लेख
09-Sep-2025
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सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को आदेश दिया है, वह 25 लाख रुपए का मुआवजा उस कैदी को दे, जिसे सजा पूरी होने के बाद भी जेल से रिहा नहीं किया गया था। कैदी को 4 साल 7 महीने अधिक जेल में रहना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने कैदी को मुआवजे के रूप में 25 लाख रुपए देने के आदेश दिए हैं। यह मुआवजा सरकारी खजाने से दिया जाएगा। जो दोषी अधिकारी हैं, उनकी सेहत पर सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का कोई फर्क नहीं पड़ेगा। गलती उन्होंने की, मुआवजे का भुगतान सरकारी खजाने से होगा। आम जनता के टैक्स से सरकारी खजाने से यह मुआवजा दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो मुआवजा देने का आदेश दिया गया है, वह सही कदम है। यह मुआवजा सुप्रीम कोर्ट के आदेश से, जो दोषी अधिकारी थे, उनसे दिलवाया जाना था। ताकि सरकारी अधिकारी भविष्य में अपने काम में लापरवाही नहीं करते। इसका मैसेज भी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच जाता। वह यदि अपने अधिकार और कर्तव्यों का पालन सही तरीके से नहीं करेंगे, तो वह जुर्माने से दंडित हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कैदी को 4 साल 7 महीने अधिक जेल में रखने के मामले को गंभीरता से लिया है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा, जेल में निरुद्ध कैदी को न्याय प्रणाली में हुई चूक की भारी कीमत चुकानी पडी है। सुप्रीम कोर्ट मे सरकार की ओर से जो गलत जानकारी हलफनामें में दी गई थी उस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजी जताई है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि कानून का यदि सही तरीके से पालन नहीं होता है, तो इसका खामियाजा आम नागरिकों को भुगतना पड़ता है। न्यायालय यदि इसी तरीके से फैसला देते समय दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों को भी जिम्मेदार ठहरा कर उन्हें सजा देने का आदेश देने लगेंगी, तो सरकारी पदों पर बैठे अधिकारी अपने काम को पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ करने लगेंगे। यह एक अकेली घटना नहीं है। रोजाना समाचार पत्रों में ऐसे सैकड़ो समाचार छपते हैं, जिसमें सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही से आम जनता को नुकसान उठाना पड़ता है। सरकार के राजस्व, सरकार की संपत्ति तथा लोगों की निजता के अधिकार बाधित होते हैं। सरकारी नियम और कानून के बल पर नागरिकों का शोषण होता है। सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की मिली-भगत से सरकारी संपत्ति की लूट हो रही है। अधिकारों के बल पर नागरिकों को परेशान कर उन्हें लूटा जा रहा है। जब तक ऐसे अधिकारियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा, तब तक स्थितियों पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है। आज हर उत्पीड़न के लिए न्यायालय जाना पड़ता है। वर्षों की लड़ाई के बाद न्यायालय से फैसला मिलता है, लेकिन अधिकांश समय इसी में गुजर जाता है। हम नागरिकों को आर्थिक और सामाजिक शोषण का शिकार होना पड़ता है। सरकारी अधिकारी और कर्मचारी यह मानकर चलते हैं, उनके ऊपर व्यक्तिगत रूप से कोई कार्यवाही नहीं होगी। इस कारण वह अनाप-शनाप मनमाने निर्णय अपने निजी लाभ को प्राप्त करने के लिए लेते हैं। अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारी के प्रति लगातार लापरवाही बरतते हैं। सरकारी सेवा में आने के बाद अधिकारी अपने आपको सरकार का दामाद मानकर चलते हैं। जहां पर उनका स्वागत सत्कार और उनकी विशेष आवभगत होती रहेगी। वह शासन प्रणाली के प्रमुख केंद्र बिंदु होने के कारण नियम और कानून का अपनी तरह से व्याख्या कर सकते हैं। उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। इस स्थिति में बदलाव लाने की जरूरत है। यह बदलाव न्यायपालिका के जरिए ही लाया जा सकता है। जब किसी भी मामले में न्यायालय फैसला करती है। उसमें न्यायालय को लगता है, जिम्मेदार सरकारी अमले ने अपने कर्तव्य पालन में जानबूझकर लापरवाही बरती या दुरुपयोग किया है। जानबूझकर किसी व्यक्ति को फायदा पहुंचाने अथवा अपने निजी फायदे के लिए कर्तव्यों का पालन नहीं किया है। अधिकारों का दुरुपयोग किया है। ऐसी स्थिति में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के ऊपर जिम्मेदारी तय करके दंडित किया जाना चाहिए। यदि न्यायालयों से इस तरह की कार्रवाई होने लगेगी तो निश्चित रूप से नियम और कानूनो का पालन कड़ाई से होने लगेगा। सरकारी अधिकारी जो मनमानी करते हैं उस पर रोक लगेगी। सरकारी पदों पर रहते हुए लाखों करोड़ों रुपए की जो अवैध कमाई भ्रष्ट आचरण से करते हैं उसको नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 4 साल 7 महीने कैदी को अधिक समय तक जेल में रखने पर सरकार को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह मुआवजा सही मायने में उन दोषी अधिकारियों से दिलवाया जाना चाहिए था, जिनकी गलती के चलते ऐसा हुआ। मध्य प्रदेश सरकार को जिम्मेदार अधिकारियों से यह राशि वसूल करनी चाहिए। जिनकी गलती के कारण कैदी को समय के बाद भी जेल में रहना पड़ा। जिससे उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आजादी बाधित हुई। जिसका असर घर ओर उसके परिवार पर पड़ा। यदि ऐसा राज्य सरकार करती है तो निश्चित रूप से सरकारी पदों पर बैठे अधिकारी अपने कर्तव्य और अधिकारों के प्रति ज्यादा सजगता के साथ काम करेंगे। सभी अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग होकर काम करेंगे। ईएमएस / 09 सितम्बर 25