अंतर्राष्ट्रीय
14-Sep-2025
...


इस्लामाबाद(ईएमएस)। अमेरिका ने एक सीक्रेट ऑपरेशन चलाकर एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को ढेर किया था। उस वक्त आसिफ अली जरदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। उनके निकट सहयोगी रहे शख्स ने बड़ा खुलासा किया है। आसिफ अली ज़रदारी के प्रवक्ता रहे और करीबी सहयोगी फरहतुल्लाह बाबर की किताब द जरदारी प्रेसीडेंसी: नाउ इट मस्ट बी टोल्ड ने उस समय पाकिस्तान की आंतरिक हलचल और लीडरशिप के रिएक्शन पर कई नई बातें उजागर की हैं 50 पन्नों का विस्तृत विवरण सिर्फ एबटाबाद ऑपरेशन पर केंद्रित है, जिसमें बाबर ने ‘सदमा, भ्रम और पारालिसिस जैसी स्थिति’ का वर्णन किया है। रिपोर्ट के अनुसार, इस किताब में लिखा है कि जिस समय अमेरिकी कमांडो एबटाबाद में ओसामा को निशाना बना रहे थे, इस्लामाबाद में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-क्यू (पीएमएल-क्यू) के बीच सत्ता-साझेदारी को लेकर खींचतान चल रही थी। बाबर लिखते हैं, ‘यह एहसास बेहद शर्मनाक था कि देश के रक्षक इस घुसपैठ से पूरी तरह अनजान रहे, जबकि नेता आपस में कुर्सी की लड़ाई में उलझे थे।हमले के तुरंत बाद सुबह 6.30 बजे राष्ट्रपति भवन में ज़रदारी ने तत्काल बैठक बुलाई, जिसमें विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार और विदेश सचिव सलमान बशीर भी मौजूद थे। बाबर याद करते हैं कि उन्होंने ज़रदारी से कहा, यह या तो मिलीभगत थी या फिर घोर अक्षमता। सेना और आईएसआई प्रमुखों के खिलाफ जांच और कार्रवाई होनी चाहिए। पाकिस्तान एक कठिन स्थिति में फंस गया था। बाबर के अनुसार, वह न तो इस ऑपरेशन का श्रेय ले सकता था और न ही अपनी खुफिया और सैन्य विफलता स्वीकार कर सकता था। पाकिस्तान को अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया देने में 14 घंटे लग गए। जब बयान जारी हुआ कि अमेरिका के साथ साझा की गई खुफिया जानकारी ने इस अभियान को संभव बनाया। बाबर को यह दावा खोखला और अविश्वसनीय लगा। उनका कहना है कि यह झूठ का जाल था, जिसे कोई गंभीरता से नहीं ले सका। बाबर लिखते हैं कि वे मानते थे यह समय था खुफिया तंत्र के सुधार का, लेकिन राष्ट्रपति ज़रदारी ने केवल जांच आयोग बनाने की बात की। वह भी किसी को दंडित करने के उद्देश्य से नहीं। ज़रदारी ने उन्हें बताया कि एक ‘महत्वपूर्ण देश’ ने उन्हें सेना के जनरलों पर कार्रवाई न करने की सलाह दी थी। नतीजतन कोई जवाबदेही तय नहीं हुई, न कोई ढांचा बदला। बाबर का निष्कर्ष है कि सिविलियन लीडरशिप ने हिम्मत खो दी, सेना ने अपने सम्मान की रक्षा की और विदेशी ताकतें भी सुधार नहीं चाहती थीं। इस तरह सुधार का मौका खो गया। वीरेंद्र/ईएमएस 14 सितंबर 2025