लेख
15-Sep-2025
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हिंदी की जड़ें संस्कृत में हैं और अपभ्रंश से होती हुई पुरानी हिंदी, फिर आधुनिक हिंदी के रूप में विकसित हुई है। आज भारत की राजभाषा है, और इसे कई लोग पहली, दूसरी, या विदेशी भाषा के रूप में बोलते हैं.हिंदी में रामायण की सबसे लोकप्रिय कृति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस है, जो अवधी भाषा में लिखी गई है। इससे पहले, महर्षि वाल्मीकि ने मूल रामायण को संस्कृत भाषा में लिखा था, जिसका नाम भी वाल्मीकि रामायण है। गोस्वामी तुलसीदास जी का नाम भारतीय भक्ति साहित्य में विशिष्ट स्थान रखता है। उनकी प्रमुख कृति श्री रामचरितमानस ने हिंदी भाषा को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं और रामकथा को अत्यंत सरल एवं भावपूर्ण रूप में जन-जन में स्थापित किया। तुलसीदास जी का जीवन और साहित्य हमें सद्भाव, आस्था और सनातन संस्कारों की अमर विरासत से परिचित कराता है। हम उनके जीवन, कार्यों, भक्ति आंदोलन और भारतीयता में उनके अमूल् योगदान का सम्यक् चिंतन करेंगे।तुलसीदास जी का जन्म संयोगवश 1532 ई. में माता रत्नावली के घर हुआ था। बचपन से ही ऋषि-मुनियों के जीवन के प्रति उनमें गहरी श्रद्धा थी। बचपन में ही सीता-राम नाम के प्रथम कीर्तन ने उनके हृदय में रामभक्ति जागृत कर दी। उनकी शिक्षा शिष्य-अध्यापकों से नहीं, बल्कि ग्राम्य जीवन में पाए जाने वाले लोकगीतों, भजनों और काव्यों से हुई। इस प्रकार की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ने उन्हें लोकभाषा और लोकभावना से सहज ही जोड़ दिया।रामचरितमानस तुलसीदास जी के जीवन का चरमोत्कर्ष था। अवधी भाषा में लिखा गया यह महाकाव्य, जिसके कारण यह ग्राम्य जीवन में भी सहज रूप से समाहित हो गया।बालकाण्ड से उत्तरकाण्ड तक, राम का प्रत्येक चरित्र सागर के समान है, नीति, दर्शन और भक्ति का अनूठा मिश्रण, श्लोकों में गहन अर्थ और छंदों में मधुरता।इन विशेषताओं ने रामचरितमानस को न केवल एक धार्मिक ग्रंथ, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों में एक मार्गदर्शक भी बनाया।तुलसीदास जी की साहित्यिक भाषा ने भारतीय समाज को गहन आध्यात्मिक अनुभूति से परिचित कराया। उनके द्वारा रचित काव्यों ने समाज पर गहरे प्रभाव छोड़े। 1. सामाजिक समरसता: जाति, वर्ग और लिंग के भेदभाव के बिना सभी के लिए भक्ति सुलभ बनाई।2. उपासना की सरलता: जटिल कर्मकांडों के स्थान पर सरल उपासना पद्धतियाँ प्रस्तुत की गईं।3. नैतिक शिक्षा: राम के आदर्श चरित्र के माध्यम से नैतिकता, त्याग और कर्तव्य का संदेश दिया।इन गुणों ने रामचरितमानस को हर घर, हरिजन, किसान, कारीगर, व्यापारी और राजकुमार के हृदय में जीवंत कर दिया।तुलसीदास जी ने सनातन संस्कृति की जड़ें मजबूत कीं और भारतीयता का स्वर बुलंद किया। उन्होंने रामायण के प्रमाणों को न केवल भारतीय सीमाओं तक सीमित रखा, बल्कि उसे वैश्विक मानवता के आदर्श के रूप में भी प्रकट किया। उनके भक्ति गीतों और दोहों ने नैतिकता, सत्कर्म और सामाजिक उत्तरदायित्व का प्रबल आह्वान किया।तुलसीदास जी के गीतों में राम नाम पुण्य का सार है, जीवन में प्रेम बहा दीनदयालु रामचंद्र, विनती हमारी स्वीकार ये पद लोगों को नैतिक आधार पर खड़ा करने का एक प्रयास हैं।भक्ति आंदोलन में तुलसीदास की भूमिका अविस्मरणीय है। उन्होंने मध्यकालीन भारत में अनेकता में एकता का जो संदेश दिया, उसने देश की सांस्कृतिक एकता को नवजीवन प्रदान किया। गाँव-गाँव में भक्ति संगीत, कीर्तन, पदयात्रा और रामलीला के आयोजनों ने लोगों को एकता का एहसास कराया। उनसे प्रेरित होकर अनेक संतों और ऋषियों ने राम नाम का प्रचार किया और राममय वातावरण का निर्माण किया।आज, जब दुनिया में तर्क, वैज्ञानिकता और तात्कालिकता का बोलबाला है, तुलसीदास जी का संदेश हमें मानसिक शांति, समाज की सहिष्णुता और आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग दिखाता है।तनाव और मानसिक अशांति के समय रामचरितमानस का पाठ मन को शांति प्रदान करता है। सामाजिक विभाजन और हिंसा के युग में रामराज्य का आदर्श प्रेरणा देता है, यह युवाओं के लिए कर्तव्य और चरित्र निर्माण के आदर्श स्थापित करता है।इस प्रकार, तुलसीदास जी का मानस आज भी एक कालजयी मार्गदर्शक बना हुआ है।पूज्यपाद तुलसीदास जी द्वारा रचित सभी ग्रंथों में प्रमुख हैं, श्री रामचरितमानस, विनयपत्रिका, कविता-विलास, दोहावली आदि अन्य। अतः उनका साहित्य न केवल धार्मिक प्रवचन का उदाहरण है, बल्कि हिंदी भाषा, साहित्य और भारतीय संस्कृति की सर्वांगीण दृष्टि का भी प्रतिनिधित्व करता है।तुलसीदास जी की अविरल वाणी का प्रवाह सदैव लोगों को श्री राम के चरित्र, आदर्शों और मार्ग पर अग्रसर करता रहेगा। उनका जीवन, उनका साहित्य और उनका भक्तिमय चिंतन हमें न केवल आध्यात्मिक उत्थान प्रदान करता है, बल्कि नैतिक और सामाजिक जागृति की सर्वोत्तम नींव भी रखता है। हम उनकी जयंती पर उन्हें नमन करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उनकी अमर गाथा हमारे हृदय में सदैव जीवित रहे।अतः श्री रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर हमें उनके उच्च आदर्शों को आत्मसात कर अपने जीवन को राममय बनाना चाहिए।भारत में भगवान राम जी की महिमा क़ो उजागर करने गोस्वामी तुलसीदास ने भारत क़ो राममई किया क्योंकि पहले जो पंडित थे वो पहले जातपात आपस में बड़ा बनने की चाहत में बाल्मीकि रामायण क़ो संस्कृत में ही पाठ करते और इस तरह लोगों में संस्कार में कमी आई इसी क़ो दूर करने निकलें गोस्वामी तुलसीदास जी ने उसे हिंदी में ही लोगों क़ो समझाना चालू किया और जन जन में राम के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित की गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन भी काफी संघर्ष से जुड़ा रहा उनके जन्म के समय अशुभ घटनाओं के कारण, उन्हें चौथी रात को उनके माता-पिता ने त्याग दिया, अपनी रचनाओं कवितावली और विनय पत्रिका में, तुलसीदास ने अपने माता-पिता द्वारा अशुभ ज्योतिषीय विन्यास के कारण जन्म के बाद उन्हें त्यागने दिया ।चुनिया बच्चे को अपने गाँव हरिपुर ले गई और साढ़े पाँच वर्ष तक उसकी देखभाल की, जिसके पश्चात् उसकी मृत्यु हो गई। रामबोला को एक दरिद्र अनाथ के रूप में स्वयं की देखभाल करने के लिए छोड़ दिया गया था, और वह भिक्षा मागते हुए दर-दर भटकता रहा। ऐसा माना जाता है कि देवी पार्वती ने एक ब्राह्मण महिला का रूप धारण किया और रामबोला को हर दिन भोजन कराया। बाद में साधु अनन्ताचार्य के शिष्य बने व दस वर्ष की उम्र में ही सभी वेदों का ज्ञान हुआ कुछ काल राजापुर रहने के बाद वे पुन: काशी चले गये और वहाँ की जनता को राम-कथा सुनाने लगे। कथा के दौरान उन्हें एक दिन मनुष्य के वेष में एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमान ‌जी का पता बतलाया। हनुमान ‌जी से मिलकर तुलसीदास ने उनसे श्रीरघुनाथजी का दर्शन कराने की प्रार्थना की। हनुमान्‌जी ने कहा- तुम्हें चित्रकूट में रघुनाथजी दर्शन होंगें। इस पर तुलसीदास जी चित्रकूट की ओर चल पड़े।चित्रकूट पहुँच कर उन्होंने रामघाट पर अपना आसन जमाया। हर दिन की भांति वे भगवान राम जी की पूजा करते और सभी क़ो चन्दन लगा जय श्री राम क़ो बोलने क़ो कहते एक दिन भगवान राम और लखन वहाँ चन्दन लगाने आएं और तुलसीदास जी पहचान ना सके तो उन्होंने चन्दन लगाने के बाद जय श्री राम बोलने क़ो कहा लक्ष्मण जी ने बोला भगवान राम चुप हो गए तब तुलसीदास कहते हैं आप भगवान राम क़ो नहीं जानते वह परमात्मा है जो सभी की रक्षा करता है तभी भगवान श्री राम जय श्री राम बोलकर अन्तर्याध्यान हो गएयह संवत्‌ 1607 की मौनी अमावस्या को बुधवार की घटना है हनुमान ‌जी ने ने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा:चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥ इसके बाद रामचरित्रमानस क़ो लिखने वाराणसी के अस्सी घाट में आये वहाँ के साधु संतो ने उनका हिंदी में रामचरित्र मानस का घोर विरोध किया बाद में सबों ने विश्वनाथ मंदिर में अपना अपना ग्रन्थ रखा सुबह देखा तो रामचरित्र मानस सबसे उपर था यह देखकर सबों ने उनका सम्मान किया और उनकी शक्ति क़ो पहचाना और उसका कारण पूछा तब तुलसीदासजी ने उत्तर दिया की हिंदी में मैं इसे इसलिए लिख रहा हूँ की यह हर हिन्दू के घर घर में हो और राम नाम की महिमा क़ो पहचान सके उनकी कीर्ति और व्यक्तित्व का प्रकाश हमें बलवान, दयालु और धार्मिक बनाकर राष्ट्र एवं समाज की सेवा हेतु प्रेरित करता रहे।पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमनश्री रामचरितमानस के रचयिता, आस्था, सद्भाव और सनातन संस्कारों के अखंड वाणी, भक्ति और भारतीयता को स्वर देने वाले प्रसिद्ध भक्त , पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास को श्री राम के मार्ग पर चलने का अवसर प्रदान किया क्योंकि उन्होंने हिंदी में राम कथा कह कर सुनाया और जो गिने चुने लोगों के पास थी और संस्कृत में कहते थे जिसे कुछ लोग नहीं समझ पाते और डर का माहौल पैदा कर इसका प्रचार नहीं हुआ वो रामचरित मानस में पढ़ा जो लगभग सबके घर में होगी क्योंकि उनकी आस्था और निस्वार्थ भाव से रचना की आखिर आज हिंदी का प्रचार क्यों नहीं हो पा रहा है क्योंकि कुछ लोग इसके नाम पर इसका गलत इस्तेमाल कर रहें हैं इसके नाम पर पत्रिका छापते हैं सरकारी पैसे से और अपने ही लोगों का लेख बार बार छापते हैं और मानदेय मिलता है हालांकि सभी संस्था ऐसी नहीं है जो सही में हिंदी का काम निस्वार्थ भाव से करती है उससे लोग जुड़ते है और पत्रिका की गरिमा भी बढ़ती है अच्छे लेखक का लेख कहीं ना कहीं तो छप जायेगा लेकिन जो अच्छे लेखकों का लेख पढ़ते भी नहीं है उनके पत्रिका का स्तर गिरता है और लोगों में यही मैसेज जाता है अपनी डफली अपना राग दूसरे को जब तक मौका नहीं देंगे तब तक हिंदी का विकास नहीं होगा हालांकि जो पत्रिका निजी संस्था से निकलती है वो बराबर ठोक बजा कर एक उच्च स्तरीय पत्रिका का बनाने का पूरा प्रयास करती है क्योंकि उसे ऐसा नहीं करने पर लोगों के नापसंद होने का डर रहता है और मार्केट में अपना दबदबा बनाती है जो आपको बुक स्टाल पर रखी गई पत्रिका से ही मालूम हो जायेगा की किसमे कितना दम है अतः जब तक हिंदी को गिने चुने लोगों के हाथ में रहेगा तो इसका विकास नहीं होगा ऐसा ही कई आयोजन से भी है जब भी हिंदी का क़ोई हिंदी का कार्यक्रम होता है पहले देखते हैं बड़ा लोग कौन है जिसे हिंदी आती भी नहीं है उससे अच्छा एक के जी का बच्चा अच्छा बोल लेता है और सीखना भी नहीं चाहते उन्हें मंच पर बड़े सम्मान से मुख्य अथिति के रूप बुलाया जाता है और जो हिंदी के जानकर लोग हैं उन्हें पद के आधार पर बुलाते तक नहीं यही हाल किसी सम्मान या पुरस्कार देने में भी हो रहा हैं हालांकि सभी ऐसा सब नहीं कार्यक्रम में करते लेकिन ऐ प्रथा देखने को मिलती है इससे हिंदी का प्रचार जनमानस तक नहीं हो पाता है.इसलिए जब तक अपने अंदर निस्वार्थ और ईमानदारी की भावना पैदा नहीं होगा तब तक हिंदी का विकास नहीं हो सकता है ऐ सही है हिंदी के किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बड़े पद का हो लेकिन ऐ भी जरुरी है की अगर हिंदी का क़ोई प्रचार निस्वार्थ भाव से कर रहा हो तो उसका भी सम्मान हो ऐ कुछ गिने चुने लोगों के हाथ में ना आकर पुरे देश में फैले और हम है हिंदुस्तानी की भावना पैदा हो तभी हिंदी को दर्जा मिलेगा जहाँ तक ऑफिस का सवाल है इसमें भी लॉबी चलती आ रही है शुरुआत में मैं जब ऑफिस में ज्वाइन किया हिंदी में ही अपने आदमी को बोलकर खुब काम कराया बाद में मैं रिपोर्ट एक ऐसे महिला को करने लगा जो काम कम इंग्लिश ज्यादा बोलती थी और हिंदी बोलना एक अपराध की तरह समझती थी एक दिन तो ऐसा हुआ की हिंदी के एक कार्यक्रम में जाते देख वहाँ से काम के बहाने बुला लिया हिंदी से आखिर इतना नफरत क्यों मेरी अगर फैमली नहीं होती तो कब का छोड़ चुका होता एक बार तो आत्महत्या के इरादे से निकला तभी भगवान राम ने समझाया इससे उसका नहीं तुम्हारा नुकसान होगा समय का इंतजार करो और कुछ समय तक मैं डिप्रेशन में भी चला गया लेकिन उस भगवान राम की कृपा देखिए की कुछ साल बाद एक ऐसे सीनियर को रीपोर्ट करना का सुनहरा अवसर मिला जो हिंदी के कार्यक्रम में जब भी कहीं जाना होता बहुत ही ख़ुशी से भेजता और वहीँ जब अच्छे लोगों से मुलाक़ात हुई तबजाकर हिंदी का वास्तविक रूप समझा और वो भी एक इंसान था जो अपने कामकरने से लेकर हर बोल चाल और हिंदी के एक्सपीरियंस को समझा और उसका लाभ विभाग को भी मिला अतः14 सितम्बर को सिर्फ हिंदी दिवस मानने से केवल काम नहीं चलेगा जो हिंदी के जानकर हो उसे जन जन तक प्रचार प्रसार हेतु उसको प्रोत्साहित करें। (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 15 ‎सितम्बर /2025