- जन यात्रा, पदयात्रा, पंपलेट तथा स्थानीय मीडिया का महत्व भारत का स्वतंत्रता संग्राम केवल अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी का संघर्ष नहीं था। कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जनता से संवाद करने और जनजागरण का भी आंदोलन चलाया था। उस दौर में अंग्रेजों के प्रभाव में मीडिया पूरी तरह नियंत्रित था। सारा भारत रियासतों से जुड़ा हुआ था। ऐसी स्थिति में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाना संभव ही नहीं था। अंग्रेजी अखबारों की पहुँच आम जनता से दूर थी। सूचनाओं का प्रवाह सत्ता के हिसाब से तय होता था। ऐसी स्थिति में कांग्रेस और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने जनता तक पहुँचने का नया रास्ता चुना। प्रादेशिक स्तर का संगठन तैयार किया। स्वतंत्रता आंदोलन के लिए पदयात्राएँ, जन यात्राएँ, छोटे-छोटे पर्चे और स्थानीय भाषाओं में छापे गए समाचार पत्र ही उस समय संवाद का सशक्त माध्यम बना। जिसने स्वतंत्रता आंदोलन की अलख सभी रियासतों और अंग्रेजी शासन काल के हर हिस्से तक पहुंचने का काम कांग्रेस के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने किया। कांग्रेस के इन्हीं प्रयासों से आज़ादी का संदेश गाँव-गाँव, गली-गली पहुँचा, आंदोलन को व्यापक जनाधार मिला। सभी वर्गों के लोग इस आंदोलन में शामिल हुए, जो अंग्रेजों की किसी न किसी प्रताड़ना से व्यथित थे। आज, स्वतंत्रता के 78 वर्ष बाद, परिदृश्य एक बार फिर बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय मीडिया पर वर्तमान सरकार का वर्चस्व इतना बढ़ गया है। सारा मीडिया सरकार के गुणगान में लगा हुआ है। मीडिया में जनता को स्थान नहीं मिल रहा है। मीडिया ने अपनी सवाल करने की भूमिका भी खत्म कर दी है। मीडिया से विपक्ष नदारद है। जो वर्तमान मीडिया है, उसे गोदी मीडिया कहा जाने लगा है। बड़े-बड़े टीवी चैनल और अखबार सरकार की भाषा बोल रहे हैं। आम जनता के असली मुद्दे—महंगाई, बेरोज़गारी, किसान और श्रमिक की पीड़ा—मुख्यधारा के मीडिया से ग़ायब हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए कांग्रेस स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि व अपने पूर्वजों से सबक लेकर एक बार फिर स्वतंत्रता आंदोलन के तौर तरीके को अपनाती हुई दिख रही है। राहुल गांधी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो पदयात्रा से राहुल गांधी और कांग्रेस का जनता से सीधा संवाद कायम हुआ। यह संवाद न केवल भाषाई विविधता के बीच लोगों तक पहुँचा, बल्कि वर्तमान मीडिया के नियंत्रण के दौर में एक वैकल्पिक मीडिया का राजनीतिक मॉडल भी बन गया। जिस तरह से स्वतंत्रता संग्राम के समय पर्चों और छोटे अखबारों ने अंग्रेजों के खिलाफ आम जनता को आंदोलित किया। अंग्रेजों के प्रति आम लोगों को जो भय था उसे खत्म करने का काम किया। संवाद के नए-नए माध्यम आंदोलनकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने तैयार किये। जिसका प्रभाव आम जनता पर पड़ा और स्वतंत्रता आंदोलन दिन प्रतिदिन तेज होता चला गया। जिसके कारण ताकतवर अंग्रेजों को भारत छोड़कर वापस जाना पड़ा। उसी तरह के प्रयास एक बार फिर कांग्रेस ने सोशल मीडिया, स्वतंत्र यूट्यूब चैनल और जन यात्राएँ, रैली से किया है। ये सभी सरकारी प्रचार एवं गोदी मीडिया को चुनौती दे रही हैं। दरअसल यह प्रयास जनता तक सीधी पहुँच बनाने सबसे प्रभावी तरीका है। राहुल गांधी अब जनता की लड़ाई को लड़ रहे हैं। खुद से जनता को जोड़ रहे हैं। आंदोलन विपक्षी राजनीति के लिए ऑक्सीजन की तरह है। यही कारण है कि कांग्रेस अब रैलियों, जन सभाओं और सोशल मीडिया अभियानों को अपना प्रमुख हथियार बना रही है। जब मीडिया सरकार का पक्षधर बन चुका हो, तब यही रणनीति कांग्रेस और विपक्ष के लिए उसे पुनर्जीवित करने का सबसे कारगर तरीका है। कांग्रेस और राहुल गांधी की यह रणनीति न केवल भाजपा और सरकार के लिए चुनौती है, बल्कि गोदी मीडिया के लिए भी एक चुनौती है। लोकतंत्र के लिए एक उम्मीद की किरण है। जहां राजनीतिक दल अब जनता की लड़ाई को लड़ने के लिए सड़कों पर आ रहे हैं। इतिहास गवाह है कि जब-जब जनता से सीधा संवाद संगठन और राजनीतिक दल कायम करते है, तब सत्ता की नींव हिलती है, परिवर्तन की लहर तेज हो जती है। 1975 में जयप्रकाश आंदोलन के 50 वर्ष बाद इस तरह का आंदोलन देखने को मिला है। कांग्रेस का यह प्रयोग आने वाले समय की राजनीति को नई दिशा दे सकता है। जिस तरह से कांग्रेस और विपक्षी दल के राजनीतिक दल एकजुट होकर अब जनता की लड़ाई लड़ने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं उसका मुकाबला कर पाना कोई आसान काम नहीं है। 2014 मे नरेंद्र मोदी एक उम्मीद के रूप में सामने आए थे लोगों ने उन पर पूरी तरह से विश्वास किया था। पिछले 11 वर्षों में यह विश्वास अब अविश्वास में बदल गया है। पिछले 11 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी ने जो सपने लोगों को दिखाए थे, वह पूरे नहीं हुए उल्टे जनता के ऊपर तरह-तरह का टैक्स का बोझ डाला गया। जनता की समस्याओं पर संवेदनशीलता के स्थान पर कठोरता के साथ आम जनता को नियंत्रण करने की कोशिश की गई। जिसके कारण आम जनता हैरान और परेशान थी। वह अपनी लड़ाई नहीं लड़ पा रही थी। उस लड़ाई को अब कांग्रेस से सभी राजनीतिक दल लड़ रहे हैं। जनता उनके पीछे चलने लगी है। यह स्थिति वर्तमान सरकार के और मीडिया के लिए एक खतरे की घंटी है। संवैधानिक संस्थाएं जिस तरह से सरकार के पक्ष में निर्णय कर रही हैं। आम जनता पर सरकार का शोषण बढ़ता ही जा रहा है। कांग्रेस और विपक्षी दलों ने नागरिकों तक पहुंचाने के लिए स्थानीय भाषा एवं स्थानीय मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया को अपना आधार बना लिया है। उसने एक बार फिर स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की यादें ताजा करा दी हैं। ईएमएस / 17 अगस्त 25