एक बहुप्रचलित कहावत जो सच भी है, कि विज्ञान वह अमृत है जिससे विकास और विनाश दोनों संभव हैं। दरअसल विज्ञान और तकनीक के सहारे मानव जीवन को बेहतर बनाने से लेकर समाज को आगे बढ़ाने तक का काम किया जा सकता है, लेकिन इसी ज्ञान का दुरुपयोग विनाशकारी परिणामों को जन्म देने वाला साबित हो सकता है। इस तरह विज्ञान खुद में अच्छा या बुरा नहीं होता, बल्कि यह एक ऐसा शक्तिशाली उपकरण है जिसका उपयोग तय करता है कि विकास होगा कि विनाश। सही दिशा में किया जाने वाला उपयोग मानवता के लिए वरदान साबित होता है, लेकिन इसका दुरुपयोग मानव समाज के लिए विनाश का कारण बन जाता है। यहां यह सब इसलिए कहना पड़ रहा है, क्योंकि इस मानसून जो तबाही का मंजर सामने आया है, उसने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कहीं हम विकास के नाम पर विनाश को दावत तो नहीं दे रहे हैं। यह सच है कि इस साल भारत में मानसून में जमकर बारिश हुई है। इस सीजन यानी 1 जून से 2 सितंबर तक 780.8 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य बारिश 721.1 मिमी से 8 फीसदी अधिक है। इस बीच पहाड़ी क्षेत्रों में जो बादल फटने की घटनाएं हुंईं उसमें जान-माल को खासा नुक्सान हुआ है। इससे हटकर भारी बारिश ने पंजाब, बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड आदि राज्यों में क़हर बरपाया है। बाढ़ से राजधानी दिल्ली तक अछूती नहीं रही, यहां अगस्त में ही इतनी बारिश हो गई कि एक दशक का रिकॉर्ड टूट गया। यही नहीं बल्कि उत्तर भारत में बारिश ने अगस्त 2025 में 1901 के बाद 13वां सबसे उच्चतम रिकॉर्ड बनाया। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार संपूर्ण देश में 28 अगस्त से 3 सितंबर के बीच औसत से 48 फीसदी अधिक बारिश दर्ज हुई है। यह तो रही आंकड़ों की बात लेकिन बारिश के दौरान जो जन-धन की हानि हुई वह एक अलग ही कहानी कहती नजर आ रही है। पंजाब के सभी जिले बाढ़ की चपेट में आए, जिससे हाहाकार मच गया। 1900 से ज्यादा गांव त्राहिमाम करते किसी तरह अपने अस्तित्व को बचाते दिखे हैं। इस बारिश और बाढ़ जनित घटनाओं में करीब 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। लाखों एकड़ की फसल बर्बाद हो गई। वहीं हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में भी बारिश ने तबाही ला दी, जिससे हाहाकार मचा हुआ है। हिमाचल में भारी तबाही के बीच 1200 से ज्यादा सड़कें टूट गईं, जिससे कई इलाकों का संपर्क कट गया। इन सब से मंडी, कुल्लू, शिमला, सिरमौर, चंबा जिले बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इस मानसून की बारिश के कारण हिमाचल का इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह हिल गया। बारिश के दौरान हुए भूस्खलन से कई लोगों की मौत हो गई, तो गांव के गांव पूरी तरह से तबाह हो गए। बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल समेत पूर्वी भारत में भी बाढ़ ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया हुआ है। अब चारों ओर राहत व बचाव कार्य युद्धस्तर पर चलाए जा रहे हैं। अब सवाल यह उठ रहा कि मानसून में बारिश होना कोई नई बात तो नहीं है, लेकिन लगातार जान-माल को नुक्सान को आंकड़ा क्यों बड़ रहा है? इसके लिए सिर्फ बारिश को दोषी ठहरा देना उचित नहीं होगा, बल्कि मानव के दुस्साहसिक कार्यों पर भी नजर डालनी होगी। यह देखना होगा कि हम हरे-भरे जंगलों को किस निर्दयता के साथ काटकर कंकरीट के जंगल खड़े कर रहे हैं। नदी-नालों को खत्म करने के लिए उनके तटबंधों को खत्म कर उनके अंदर तक इंसानी पैठ बना रहे हैं। रही सही कसर तब पूरी हो जाती है, जबकि विकास और सुविधाओं के नाम पर पृथ्वी की अंदरुनी सतह को खोखला करने से कोई पीछे नजर नहीं आता है। तेल-पानी, गैस और तरह-तरह के खनिज निकालने के नाम पर धरती को खोखला कर दिया जा रहा है। ऐसे में प्रकृति स्वयं संतुलन नहीं बनाएगी तो क्या करेगी? ईएमएस/13/09/2025