राष्ट्रीय
04-Sep-2025
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-राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के लिए एक झटका नई दिल्ली (ईएमएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान हुई मुलाकात के बाद एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की नई खेप को लेकर बातचीत चल रही है। रुसी मीडिया ने वरिष्ठ रूसी रक्षा अधिकारी दिमित्री शुगायेव के हवाले से इसकी जानकारी दी है। बात दें कि भारत ने 2018 में रूस के साथ 5.5 बिलियन डॉलर की डील की थी, इसके तहत रूस को पांच एस-400 ट्रायंफ लांग रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल डिफेंस सिस्टम देने थे। रूस अब तक इसमें तीन की आपूर्ति कर चुका है, और बाकी दो 2026 और 2027 में देने वाला है। अब दोनों देशों के बीच नई डिलीवरी को लेकर भी बातचीत शुरू हो गई है। यह कदम अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के लिए एक झटका माना जा रहा है, क्योंकि अमेरिका ने रूस से हथियार खरीदने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी। हाल ही में, प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन से कहा था कि भारत और रूस हर मुश्किल समय में एक-दूसरे के साथ खड़े हैं। पुतिन ने भी पीएम मोदी को प्रिय दोस्त कहकर संबोधित किया था। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी भारत की सराहना की है कि उसने रूस से तेल न खरीदने के अमेरिकी दबाव को स्वीकार नहीं किया। यह घटनाक्रम भारत और रूस के बीच मजबूत होते संबंधों को दिखाता है, जो अमेरिका के लिए एक रणनीतिक चुनौती पेश कर सकता है। एस-400 ट्रायंफ मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भारतीय सशस्त्र बल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। यह एक एयर डिफेंस शील्ड की तरह काम करता है और सीधे भारतीय वायु सेना के कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (आईएसीसीएस) से जोड़ा गया है। यह सिस्टम दुश्मनों के फाइटर जेट, बमवर्षक, ड्रोन, क्रूज मिसाइल और जासूसी विमानों को 120 से 380 किलोमीटर की दूरी से ही मार गिरा सकता है। प्रत्येक एस-400 स्क्वाड्रन में 128 मिसाइलों से लैस दो मिसाइल बैटरी होती हैं। इसमें लंबी दूरी के रडार और मोबाइल लॉन्चर वाहन भी शामिल होते हैं। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (स्रिपी) के अनुसार, 2020-2024 के बीच भारत द्वारा आयात किए गए हथियारों में रूस की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत थी, जबकि फ्रांस की 33 प्रतिशत और इजरायल की 13 प्रतिशत थी, जो भारत की रूसी हथियारों पर निर्भरता को दर्शाता है। इस तरह, भारत का यह कदम न केवल अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत कर रहा है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वह अपनी विदेश नीति में किसी अन्य देश के दबाव में नहीं आएगा। आशीष/ईएमएस 04 सितंबर 2025