अंतर्राष्ट्रीय
14-Sep-2025
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भारत में भी वीपी सिंह और इंदिरा की सरकारें गिरी नई दिल्ली (ईएमएस)। नेपाल में जिस तरह से युवाओं का आंदोलन भड़का उसकी तस्वीर पूरी दुनिया ने देखी। फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित सोशल मीडिया साइट्स पर बैन से शुरू हुआ विवाद बड़े जनाक्रोश में बदल गया। इसके निशाने पर प्रधानमंत्री ओली की कुर्सी आ गई। उन्हें न केवल अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा बल्कि जान बचाने के लिए खुफिया जगह पर छिपने को भी मजबूर हो गए। ये कोई पहली बार नहीं है, जब छात्रों का आक्रोश इसकदर भड़का की निशाने पर सत्ता आ गई। नेपाल से पहले चीन, अमेरिका, फ्रांस के साथ-साथ भारत भी युवा प्रदर्शनकारियों के निशाने पर आ चुका है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां छात्र आंदोलनों ने कई बार राजनीति को प्रभावित किया है। सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों के मामले अभी भी चल रहे। तेलंगाना राज्य की मांग जैसे कई क्षेत्रीय आंदोलनों में छात्रों का बड़ा योगदान था। भारत में भी छात्र आंदोलनों का दिख चुका है बड़ा असर इसके पहले वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी। छात्रों ने इमरजेंसी के खिलाफ प्रदर्शनों में भी बड़ी भूमिका निभाई थी। छात्र-समर्थित जेपी आंदोलन से 1977 के चुनावों में इंदिरा गांधी हार गई थीं। कई छात्र नक्सल आंदोलन में भी शामिल हुए थे। यह आंदोलन 60 के दशक में शुरू हुआ था। भारत की आजादी में भी छात्रों का बड़ा योगदान था। जेपी के नेतृत्व में ऐसा आंदोलन छिड़ा, जिसने तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार को हिला दिया था। इसके अलावा आरक्षण आंदोलन की आंच केंद्र को हिलाने में सफल रही थी। इन आंदोलनों में असम गण परिषद के नेतृत्व में भी हुआ छात्र आंदोलन शामिल था, जिसके बाद असम में युवा नेता प्रफुल्ल महंत उभरे, जिन्होंने युवा सीएम के तौर पर राज्य की बागडोर भी संभाली। असम गण परिषद का गठन 1985 में हुआ था। यह पार्टी असम आंदोलन के बाद बनी थी। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ऑल असम गण संग्राम परिषद ने मिलकर पार्टी को बनाया था। प्रफुल्ल कुमार महंत पार्टी के पहले अध्यक्ष थे। वहीं विदेश में फ्रांस की छात्र क्रांति बहुत मशहूर है। यह राजनीतिक, सांस्कृतिक प्रदर्शन था, इसमें मजदूरों ने भी साथ दिया। दो-तिहाई मजदूरों ने बेहतर काम करने की स्थिति की मांग की। उस समय सरकार बच गई, लेकिन फ्रांस बदल गया। रूढ़िवादी सोच की जगह खुले विचारों वाला समाज बना। लोगों को अच्छी तनख्वाह मिलने लगी। 1989 में चीन के तियानमेन स्क्वायर में बड़ा आंदोलन 1989 में भारत के पड़ोसी मुल्क चीन के तियानमेन स्क्वायर में आंदोलन हुआ। हालांकि चीन में हुए इन प्रदर्शनों को दबा दिया था। आज भी इन प्रदर्शनों का जिक्र करने से डरते हैं। इससे पता चलता है कि ये घटनाएं कितनी महत्वपूर्ण थीं। छात्र क्या मांग रहे थे? वे ज्यादा सोचने की आजादी, बाजार की आजादी और लोकतंत्र चाहते थे। क्या शी जिनपिंग ने विरोध की भावना को खत्म कर दिया है? 1979 का ईरान में आंदोलन ईरान में शाह को हटाने में यूनिवर्सिटी के छात्रों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। आजकल छात्र धर्मनिरपेक्षता और अमेरिका से अच्छे संबंध चाहते हैं। 50 साल पहले वे इन्हीं चीजों का विरोध कर रहे थे। नई सरकार भी पुरानी सरकार की तरह ही लोगों को दबा सकती है। अयातुल्ला का सख्त रवैया छात्रों को आंदोलन करने के लिए उकसा सकता है। लैटिन अमेरिका का बड़ा प्रदर्शन 2011-13 में चिली में छात्रों ने शिक्षा में असमानता की नीतियों का विरोध किया। 1968 में मेक्सिको सिटी ओलंपिक से पहले मेक्सिको में छात्रों के आंदोलन को बुरी तरह दबा दिया गया था। 1960 और 70 के दशक में अर्जेंटीना में छात्रों ने सैन्य तानाशाहों का विरोध किया। निकारागुआ में छात्रों ने ओर्टेगा सरकार को चुनौती दी। लैटिन अमेरिका में छात्र आंदोलनों की लिस्ट बहुत लंबी थी। वे राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं। वे मार्क्सवादी सिद्धांतों को मानते हैं। अमेरिका में भी सड़क पर उतर चुके हैं छात्र अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र है। यहां के छात्र हमेशा से सक्रिय रहे हैं। 1960 और 70 के दशक में छात्रों ने अलगाव और वियतनाम युद्ध का विरोध किया। उन्होंने अमेरिका के लोगों की सोच को बदल दिया। अमेरिका में छात्र आंदोलन किसी एक जगह तक सीमित नहीं रहे। 1980 के दशक में छात्रों ने रंगभेद का विरोध किया। आशीष/ईएमएस 14 सितंबर 2025