नई दिल्ली,(ईएमएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कई मुद्दो पर सहमति जताई। एक घंटे की वार्ता में बाकी मुद्दों के साथ सीमा मुद्दा भी शामिल रहा। दोनों नेताओं ने पिछले साल हुए सफल डिसएंगेजमेंट और उसके बाद सीमा क्षेत्रों में बनी शांति और स्थिरता पर संतोष जताया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि द्विपक्षीय संबंधों के निरंतर और सुचारू विकास के लिए सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता जरूरी है। विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में साफ कहा गया कि मौजूदा मैकेनिज्म का इस्तेमाल करते हुए सीमाओं पर शांति बनाए रखने पर सहमति जताई। 2020 के बाद से इस तरह के बयान तो आते रहे थे लेकिन जमीन पर कुछ खास नहीं हुआ था। पिछले साल रूस के कजान में हुई वार्ता के बाद हालातों में सुधार आना शुरू हुआ। रूस के कजान में ब्रक्स समिट के बाद पीएम मोदी और शी जिनपिंग चीन तियानजिन में एससीओ समिट के दौरान फिर मिले और बात थोड़ी और आगे बढ़ी। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद दशकों पुराना है। 1962 में एक बड़ी जंग हो चुकी है और सीमा विवाद को लेकर छोटे बड़े तनाव होना तो आम बात थी। लेकिन साल 2020 में पूर्वी लद्दाख में जो हुआ वह गंभीर था। दोनों देशों के बीच इस तरह के विवादों को सुलझाने के कई मैकेनिज्म हैं। इसमें डब्ल्यूएमसीसी यानी वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसलटेशन एंड कॉर्डिनेशन, स्पेशल रिप्रजेंटिटव वार्ता और सेना के स्तर पर कोर कमांडर और लोकल कमांडर स्तर की वार्ता शामिल हैं। डब्ल्यूएमसीसी में सीमा विवाद के अलावा अन्य मुद्दों पर भी चर्चा होती है। स्पेशल रिप्रजेंटिटव वार्ता में भारत की तरफ से एनएसए अजीत डोवल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच वार्ता होती है। 2020 के बाद दो बार सिर्फ सीमा विवाद को लेकर ही चर्चा हुई। तीसरा है सैन्य स्तर की वार्त। यह वार्ता हमेशा से लोकल कमांडर के बीच ही हुआ करती थी। एलएसी पर किसी भी फेसऑफ या अन्य विवाद को लेकर स्तर पर ही बातचीत के जरिए सुलझाया जाता था। साल 2020 के बाद पूर्वी लद्दाख में इस स्तर को बढ़ाते हुए नया मैकेनिज्म बनाया गया जिसे सीनियर हाईस्ट मिलिट्री कमांडर लेवल मीटिंग कहा गया। आम बोलचाल की भाषा में इसे कोर कमांडर स्तर की वार्ता कहा जाता है। यह मैकेनिज्म अभी सिर्फ पूर्वी लद्दाख में ही है। वीरेंद्र/ईएमएस/01सितंबर2025