- इस्लाम भी यहीं रहेगा और मुसलमान भी.... ज्यादा दिन पुरानी बात नहीं जब अखिल भारतीय इमाम संगठन के तत्कालीन प्रमुख इमाम उमर अहमद इलियासी ने मीडिया से बात करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत का राष्ट्रऋषि बता दिया था। पिछले काफी वक्त से भागवत हिन्दू-मुसलमान एकता को लेकर प्रयासरत हैं। हाल ही में उन्होंने कहा कि जब से इस्लाम भारत में आया है तब से यहीं है और यहीं रहेगा। बात बिल्कुल सहीं है, इस्लाम भी यहीं रहेगा और मुसलमान भी। भारत के मुसलमान वो हैं जिनका एतबार लोकतांत्रिक व्यवस्था और सामाजिक सद्भाव में था। जिन को इस्लामिक वतन चाहिए था वो बटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए थे। कुल मिलाकर, भागवत के बयानों की और भी सियासी वजह हो सकती है लेकिन भागवत के इन प्रयासों की सराहना तो की ही जानी चाहिए। एक वक्त था जब पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया यानि पीएफआई के तकरीबन सैकड़ा भर ठिकानों पर छापे, हिजाब विवाद, भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद साहब पर की गई टिप्पणी, ज्ञानवापी मस्जिद मसले, गौ हत्या और माॅब लिचिंग, लव जिहाद, धर्मान्तरण, उत्तरप्रदेश में मदरसो के सर्वे, अन्य कुछेक मस्जिदों और एतिहासिक इमारतों की खुदाई की मांग आदि मसलों के बीच आरएसएस चीफ मोहन भागवत की अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख इमाम उमर अहमद इलियासी से मुलाकात की थी। चूंकि, अखिल भारतीय इमाम संगठन का कार्यालय मस्जिद परिसर में है लिहाजा दिल्ली की मस्जिद में आएसएस प्रमुख का पहुंचना अपने आप में ही बड़ी बात रही। इमाम उमर इलियासी के पिता जमील इलियासी की मजार पर भी संघ प्रमुख पहुंचे, साथ ही इमाम के परिजनों से भी मुलाकात की। इसके बाद दिल्ली के ही आजाद मार्केट के एक मदरसे का दौरा किया और यहां बच्चों से मुलाकात की। इसके बाद उमर अहमद इलियासी ने मीडिया से बात करते हुए मोहन भागवत को राष्ट्रपिता और राष्ट्रऋषि बता दिया। भागवत के मस्जिद और मदरसे पहुंचने से लेकर हालिया बयान तक के पीछे जितने मुंह उतनी बातें वाली बात चरितार्थ हो रही है। कुछेक का तर्क है कि आरएसएस यूनिफॉर्म सिविल कोड और जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए माहौल तैयार कर रहा है। कुछ का कहना है कि अगले लोकसभा चुनाव के पहले संघ, मुसलमानों की नाराजगी को कम करने की कोशिश कर रहा है। भागवत से पहले संघ के पाँचवें सरसंघचालक कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन भी इलियासी के परिजनों से मिलते रहे हैं लेकिन तब इतनी चर्चा नहीं हुई। भागवत के मस्जिद-मदरसों पर पहुंचने को लेकर बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई थी। मायावती ने कहा कि मस्जिद और मदरसे जाकर उलेमाओं से मिलने, फिर खुद को राष्ट्रपिता और राष्ट्रऋषि कहलवाने के बाद क्या भाजपा मस्जिद और मदरसों के प्रति अपने नकारात्मक रूख में बदलाव लाएगी। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने निशाना साधते हुए कहा कि मोहन भागवत जी अब आप अखलाक और बिलकिस बानो के परिवार से भी मिलें। बिलकिस बानो को न्याय दिलाएं। बलात्कारियों का सम्मान करने वालों के खिलाफ बयान दें जहां जहां निर्दोष मुसलमानों को आपके कार्यकर्ताओं ने सताया है उनसे माफी मांगे अन्यथा आपका मस्जिद-मदरसा जाना केवल दिखावा होगा। संघ की स्थापना के 100 साल पूरे होने पर देश की राजधानी दिल्ली में 26 से 28 अगस्त तक तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला के आखिरी दिन मोहन भागवत ने कई मसलों पर अपनी राय रखी। इस्लाम पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि इस्लाम जब पहले दिन भारत में आया, तभी से यह यहां है और आगे भी रहेगा। इस्लाम नहीं रहेगा ये सोचने वाला हिंदू सोच का नहीं है। हिंदू सोच ऐसी नहीं होती। इस्लाम पुरातन काल से भारत में रहा है और आज तक कायम है और भविष्य में भी रहेगा। उन्होंने ये भी कहा कि सड़कों और जगहों का नाम एपीजे अब्दुल कलाम, अब्दुल हमीद के नाम होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अपने देश में भी मुसलमान नागरिक हैं उन्हें भी रोजगार की जरूरत है। मुसलमान को रोजगार देना है तो उन्हें दीजिए, जो बाहर से आया है उन्हें क्यों दे रहे हो? उनके देश की व्यवस्था उन्हें करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हिन्दु-मुसलमान एक ही हैं उनकी पूजा पद्धति अलग है इसलिए उनके बीच एकता को लेकर कोई सवाल नहीं उठाना चाहिए। संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात के बाद उमर अहमद इलियासी ने भी यही कहा कि वो पहली दफा किसी मस्जिद में आए हैं। धर्म अलग हो सकते हैं, पूजा के तरीके और परम्पराए अलग हो सकती है लेकिन सबसे बड़ा धर्म इंसानियत का है। हम सब भारतीय है और सभी मिलकर भारत को मजबूत करें। इधर, भागवत के बयानों पर सियासी पारा लाजमी था और ऐसा हुआ भी। मोहन भागवत के भारत को हिंदू राष्ट्र बताने वाले बयान पर ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन ने आपत्ति जताई। एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद राशिदी ने को कहा कि भारत संविधान और कानून से चलेगा, गीता या कुरान से नहीं। राशिदी ने कहा कि बार-बार हिंदू राष्ट्र का जिक्र करना बाकी धर्मों का अपमान है। मौलाना रशीदी ने भागवत के उस बयान पर भी सवाल उठाया जिसमें उन्होंने कहा था कि सड़कों के नाम आक्रांताओं पर नहीं होने चाहिए। उन्होंने कहा, आप किसी को आक्रांता मानते क्यों हैं ? जो मुसलमान यहां आया, उसने हिंदुस्तान को आगे बढ़ाया। यहां से कुछ लूट कर नहीं ले गया यहीं रहा, बादशाहत की और यहीं दफन हुआ लेकिन अंग्रेज जिन्होंने सच में देश को लूटा और सब कुछ अपने साथ ले गए उनके खिलाफ आपकी जबान क्यों नहीं खुलती ? दूसरी तरफ, आल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने भागवत के बयान का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि भागवत ने सरकार को नसीहतें और हिदायतें दीं हैं। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी भागवत के बयानों पर तंज कसा। ओवैसी का कहना है कि मुस्लिम समाज का बड़ा तबका अपने हक के लिए लड़ता है तो वह बुरा हो जाता है, उस पर शक किया जाता है। ओवैसी ने तीन बच्चों वाले बयान पर कहा कि ये निजी जिंदगी में हस्तक्षेप और महिलाओं पर बोझ डालने वाला बताया। इसी तरह कांग्रेस नेताओं के बयान सामने आए। भागवत के इन बयानों से ये सवाल जहन में कौंधना जायज है कि क्या संघ का नजरिया मुसलमानों के प्रति बदल गया है। संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने संघ शिक्षा वर्ग के तृतीय वर्ष के समापन समारोह में कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं देखना चाहिए। उन्होंने राम मंदिर आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा था कि उस तरह का आंदोलन अब नहीं करना है लेकिन मन में कई सवाल तो उठते हैं जिन्हें आपस में मिल बैठकर सर्वसम्मति से हल निकालना है। यदि सम्मति से हल नहीं निकलता तो संविधान सम्मत न्याय व्यवस्था को मानना चाहिए। दिल्ली में भी साफ तौर कहा कि काशी-मथुरा आंदोलनों में संघ शामिल नहीं होगा। भागवत भारत को विश्वगुरु बनाने की बात कहते है तो ये भी कहते हैं कि हम सब के पूर्वज एक ही है। मुसलमान खुद को भारतीय मानते हैं इसमें दोराय नहीं होनी चाहिए। लेकिन, जब वे किसी मुद्दे पर अपना रोष जाहिर करते हैं तो या अपना हक मांगते हैं तो उन्हें देशद्रोही कह दिया जाता है। कभी हिजाब के नाम पर तो कभी लव जिहाद तो कभी गौ हत्या के नाम पर लिंचिंग होती रही। कई मामले तो ऐसे भी सामने आए हैं जिसमें आरोप तो किसी मुस्लिम पर लगे लेकिन जांच के बाद असली आरोपी गैर मुस्लिम निकल आया। मुस्लिम विचारकों का ये भी कहना है कि यदि कोई समाज विरोधी या देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त है तो उसे सजा मिलनी ही चाहिए लेकिन इसके लिए पूरे समाज को दोष देना या सभी को शक की निगाह से देखना कहां तक जायज है। बहरहाल भागवत ने जो कहा वो कोई नई बात नहीं है, बल्कि सवाल ये है कि पिछले कुछ सालों में देश की फिजा में जो जहर घुला उसके पीछे जिम्मेदार कौन है। जब तक राजनीति और धर्म अलग-अलग थे तब तक सब कुछ ठीक-ठाक था लेकिन जब से राजनीति और धर्म के बीच घालमेल हुआ तब से चीजों को देखने का नजरिया बदल गया है। भागवत की मंशा जो भी हो लेकिन इसे एक अच्छी पहल तो कहा ही जा सकता है। भाजपा-संघ और मुसलमान दोनों को अपना नजरिया बदलना होगा, इसके बाद नजारा तो अपने आप ही बदल जाएगा और फिर सामने आएगा खुशहाल, समृद्ध, मजबूत और एकजुट वो भारत जिसे हम सब विश्वगुरू के रूप में देखना चाहते हैं। ( अधिवक्ता एवं लेखक भोपाल, मप्र ) ईएमएस / 31 अगस्त 25