उत्तरकाशी आपदा से जूझ रहे उत्तराखंड में जब मलबे में दबे लोगो की जिंदगी तलाशने की जंग जारी थी,उसी समय देवभूमि के कुछ सांसद कुर्सी की चाहत में प्रधानमंत्री से मिलने पहुंच गए।यूं तो कई बार विपक्ष के बजाए सत्ता पक्ष के ही कुछ लोगो ने मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अनेक मामलों में शिकायत कर उन्हें सत्ता से बेदखल करने का असफल प्रयास किया है,लेकिन इस बार तो हद ही हो गई राज्य प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा था।भारतीय सेना ,एनडीआरएफ के जवानों व प्रदेश के मुखिया ने प्रलय स्थल पर जाकर मलबे में दबे लोगो को निकालकर उनमे जिंदगी खोजने का काम किया है तो करीब एक हजार लोगों को रेस्क्यू कर उनकी जान भी बचाई है। उत्तराखंड में आई इस भयावह प्राकृतिक आपदा के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने पहुंचे सांसदों को प्रधानमंत्री ने साफ और सख्त संदेश दिया है कि यह समय एकजुट होकर उत्तराखंड को बचाने का है। दिल्ली में उनसे मिलने पहुंचे सांसदों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो टूक कहा, “उत्तराखंड में संकट की घड़ी है। आप सभी तत्काल धराली और हर्षिल जैसे प्रभावित क्षेत्रों में जाएं और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का सहयोग करें।”प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार उत्तराखंड की स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए है। राज्य को हर आवश्यक सुविधा और सहायता तत्काल उपलब्ध कराई जा रही है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री धामी खुद मौके पर मौजूद हैं और राहत कार्यों की निगरानी कर रहे हैं। साथ ही वे लगातार प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्र सरकार के संपर्क में हैं। मोदी ने सांसदों से अपेक्षा जताई कि सिर्फ बैठकें या औपचारिकता नहीं, अब ज़मीनी स्तर पर मदद की ज़रूरत है। प्रधानमंत्री के इस निर्देश से उन राजनीतिक लोगो को कड़ा संदेश गया है जो इस आपदा की घड़ी में केवल राजनीति करने तक सीमित बने हुए है।ऐसे राजनेता ओ को उन्होंने साफ कहा कि जनता के बीच जाकर राहत व पुनर्वास कार्यों में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं।प्रधानमंत्री की इस सख्ती को लेकर राजनीतिक हलकों में इन दिनों चर्चा तेज है ।वही उत्तराखंड धराली आपदा रेस्क्यू ऑपरेशन अभी भी जारी है।उत्तराखंड सरकार ने आपदा पीड़ितों के लिए सहायता राशि का ऐलान किया।धराली आपदा में जीवन खोने वाले लोगों के परिजनों को 5-5 लाख रुपए का मुआवजा दिया जायेगा।जिन लोगों ने अपने मकान गंवाए हैं, उन्हें भी 5-5 लाख रुपए की त्वरित सहायता राशि दी जाएगी। इसके साथ ही पंजाब नेशनल बैंक ने आपदा प्रभावितों के लिए 1 करोड़ रुपए की धनराशि प्रदान की है। इस विनाशकारी आपदा ने कई जिंदगियां को छीन लिया है, वहीं लापता लोगों की तलाश में रेस्क्यू टीमें जुटी हुई हैं। सेना और आईटीबीपी के साथ एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय पुलिस रेस्क्यू कार्य में दिन रात मेहनत कर रही है।भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्स के 125 जवान, घातक टीम के 10 जवान, स्पेशल फोर्स के 30 जवान और बीईजी रुड़की के 250 जवान मलबे व कीचड़ के बीच लोगों को खोज रहे हैं।इसके अलावा सेना के 75 जवान और 7 खोजी कुत्ते मलबे में दबे लोगों का पता लगाने में जुटे हैं। इतना ही नहीं आईटीबीपी के 113 जवान पैदल मार्गों से प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचकर राहत कार्य कर रहे हैं। भीषण प्राकृतिक आपदा के कारण प्रभावित क्षेत्र में ठप्प हुई बिजली आपूर्ति को बहाल कर दिया गया है। लगातार भारी वर्षा, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं से बिजली के पोल, तार, ट्रांसफार्मर और उपसंस्थानों को गंभीर क्षति पहुंची है।सौर ऊर्जा तथा माइक्रो हाइड्रो ग्रिड से निरंतर क्षेत्र में बिजली आपूर्ति की जा रही है। राजभवन में मुख्यमंत्री धामी ने राज्यपाल से मुलाकात कर धराली और हर्षिल में चल रहे आपदा राहत कार्यों एवं प्रभावित लोगों के पुनर्वास के संबंध में उन्हें जानकारी दी।धराली में एसडीआरएफ की टीमें मलबे में दबे ध्वस्त भवनों में लगातार सर्चिंग कर रही है। लापता व्यक्तियों की तलाश के लिए आधुनिक उपकरणों और डॉग स्क्वाड की सहायता ली जा रही है. ड्रोन के माध्यम से प्रभावित क्षेत्र का निरीक्षण कर स्थितियों पर नजर रखी जा रही है।उत्तराखंड के स्वास्थ्य सचिव आर राजेश कुमार ने बताया कि भर्ती 15 मरीज़ों में से चार को छुट्टी दे दी गई है। उत्तरकाशी में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन पर उत्तराखंड के स्वास्थ्य सचिव आर. राजेश कुमार ने कहा, मैंने धराली में ग्राउंड ज़ीरो का दौरा किया और हमारे स्वास्थ्य विभाग ने शिविर स्थापित किए हैं. मैं उत्तरकाशी के ज़िला अस्पताल का भी दौरा करूँगा, जहाँ कुछ मरीज़ भर्ती हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशों के तहत, स्वास्थ्य विभाग, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और भारतीय सेना की टीमें एक साथ मिलकर काम कर रही हैं। धराली में करीब नौ डॉक्टर मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं। इसके अलावा, 28 एम्बुलेंस और बैकअप एम्बुलेंस तैनात की गई हैं।मुख्यमंत्री ने आपदा से प्रभावित ग्रामीणों के पुनर्वास, समग्र पुनरुद्धार और स्थायी आजीविका के सुदृढ़ीकरण हेतु तीन सदस्यीय समिति के गठन की घोषणा की है। यह समिति सचिव, राजस्व की अध्यक्षता में गठित की गई है, जो एक सप्ताह के भीतर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट शासन को प्रस्तुत करेगी।उत्तरकाशी के जिलाधिकारी प्रशांत आर्य ने बताया कि बचाव अभियान अभी जारी है,फंसे लोगों को एयरलिफ्ट किया जा रहा है।धराली में संपर्क मार्गों को दुरुस्त किया जा रहा है। आपदा प्रभावितों को राहत सामग्री वितरिक की जा रही है।गंगनाली में वैली ब्रिज का कार्य जारी है। धराली में जलविद्युत परियोजना से विद्युत व्यवस्था बहाल कर दी गई है। अभी तक कुल 931 लोगों का रेस्क्यू हो चुका है। हर्षिल से कुल 95 लोगों को मातली लाया गया।107 लोगों को चिन्यालीसौड़ लाया गया।उत्तरकाशी में आपदाग्रस्त क्षेत्र में फंसे लोगों को हेलीकॉप्टर से आईटीबीपी मातली व चिन्याली सौड़ पहुंचाने का सिलसिला जारी है। धराली क्षेत्र में आई त्रासदी ने धराली गांव के लोगों का व्यवसाय छीन लिया है।बड़ी संख्या में घर तबाह हो गए।लेकिन गांव के लोगों की हिम्मत और उनकी एकता को यह तबाही नहीं तोड़ पाई है।आपदा के करीब 3 दिन बाद धराली गांव के लोग वापस अपने उसी बाजार में इकट्ठा हुए और उन्होंने धराली में ही मौजूद सोमेश्वर मंदिर में एक साथ रहने का फैसला किया है।इस मंदिर में कीर्तन मंडली के कमरे में ही गांव के 150 लोगों का खाना बन रहा है और यहां की महिलाएं सभी के लिए एक साथ भोजन तैयार कर रही है। ग्रामीणों ने मन बना लिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए गांव के लोग अलग-अलग नहीं होंगे और एक साथ ही रहेंगे।प्रमुख भूविज्ञानी डॉ. वाई.पी. सुंदरियाल का सवाल है कि खीर गंगा नदी के किनारे इतने सारे होटल, होम-स्टे और व्यावसायिक प्रतिष्ठान बनाने की अनुमति क्यों दी गई? सुंदरियाल कहते हैं, “नदियों के बाढ़ वाले मैदानों और जलग्रहण क्षेत्रों में निर्माण कानूनन प्रतिबंधित है, फिर भी पूरे उत्तराखंड में ऐसे अवैध निर्माण जारी हैं। केदारनाथ हो, जोशीमठ या अन्य पहाड़ी शहर हर तरफ व्यावसायिक हित हावी हैं और पर्यावरणीय मानदंडों पर न्यूनतम ध्यान है।” परंपरागत रूप से, गांव और शहर नदी तटों से एक निश्चित ऊंचाई और दूरी पर बसाए जाते थे। अब ऐसा नहीं है। लोग भूल गए हैं कि एक नदी देर-सबेर अपने जलग्रहण क्षेत्र में लौटती ही है, जैसा कि 2013 में मंदाकिनी और सरस्वती नदियों के साथ हुआ था। सुंदरियाल कहते हैं कि इन पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा भले कम हुई, लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन अप्रत्याशित बढ़ा है, जो जलवायु परिवर्तन जनित आपदाओं का कारण है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और आर. महादेवन ने 5 अगस्त को हिमाचल सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “पर्यावरण और पारिस्थितिकी की कीमत पर राजस्व अर्जन नहीं हो सकता। हालात ऐसे ही रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब पूरा हिमाचल देश के नक्शे से गायब हो जाएगा।” वह सभी हिमालयी राज्यों के लिए ऐसा क्यों नहीं करता- विशेषकर उत्तराखंड के लिए, जो पिछले दो दशकों से ‘विकास’ के बोझ का मारा हुआ है?मौसम विभाग के मुताबिक 4-5 अगस्त को वहां पर 8 से 10 मिमी ही बारिश हुई जबकि बादल फटने के समय 100 मिमी से ज्यादा बारिश होती है।वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी वजह भूस्खलन से पानी का प्रवाह रुकने से अस्थाई झील बनना, पर्वत की तलहटी पर रुके पानी में ग्लेशियर या चट्टान का गिरना या फिर फ्लैश फ्लड हो सकती है। पूर्व वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल बताते हैं कि धराली फ्लड प्लेन में बसा है। धराली के पीछे डेढ़-दो किलोमीटर लंबा और बेहद घना जंगल है। जिस खीर गाड से फ्लैश फ्लड आया वो उन्हीं जंगलों से होकर गुजरता है। उसके ऊपर बर्फीला पर्वत है लेकिन जिस गति से फ्लैश फ्लड आया है वो बादल फटने जैसा नहीं है।ऐसे में कोई ग्लेशियर टूटकर अस्थाई झील या जमे हुए पानी पर गिरता है तो उसे तोड़ देता है, इसी वजह से जो पानी नीचे आया वह काले रंग का और मलबा स्लेटी रंग का है। ऐसा पानी और मलबा जमे हुए स्थान के टूटने से आता है। जैसा 2021 में चमोली जिले के ऋषिगंगा हादसे में अस्थाई झील में जमा मलबा बहकर नीचे आया था,जो भारी तबाही का सबब बना था,अब फिर यही आपदा फिर से मुसीबत का सबब बन गई है। ईएमएस/17अगस्त2025 (लेखक उत्तराखंड के वरिष्ठ साहित्यकार है)