लेख
11-Sep-2025
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पिछले कुछ सालो में दक्षिण एशिया के देशों में भी जनता में गहरा असंतोष देखने को मिला है.. एक साल पहले श्रीलंका की जनता ने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति को देश छोड़ कर भाग जाने के लिए मजबूर कर दिया था, और राष्ट्रपति भवन में क़ब्ज़ा जमा लिया था... यही बांग्लादेश में घटित हुआ, ऐसे ही पाकिस्तान में भी राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिलती रहती है... कुछ ही साल पहले म्यांमार में भी तख्तापलट कर दिया गया था... अभी बीते कुछ दिनों से नेपाल के युवाओं में गहरा असंतोष देखने को मिला, वहाँ की सरकार ने इन्टरनेट बंद करके युवाओं के आंदोलन को कुचलने की नाकाम कोशिशे की लेकिन युवाओं ने नेपाल की संसद भवन को ही फूंक दिया.. एक ही दिन में प्रधानमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया। नेपाल की सडकों में मंत्रियों को दौड़ा - दौड़ा कर पीटा.. सर्वदलीय बैठक में सामूहिक इस्तीफ़े देने के बाद देश को सुचारू रूप से चलाने की बात प्रधानमंत्री ने की.... सोचिए अगर नेपाल के प्रधानमंत्री इतने लोकतांत्रिक होते तो क्या नेपाल में ये स्थिति पैदा होती? बिल्कुल भी नहीं। नेपाल के प्रधानमंत्री के लिए ये कहावत फिट बैठती है कि जब चिड़िया चुग गईं खेत तो अब पछताए होत का पिछले एक दशक से देश में भाजपा की सरकार है, जिसे कांग्रेस सहित देश की अन्य पार्टियां तानाशाही सरकार कहकर संबोधित करती हैं। जब भी किसी देश में जनता के द्वारा या सैन्य तख्तापलट होता है तो हमारे देश में एक बहस चलने लगती है कि हमारे देश में ऐसे तख्तापलट हो सकता है क्या.. जिसका सीधा सा जवाब है कि भारतीय लोकतंत्र में ऐसा होना मुश्क़िल ही नहीं नामुमकिन है। नेपाल, अफ़गानिस्तान, श्रीलंका, जैसे देशों की तुलना भारत के लोकतंत्र के साथ नहीं हो सकती.... ये छोटे - छोटे मुल्क हैं, वहाँ ये सब हो जाना बहुत बड़ी बात नहीं है। वहाँ का क्षेत्रफल, जनसंख्या, समस्याएं भारत से बिल्कुल ही अलग हैं। छोटे - छोटे देशों में व्यवस्था परिवर्तन, सत्ता परिवर्तन जितना आसान होता है भारत जैसे देश में इतना आसान नहीं होता। नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों में भारत जैसे बहुराज्य नहीं है, हालांकि भारत में बहुत से राज्यों में विपक्ष की सरकारें हैं, जिससे ये नहीं कहा जा सकता कि पूरा देश सत्ता के हाथ में है दूसरा ये कि अन्य राज्य चुनावो में भाजपा हारती भी है, यही कारण है कि ऐसे मुद्दे हवा हो जाते हैं। भारत में सभी की अपनी अलग - अलग समस्याएं हैं। भारत में जहां अधिकांश लोगों को सरकार फ्री की रेवड़ी बांटकर पाल रही है, वहाँ जनता के पास सड़क पर उतरने का माद्दा नहीं है। भारत एक विशाल विविधता वाला देश है, इसलिए यहां कुछ संगठन सत्ता पर कब्जा नहीं जमा सकते... दूसरी बात यहां मार्शल लॉ की भी गुंजाइश नहीं है, पढ़िए नेहरू जी ने 1952 में ही इन्तजाम कर दिया था। भारतीय लोकतंत्र की प्राचीर बहुत मजबूत है वो झोंकों से कमज़ोर नहीं होगी...एक बात और ये जो आपको संविधान बदलने वाली बात कही जाती है वो सिर्फ़ एक जुमला है, evm भी एक जुमला है....विपक्ष जहां जीत जाता है,वहीँ evm का बहाना ध्वस्त हो जाता है.. अभी कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने वोट चोरी कैसे होता है उसे समझाया था, की प्रेस कांफ्रेंस वाला मुद्दा अगर लोगों तक पहुंच गया तो जनता समझ पाएगी। इसी मुद्दे पर सरकार बैकफुट पर आ गई थी.. अभी कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस की थी वो ही सत्य है, दूसरी बात संविधान बदलने चुनाव न कराने जैसी गलतियां भारत में कभी नहीं हो सकतीं... वर्तमान सरकारी चला रहे लोगों को पता चल गया है कि व्यवस्था का फ़ायदा कैसे उठाते हैं... अगर आपको लगता है कि नेपाल जैसा भारत में होगा तो आप राजनीतिक रूप से अपरिपक्व हैं...हाँ इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत की सरकार मनमानी कर रही है, परंतु भारत की स्थिति नेपाल बांग्लादेश जैसे हो सकती है ये भारत में मुमकिन नहीं है। भारत का मीडिया सबसे ज्यादा भृष्ट है, यही कारण है कि देश के लोगों की राजनीतिक चेतना दिन प्रति दिन कम होती जा रही है... जिस वक़्त में देश की मीडिया के सशक्त होने की आवश्यकता थी, तब भारत का मीडिया सरकार एवं कार्पोरेट के सामने बिक गया है। सरकार से तमाम असहमति के बावजूद भी भारत के लोकतंत्र में निरंतर सुधार की कामना करना चाहिए, न कि तख्तापलट की कामना करना चाहिए। भारत का लोकतंत्र हमारे देश के महान नेताओ की देन है हम सब को इसकी रक्षा करनी होगी इसी की रक्षा में हमारी रक्षा निहित है। (लेखक पत्रकार हैं ) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 11 ‎सितम्बर /2025