लेख
13-Sep-2025
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- हिन्दी दिवस : संस्कृति, संवाद और आत्मगौरव का उत्सव (हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष) हर वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाने वाला हिन्दी दिवस उस गौरव की स्मृति के रूप में मनाया जाता है, जब हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा घोषित किया गया था। यह दिवस हिन्दी की समृद्धि, स्वीकार्यता, रचनात्मकता और वैश्विक विस्तार का उत्सव है। निरंतर बढ़ती हिन्दी शक्ति आज न केवल भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक और प्रशासनिक परिदृश्य को आकार देती है बल्कि विश्व मंच पर भी अपनी प्रगाढ़ छाप छोड़ रही है। आज दुनियाभर में हिन्दी चाहने वालों, बोलने या पढ़ने-समझने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हिन्दी को लेकर भारतीय और विदेशी विद्वानों, साहित्यकारों तथा विभूतियों का आदर भाव वर्षों से रहा है। डा. फादर कामिल बुल्के, जिन्होंने हिन्दुस्तानी संस्कृति को आत्मसात किया, हिन्दी को गृहिणी की संज्ञा देते हुए कहा था कि यह भारतीय जीवन का अभिन्न हिस्सा है। संस्कृत को तो वे मां मानते थे और अंग्रेजी को नौकरानी। इसी तरह आयरिश प्रशासक जॉन ग्रियर्सन ने हिन्दी को संस्कृत की बेटियों में सबसे सुंदर और शिरोमणि बताया। ऐसे तमाम उदाहरण इस बात के प्रमाण हैं कि हिन्दी, शब्द और विचार के धरातल पर विभिन्न भाषाओं से जितनी आत्मीयता रखती है, उतनी ही भारत के जनमानस से जुड़ी है लेकिन दुखद है कि आज भी पुनरुत्थानवादी मानसिकता वाले कुछ लोग हिन्दी की व्यापकता, समृद्धि और ताकत को नजरअंदाज करते हैं और संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी को स्थान नहीं मिलने की बात पर कुतर्क करके उसके वैश्विक पक्ष को कमतर आंकते हैं। हालांकि ऐसी नकारात्मक चर्चाओं से न हिन्दी का कुछ भला हो सकता है, न ही उसका अस्तित्व डिग सकता है। तथ्य यही है कि आज विश्वभर में हिन्दी बोलने वालों का आंकड़ा करोड़ों में है और यह निरंतर बढ़ रहा है। हिन्दी की ताकत को जानना हो तो उसके सांस्कृतिक, भावनात्मक और रचनात्मक विस्तार को देखना होगा। मातृभाषा का ज्ञान किसी भी व्यक्ति के मन की पीड़ा का सबसे अच्छा समाधान है। महापुरुषों, विद्वानों और नेताओं ने समय-समय पर हिन्दी भाषा के महत्व को रेखांकित किया है। पुरुषोत्तमदास टंडन मानते थे कि जीवन के हर क्षेत्र में हिन्दी अपनी भूमिका निभाने में समर्थ है। महात्मा गांधी ने हिन्दी को स्वतंत्रता संग्राम के दौरान संवाद व जनसंपर्क का सबसे शक्तिशाली माध्यम माना। उनके शब्द थे कि सम्पूर्ण भारत की पारस्परिकता के लिए ऐसी भाषा चाहिए, जो जनता का बड़ा भाग जानता-समझता हो। गांधीजी कहते थे, ‘दिल की कोई भाषा नहीं है, दिल से दिल संवाद करता है और राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।’ ये कथन आज भी वैसी ही सार्थकता के साथ जीवंत हैं। अमेरिकी चिकित्सक वॉल्टर चेनिंग तो यह मानते थे कि विदेशी भाषा का किसी स्वतंत्र राष्ट्र की शिक्षा एवं प्रशासन की भाषा होना सांस्कृतिक दासता है। माखनलाल चतुर्वेदी और राहुल सांस्कृत्यायन ने हिन्दी को देश और भाषा की विरासत, सांस्कृतिक धरातल और अधिष्ठान के रूप में देखा। बालकृष्ण शर्मा नवीन ने तो यहां तक कहा कि राष्ट्रीय एकता का बंधन केवल हिन्दी ही जोड़ सकती है। हिन्दी की ऊर्जा और आत्मबल का उदाहरण महात्मा गांधी के हिन्दी प्रेम का एक प्रसंग भी है। सन् 1917 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजी में भाषण दिया था। गांधीजी ने तिलक को स्पष्ट समझाया कि देशवासियों के साथ अपनी ही भाषा में संवाद ही सही अर्थों में दिलों तक पहुंच सकता है। यह भावप्रवण संवाद भारत के हर नागरिक के गौरव का स्रोत है। महात्मा गांधी ने विविध अवसरों पर हिन्दी को राष्ट्र की आत्मा कहा था। आज हिन्दी का विस्तार भारत तक सीमित नहीं रहा। कई देशों में हिन्दी लोगों के दिलों में बसती है, जहां की स्थानीय भाषाओं के साथ-साथ हिन्दी भी संगठित रूप से बोली जाती है। दुनियाभर में सैंकड़ों विश्वविद्यालयों, शैक्षिक संस्थाओं, शोध केंद्रों और अनगिनत प्लेटफॉर्म्स पर हिन्दी पढ़ाई जाती है, शोध होती है और यह वहां अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान की भाषा बन चुकी है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, विश्वभर में लगभग 75 करोड़ लोग हिन्दी बोलते समझते हैं और एथ्नोलॉग जैसी अंतर्राष्ट्रीय भाषायी संस्थाओं की रिपोर्ट के मुताबिक, यह विश्वभर में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है, जो तेजी से ऊपर की ओर बढ़ रही है। हिन्दी का वैश्विक सांस्कृतिक प्रभाव भी आश्चर्यचकित करता है। भारतीय फिल्म उद्योग, जिसे दुनियाभर में ‘बॉलीवुड’ के नाम से जाना जाता है, हर साल करीब 1500 फिल्में हिन्दी में बनाता है। ये फिल्में भारत में ही नहीं, अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, खाड़ी देशों सहित अनेक देशों में देखी जाती हैं। हिन्दी फिल्मों, गीतों, साहित्य और कला का प्रभाव विदेशी मंचों, सांस्कृतिक समारोहों, मीडिया एवं एफएम चैनलों तक फैला हुआ है। यूएई में हिन्दी एफएम चौनल स्थानीय लोगों की खास पसंद बन चुके हैं। हिन्दी फिल्म अभिनेता, निर्माता व कलाकार विदेशों में शो आयोजित करते हैं, जिससे भारतीय संस्कृति और हिन्दी भाषा का विस्तार होता है। जहां-जहां भारतवंशी बसे हैं, वहां हिन्दी विशेष सम्मान के साथ जीवंत है। यह यथार्थ हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है। वैश्वीकरण के दौर में हिन्दी व्यापार, वाणिज्य, शिक्षा, तकनीकी और प्रशासन के क्षेत्र में निरंतर बढ़ रही है। फेसबुक, गूगल, यूट्यूब जैसी कंपनियों ने हिन्दी को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है। भारत में 80 प्रतिशत मोबाइल उपभोक्ता हिन्दी में सामग्री अपनाते हैं। इंटरनेट, सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर हिन्दी की उपस्थिति लगातार बढ़ रही है और इसका प्रसार इतनी गति से हो रहा है कि कुछ ही वर्षों में हिन्दी इंटरनेट की प्रमुख भाषा बन सकती है। हिन्दी की संवैधानिक सुरक्षा भारत में संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 के तहत निश्चित है। यह धाराएं हिन्दी के प्रचार-प्रसार, स्वीकार्यता और संरक्षण का मजबूत आधार हैं। यह न केवल भारत की आधिकारिक भाषा है बल्कि सम्पर्क भाषा, प्रशासन और विधि के क्षेत्र में इसका प्रयोग निर्णायक रूप से हो रहा है। भारत के शैक्षिक संस्थानों, सरकारी कार्यालयों और सांस्कृतिक आयोजनों में हिन्दी को सम्मानपूर्वक अपनाया गया है। विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना, हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता दिलवाने की पहल और डिजिटल क्षेत्र में हिन्दी सशक्तीकरण, ये सभी कदम हिन्दी के वैश्विक मंच पर सशक्तीकरण की दिशा में उठाए गए हैं। कुल मिलाकर, हिन्दी दिवस केवल एक दिन का उत्सव नहीं, यह हमारी संस्कृति, भाषायी आत्मसम्मान और राष्ट्रीय एकता का दिन है। इस दिन हर भारतीय को यह संकल्प लेना चाहिए कि हिन्दी को रचनात्मक, सुंदर और समृद्ध बनाए रखने में अपना योगदान दे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का सपना केवल राजभाषा का प्रतिष्ठापन नहीं था बल्कि भारत की आत्मा, उसकी विविधता और सांस्कृतिक गौरव की अभिव्यक्ति थी, जिसे हिन्दी ने बखूबी आकार दिया है। हिन्दी भाषा की बढ़ती ताकत और वैश्विक प्रतिष्ठा आज न केवल भारत की बल्कि विश्व संस्कृति की सबसे मजबूत और सुंदर कड़ी बन चुकी है। इसलिए, हिन्दी दिवस के अवसर पर यही प्रेरणा लें कि जीवन के हर क्षेत्र में हिन्दी का उत्कर्ष हो, इसकी भाषायी, सांस्कृतिक, साहित्यिक और तकनीकी शक्ति निरंतर बढ़ती रहे और आगामी पीढ़ियां हिन्दी को न केवल संवाद का बल्कि वैश्विक अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावशाली माध्यम बनाएं। (लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार तथा प्रदूषण मुक्त सांसें, तीखे तेवर, दो टूक इत्यादि कई चर्चित हिन्दी भाषी पुस्तकों के लेखक हैं) ईएमएस / 13 सितम्बर 25