लेख
16-Aug-2025
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भारत ने वैश्विक ऊर्जा व्यापार में हलचल मचा दी है। चार साल बाद पहली बार भारत ने चीन को डीज़ल की खेप भेजी है। यह सिर्फ़ एक व्यापारिक सौदा नहीं बल्कि पश्चिमी दबाव के ख़िलाफ़ भारत की रणनीतिक हुंकार है। नैयारा एनर्जी की रूसी समर्थन वाली रिफाइनरी से निकला यह डीज़ल उस समय चीन पहुँचा, जब पश्चिमी देश रूस की ऊर्जा आपूर्ति पर शिकंजा कसने के लिए नए प्रतिबंध और भारी टैरिफ़ थोप रहे थे। मगर पीछे हटने के बजाय भारत ने रास्ता बदला, पश्चिम की दादागिरी को चुनौती दी और नए भू-राजनीतिक नियम लिखने शुरू कर दिए। :: दबाव को अवसर में बदला :: रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत ने मौके को भुनाया। सस्ती कीमतों पर रूसी कच्चा तेल खरीदकर अर्थव्यवस्था को सहारा दिया और विकास को गति दी। केवल वित्तीय वर्ष 2024-25 में ही भारत ने 50.3 अरब डॉलर का रूसी तेल खरीदा, जो उसकी कुल आयात बिल का 35% था। इस तरह भारत, चीन के बाद रूस का दूसरा सबसे बड़ा ग्राहक बन गया। नैयारा एनर्जी और रिलायंस जैसी घरेलू रिफाइनरियों ने इस कच्चे तेल को परिष्कृत कर यूरोप तक सप्लाई किया। 2024 के अंत तक भारत, यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा रिफाइंड रूसी क्रूड सप्लायर बन चुका था। लेकिन 18 जुलाई 2025 को तस्वीर बदल गई। यूरोपीय संघ ने 18वां प्रतिबंध पैकेज लागू कर तीसरे देशों से आने वाले रिफाइंड उत्पादों पर रोक लगा दी। इसी बीच, अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 25% तक टैरिफ़ लगते हुए नैयारा एनर्जी पर सीधी सज़ा थोप दी। अचानक भारत की 1.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन रूसी क्रूड तक पहुँच ख़तरे में पड़ गई। :: चीन से जुड़ाव : पश्चिमी वर्चस्व पर प्रहार :: नैयारा की 4,96,000 बैरल की डीज़ल खेप जब वडिनार से मलेशिया के लिए रवाना हुई, तब किसी ने नहीं सोचा था कि उसका रास्ता बदलकर चीन के झोउशान पोर्ट पहुँच जाएगा। यूरोपीय प्रतिबंधों ने भारत को मजबूर किया कि वह एशिया की ओर देखे। और भारत को चीन में सिर्फ़ एक ग्राहक नहीं, बल्कि समान दबावों से जूझता एक साझेदार मिल गया। 2024 में चीन ने 20 लाख बैरल प्रतिदिन से अधिक रूसी क्रूड आयात किया था। अब भारत से आया यह डीज़ल एशिया में नए ऊर्जा गलियारों के उभरने का संकेत है, जो पश्चिम के पकड़ को हिला रहा है। :: यथास्थिति को चुनौती :: भारत पश्चिमी देशों के इन कदमों को दोहरे मापदंड मानता है - यूरोप अब भी रूसी एलएनजी आयात करता है, जबकि भारतीय रिफाइनरियों पर पाबंदियाँ लगाई जा रही हैं। अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 100% टैरिफ़ की धमकी से 81 अरब डॉलर का वार्षिक व्यापार दांव पर लग सकता है और क्वाड जैसे गठबंधनों पर असर पड़ सकता है। भारत और चीन, दशकों की प्रतिद्वंद्विता के बावजूद, व्यावहारिक सहयोग सीख चुके हैं। आज प्रतिबंधों की आंधी में ऊर्जा व्यापार एक पुल की तरह काम कर रहा है। रूस का क्रूड और भारत की रिफाइनिंग क्षमता चीन की ऊर्जा भूख से मेल खा रही है, भले ही सीमाई तनाव और अविश्वास अभी बाकी हैं।पश्चिमी देशों की रूस को अलग-थलग करने की कोशिशों ने नए रास्ते खोल दिए हैं - ‘शैडो टैंकर’ रूसी तेल को रिब्रांड कर दुनिया भर में ले जा रहे हैं। यह सब प्रतिबंधों की सीमाओं की कमियों को उजागर करता है और गैर-पश्चिमी देशों को अपने स्वयं के फैसले लेने का साहस देता है। :: नया विश्व क्रम - पर गठबंधन नहीं :: भारत का चीन को डीज़ल निर्यात “रूस-भारत-चीन गठबंधन” की अटकलों को भले जन्म दे सकता है, लेकिन सच्चाई इससे कहीं अधिक जटिल है। भारत की रणनीतिक स्वायत्तता ही उसका मार्गदर्शन करती है। विश्व के देशों के बीच बदलते समीकरण ने यह बता दिया है कि किसी भी देश का किसी भी देश के साथ कोई स्थायी गठबंधन नहीं होता, सिर्फ़ अवसरवादी साझेदारियाँ होती हैं। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के संबंध मजबूत बने हुए हैं, जबकि रूस और चीन से ऊर्जा संबंध उसे लचीलापन देते हैं। :: आगे की राह :: भारत के सामने दो रास्ते हैं - पश्चिमी दबाव के आगे झुककर आर्थिक व्यवधान झेलना या फिर रूस और चीन के साथ ऊर्जा गठजोड़ की कीमत चुकाने का जोखिम उठाना। इसी बीच, भारत ने तेल आयात को 40 देशों तक फैला दिया है और घरेलू ऊर्जा नवाचार व नवीकरणीय निवेश पर जोर बढ़ा दिया है। चीन को डीज़ल की यह पहली खेप महज़ एक व्यापारिक सौदा नहीं है - यह भारत की घोषणा है कि उसे पश्चिमी प्रतिबंधों के घेरे में नहीं बाँधा जा सकता। बदलती हुई दुनिया में भारत अपने भविष्य की इबारत खुद लिख रहा है। भारत से चीन पहुँची यह डीज़ल खेप इस सदी का संकेत है - पश्चिम का ऊर्जा और शक्ति पर एकाधिकार टूट रहा है। वैश्विक शतरंज अब बहुध्रुवीयता की ओर झुक रही है, और भारत अपनी स्वतंत्रता और ताक़त का दावा पेश कर रहा है। पश्चिम देख सकता है, लेकिन अगली चाल भारत ही चलेगा। (लेखक इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं) ईएमएस/16 अगस्त 2025