अंतर्राष्ट्रीय
07-Sep-2025


मर्केल ने शरणार्थियों के लिए खोले दरवाजे, अब हिटलर समर्थक उठा रहे सवाल लंदन,(ईएमएस)। दुनिया में एक ऐसा मुल्क है जिसकी कभी पूरी दुनिया में तूती बोलती थी, लेकिन बीते एक दशक में इस देश में भारी बदलाव हुए। अब आप सोच रहे होंगे कि ये कौन का मुल्क है यह है जर्मनी। पहले और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यह मुल्क दुनिया का बेताज बादशाह था। उसके बाद के दिनों में भी यह यूरोप की एक सबसे बड़ी ताकत बन गया था, लेकिन बीते एक दशक में यहां बहुत कुछ बदला है। यहां इस्लाम मानने वाले मुस्लिम आबादी में जबरदस्त इजाफा हुआ है। दरअसल, 10 साल पहले 2015 में जर्मनी ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया था, जब तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल ने सीरिया, अफगानिस्तान और इराक जैसे युद्धग्रस्त और आर्थिक रूप से अस्थिर देशों से आने वाले लाखों शरणार्थियों के लिए अपने देश के दरवाजे खोल दिए थे। मर्केल का यह कदम स्वागत संस्कृति के रूप में जाना गया, उस समय जर्मनी वैश्विक सुर्खियों में छाया रहा, लेकिन महज एक दशक बाद इस फैसला का प्रभाव जर्मनी के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक ताने-बाने पर दिखाई देने लगा। इससे जर्मनी की राजनीति और सामाजिक धारणाओं को नया आकार मिला है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में जब सीरिया में गृहयुद्ध अपने चरम पर था और अफगानिस्तान व इराक जैसे देश हिंसा और अस्थिरता से जूझ रहे थे तब लाखों लोग सुरक्षित आश्रय की तलाश में यूरोप की ओर बढ़े। यूरोप में जर्मनी एक ऐसा मुल्क है जो आर्थिक रूप से स्थिर और समृद्धि है। यह देश इन शरणार्थियों का प्रमुख गंतव्य बन गया। 2015 और 2016 में जर्मनी में 11.64 लाख लोगों ने पहली बार शरण के लिए आवेदन दिया। इसमें से ज्यादातर सीरिया, अफगानिस्तान और इराक से थे। 2015 से 2024 तक यानी नौ सालों में कुल 26 लाख आवेदन आए। इस तरह जर्मनी यूरोपीय संघ में ऐसे आवेदन हासिल करने वाला शीर्ष देश बन गया। मर्केल ने यह फैसला मानवीय आधार पर लिया था, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह व्यावहारिकता से भी प्रेरित था। एक रिपोर्ट के मुताबिक मर्केल का उद्देश्य यूरोपीय शरण प्रणाली को स्थिर करना था, क्योंकि अन्य यूरोपीय देश इस संकट से निपटने के लिए तैयार नहीं थे। हालांकि, इस फैसले ने जर्मनी के सामने अप्रत्याशित चुनौतियां पैदा कर दी है। जर्मनी में एक दशक में करीब दो करोड़ लोगों ने शरण के लिए आवेदन किया है। 2015 में जर्मनी के लोगों ने शरणार्थियों का स्वागत गर्मजोशी से किया। म्यूनिख में स्थानीय लोग शरणार्थियों को भोजन और पानी बांटने के लिए सड़कों पर उतरे। अनस मोदमानी जैसे शरणार्थी जो 17 साल की उम्र में सीरिया से भागकर जर्मनी पहुंचे, इसे अपने जीवन का सबसे अच्छा पल बताया, लेकिन यह स्वागत संस्कृति ज्यादा समय तक नहीं टिकी। 2016 की नववर्ष की पूर्व संध्या पर कोलोन में महिलाओं पर सामूहिक यौन हमलों की घटना हुई। इसमें शरणार्थियों को दोषी ठहराया गया। इस घटना ने मर्केल की नीतियों पर सवाल उठाए और सामाजिक माहौल को बदल दिया। इस घटना ने दक्षिणपंथी दल अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी को एक नया मंच प्रदान किया। उस वक्त तक इस दल को जर्मनी में बहुत पसंद नहीं किया जाता था। 2013 में स्थापित यह पार्टी हाशिए पर थी। यह पार्टी की नीतियां काफी हद तक हिटलर की नीति से प्रभावित है। यह अब जर्मनी की दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन चुकी है। उसने शरणार्थी-विरोधी और आप्रवासन-विरोधी भावनाओं को हवा दी, जिसका असर हाल के चुनावों में साफ दिखाई दिया। इस बात की पुष्टि इस रिपोर्ट से होती है कि 2015 में केवल 38 फीसदी जर्मन शरणार्थियों की संख्या कम करने के पक्ष में थे, लेकिन 2025 तक यह आंकड़ा 68 फीसदी तक पहुंच गया है। यानी अब जर्मन जनता शरणार्थियों को पसंद नहीं कर रही है। सिराज/ईएमएस 07सितंबर25 -----------------------------------