फार्म-07 के जरिए भूत वोट काटने का अनोखा मामला आजाद भारत में यह पहली बार हो रहा जबकि आमजन का भरोसा डगमगाता दिख रहा है। वजह पिछले एक दशक से चुनाव में धांधली के आरोप कुछ ज्यादा ही लग रहे हैं। इस बीच कुछ नेताओं के साथ ही अनेक जानकारों ने सीधे-सीधे ईवीएम पर ही सवाल खड़े कर दिए। ऐसे में ईवीएम से मन-मुताबिक रिजल्ट लेने के गंभीर आरोप लगे। मामला कोर्ट तक गया और चुनाव आयोग ने भी अपने हिसाब से जवाब दिया और दावे-आपत्तियों के बीच मामला आयाराम-गयाराम होता दिखा है। इसी बीच कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने जिस दृढ़ता के साथ वोट चोरी का मामला देश के सामने लाया उससे सभी की नींद उड़ गई। इस मामले को लेकर चुनाव आयोग अपनी जगह है, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी ने कथित वोट की चोरी को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरु कर दिया है। इसे लेकर अब सवाल किए जा रहे हैं कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने के लिए वास्तव में कौन ज़िम्मेदार है? आखिर इसके लिए मतदाता या चुनाव आयोग किसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? एक सवाल और कि इस काम के लिए राजनीतिक दलों का क्या दायित्व है, जिन्हें चुनाव से एक माह पहले ही मतदाता सूची का प्रिंट आउट दिया जाता है? बहरहाल यहां बताते चलें कि कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों ने बिहार विधानसभा चुनावों और स्पेशल इंटेंसिव रिव्यू (एसआईआर) में अनियमितताओं के आरोपों को लेकर अभियान को तेजधार दे रखी है। दरअसल बिहार में वोटर अधिकार यात्रा को जनता का जो समर्थन हासिल हुआ उससे विपक्ष खासा उत्साहित नजर आया है। यही कारण है कि अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक न्यूजलेटर जारी कर चुनाव आयोग और भाजपा पर वोट चोरी के आरोप को दमदारी के साथ दोहराने जैसा काम कर दिखाया है। यहां कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी चुनाव आयोग के क्रिया-कलापों को लेकर आलोचना की और सवाल उठाए कि क्या चुनाव आयोग मतदान में धांधली के लिए बीजेपी का बैक-ऑफिस बन गया है? सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए खड़गे कहते हैं, कि क्या चुनाव आयोग अब बीजेपी के लिए वोट चोरी का अड्डा बन गया है? कहा तो यह भी जा रहा है कि सत्ता प्राप्ति के बाद सरकार पर हमेशा बने रहने का भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं ने जिस तरह की बयानबाजी कर, दंभ दिखाया उसके बाद से ही यह समझ में आने लगा था कि कुछ तो दाल में काला है। खासतौर पर तब जबकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दावा करते देखे गए कि अब उनकी पार्टी को 40-50 साल तक कोई सत्ता से बेदखल नहीं कर सकता है। इसी बीच विपक्ष ने वोट चोरी के जो मामले उजागर किए और चुनाव आयोग व सरकार से सवाल किए उसके बाद देश के आमजन को समझने में देर न लगी कि मामला गंभीर है। बिहार में तो वोटर अधिकार यात्रा के दौरान साफ देखने में आया कि किस कदर आमजन विपक्ष के साथ कदम-ताल करने सड़कों पर उतर आया। इसे भाजपा और सरकार ने शक्तिप्रदर्शन मान लिया। इसलिए सुरक्षा कवच की याद हो आई। मौजूदा सरकार और उनके अनुवांशिक संगठन यहां-वहां की बातें करते हुए ध्यान भटकाने का काम करने में लग गए। वहीं जनता का ध्यान न भटकने पाए विपक्ष ने कहना शुरु कर दिया, कि भारतीय लोकतंत्र का आधार निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया मानी जाती है। परंतु हाल ही में कर्नाटक में एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जो चुनाव प्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है। इस बार की जांच से यह स्पष्ट हुआ है कि फार्म-07 के माध्यम से हजारों फर्जी वोट कटवाए गए थे। विशेष रूप से महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के मोबाइल नंबरों का उपयोग करके गरुण-एप और अन्य एप्लिकेशन के माध्यम से कर्नाटक के आनंद विधानसभा क्षेत्र में वोट काटे गए। यह मामला केवल एक चुनावी खेल नहीं, बल्कि संपूर्ण सिस्टम में छुपे साइबर फ्रॉड का प्रतीक बन गया है। बी आर पाटिल, जो कांग्रेस के प्रत्याशी थे, ने 2018 में आनंद विधानसभा क्षेत्र से केवल 697 वोटों से चुनाव हारने के बाद यह मामला उठाया। 2023 में जब चुनाव फिर से हुआ, तो उन्होंने इस पूरे मामले की गहराई से जांच शुरू की। आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) कर्नाटक की जांच में सामने आया कि कुल 6000 से अधिक फॉर्म-07 एप्लीकेशन फर्जी तरीके से भरे गए थे। इनमें से 5994 एप्लीकेशन जांच में झूठी पाई गईं। जांच के मुताबिक, फॉर्म-07 राष्ट्रीय वोटर सर्विस पोर्टल (एनव्हीएसपी), वोटर हेल्पलाइन ऐप, और गरुण ऐप के जरिए भरे गए थे। जांच में यह भी खुलासा हुआ कि आवेदन फॉर्म भरने वाले ज्यादातर लोग अनपढ़ ग्रामीण किसान थे। महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के मोबाइल नंबर से लॉगिन करके फॉर्म भरे गए। अधिकांश लोगों को गरुण ऐप के बारे में भी जानकारी नहीं थी, फिर भी उनके नंबर से फॉर्म भरकर वोट काटने की प्रक्रिया पूरी की गई। सीआईडी ने चुनाव आयोग से कई बार तकनीकी डाटा मांगा, जिसमें आईपी लॉक्स (आईपी एड्रेस डिटेल्स), डायनामिक और स्टैटिक डेस्टिनेशन आईपी एड्रेस की जानकारी शामिल थी। इसके बावजूद, चुनाव आयोग से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। ऐसे में इस पूरे फ्रॉड का रहस्य अब तक अनसुलझा बना हुआ है। यह एक पेचीदा मामला बन गया है क्योंकि डायनामिक आईपी एड्रेस से 200 से अधिक लोगों की सिटिंग दर्ज की गई थी, जिससे यह संख्या लाखों तक पहुंच गई। जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि कई फॉर्म ऐसे थे जिनमें आधे-अधूरे डेटा भरे गए थे, लेकिन फिर भी उन्हें मंजूरी दे दी गई। ऐसा क्यों हुआ? किसके इशारे पर? इन सवालों का जवाब आज तक नहीं मिल सका। विशेष रूप से यह मामला इसलिए भी गंभीर बन जाता है क्योंकि लोकल बीएलओ (ब्लॉक लेवल ऑफिसर) के भाई का नाम फॉर्म-07 में दर्ज था। यह मामला केवल आनंद विधानसभा क्षेत्र तक सीमित नहीं रह गया। यह पूरे देश के चुनावी तंत्र पर सवाल खड़ा करता है। दरअसल यह मॉडल उस तस्वीर को साफ तौर पर दिखाता है कि किस तरह फर्जीवाड़े को मैनिपुलेट करके चुनाव जीता जा सकता है। फर्जी फॉर्म-07 एप्लीकेशन भरकर न केवल वोट काटे गए, बल्कि यह पूरी प्रक्रिया चुनाव आयोग की छत्रछाया में हुई। इस मामले में चुनाव आयोग की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। सीआईडी ने साफ तौर पर कहा कि ओटीपी मल्टीफैक्टर ऑथेंटिफिकेशन की सुविधा नहीं थी। आवेदन प्रक्रिया में केवल मोबाइल नंबर भरकर फॉर्म सबमिट हो जाता था। न तो आवेदनकर्ता की सही पहचान की गई और न ही उस पर कोई सख्ती से वेरिफिकेशन किया गया। इसके कारण महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के मोबाइल नंबर से दूर बैठे हुए व्यक्ति भी कर्नाटक में वोट कटवा सकते थे। जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस पूरे मामले को उजागर करने की कोशिश की, तो उनके खिलाफ भी तरह-तरह के आरोप लगाए गए। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान ना तो चुनाव आयोग ने प्राइमरी डाटा उपलब्ध कराया, ना ही डेस्टिनेशन आईपी एड्रेस का खुलासा किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस मामले में नेशनल डिबेट होना चाहिए था ताकि सार्वजनिक हित सुरक्षित रह सके, लेकिन आज तक यह मामला एक गूढ़ रहस्य बना हुआ है। सियासी खेल को समझ रही जनता देश का आमजन इस पूरे खेल को अब समझ रहा है और चिंतित भी है। आम नागरिक पूछ रहा है, क्या लोकतंत्र की ये व्यवस्था सही दिशा में जा रही है? क्या सिस्टम में ऐसे लॉजिक हैं, जो वोटरों की सुविधा के नाम पर फर्जीवाड़े को बढ़ावा दे रहे हैं? इस सवाल का जवाब न तो चुनाव आयोग ने दिया, न ही सरकार दे रही है। यह मामला भारतीय लोकतंत्र की मजबूती पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। तकनीकी रूप से जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस केस ने साफ कर दिया कि फर्जीवाड़ा केवल गणित का खेल नहीं, बल्कि सिस्टम की कमजोरी है। इसके समाधान के लिए सरकार और चुनाव आयोग को शीघ्र और पारदर्शी कार्रवाई करनी होगी। अन्यथा आने वाले समय में इस तरह के अनगिनत मामले सार्वजनिक हित और लोकतंत्र के मूलाधार को खोखला कर देंगे। देशवासियों की उम्मीदें अब सीआईडी, चुनाव आयोग और उच्च न्यायालय पर टिकी हैं, ताकि इस मामले की गहराई से जांच कर निष्पक्ष चुनाव व्यवस्था बहाल की जा सके। .../ 9 सितम्बर /2025