित फुल्के (मराठी), राम ब्रज (मालवी) और मिती शर्मा (मालवी) शामिल रहे।हर प्रस्तुति के बाद सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता। विशेष रूप से अरुणाचली और मलयालम भाषाओं की रचनाओं को सुनकर दर्शकों में उत्सुकता और सराहना दोनों देखने को मिली।संस्कृत, वेद एवं ज्योतिर्विज्ञान अध्ययनशाला के अध्यक्ष प्रो. बी.के. आंजना ने आभार व्यक्त किया। उन्होंने आयोजन की सफलता का श्रेय सभी सहयोगियों, प्रतिभागियों और विश्वविद्यालय प्रशासन को दिया। कार्यक्रम का संचालन गोपाल गर्वित ने सहज और ऊर्जावान अंदाज़ में किया। समापन अवसर पर सभी भाषाओं के कवियों और कलाकारों का कुलगुरु एवं अतिथियों द्वारा सम्मान किया गया।यह आयोजन केवल एक साहित्यिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत की भाषाई विविधता और सांस्कृतिक एकजुटता का सजीव उदाहरण बन गया। विक्रम विश्वविद्यालय ने इस बहुभाषी काव्यपाठ के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने का सेतु भी है। ईएमएस / 14 अगस्त 2025