नई दिल्ली,(ईएमएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सख्त कानून के बावजूद ऑफिस में महिलाओं के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट अभी भी हो रहा है। क्यों पुरुषों की सोच नहीं बदली है। वर्क-प्लेस पर सेक्सुअल हैरेसमेंट का जम्मू-कश्मीर से जुड़े मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि एक महिला चाहे घर हो या ऑफिस हमेशा डर, शिष्टाचार और माफी के बीच जीती है। उन्होंने कहा कि शेक्सपियर की कविता महिलाओं की जिंदगी को सही ढंग से बयां करती हैं। आगे पंक्तियां पढ़ी, पहले मेरा डर, फिर मेरा शिष्टाचार, और आखिर में मेरी बात। मेरा डर आपका नाराज होना है, मेरा शिष्टाचार मेरा कर्तव्य और मेरी बात आपसे माफी मांगने के लिए। यह मामला जम्मू-कश्मीर के एक सरकारी अधिकारी से जुड़ा है। उसके खिलाफ दिसंबर 2014 में एक महिला ने शिकायत दर्ज कर सेक्सुअल हैरेसमेंट और धमकी देने का आरोप लगाया था। आसिफ हमीद खान ने हाईकोर्ट में अपील दायर करके कहा कि विभागीय जांच में उन्हें पहले ही बरी कर दिया गया है। इसके अलावा, पुलिस ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट भी दाखिल कर दी थी। इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने उन्हें समन जारी किया है। खान ने इसी आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने खान की अपील खारिज कर दी। बता दें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेक्सुअल हैरेसमेंट पर राज्य कंप्लेंट कमेटी बनाएं सभी राज्य वर्क-प्लेस पर महिलाओं को सेक्शुअल हैरेसमेंट से बचाने के लिए इंटरनल कंप्लेंट कमेटी बनाएं। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने गोवा यूनिवर्सिटी के एक पूर्व प्रोफेसर की याचिका पर दिसंबर 2024 को यह निर्देश दिया था। बेंच ने कहा था कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हैरेसमेंट एक्ट 2013 में आया था। इतने वक्त बाद भी इसे लागू करने में इतनी गंभीर खामियां मिलना चिंताजनक है, क्योंकि इसका राज्यों की कार्यशैली, पब्लिक अथॉरिटी और पब्लिक संस्थानों पर खराब असर पड़ता है। सिराज/ईएमएस 10सितंबर25 ------------------------------------