भारत और पाकिस्तान दोनों की बासमती चावल पर दांवा कर रहे नई दिल्ली (ईएमएस)। भारत और पाकिस्तान के बीच बासमती चावल को लेकर लंबे समय से विवाद जारी है, जिसका असर यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर पड़ रहा है। दोनों देश बासमती नाम के इस्तेमाल पर विशेष अधिकार का दावा करते आए हैं। भारत और पाकिस्तान दुनिया में बासमती चावल के दो प्रमुख निर्यातक हैं। भारत के पास इसकी 34 किस्में हैं, जबकि पाकिस्तान 24 किस्मों का उत्पादन करता है। बासमती नाम के इस्तेमाल से उत्पादकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में ज्यादा कीमत वसूलने का फायदा मिलता है। भारत ने 2020 में यूरोपीय संघ में बासमती चावल के लिए जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग का आवेदन किया था। भारत का कहना है कि बासमती की उत्पत्ति हिमालय की तलहटी में गंगा के मैदानी इलाकों में हुई, जो पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैले हैं। भारत के अनुसार इसकी सुगंध, स्वाद और लंबे दाने क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताओं से जुड़े हैं। वहीं पाकिस्तान भारत के दावे का विरोध कर तर्क देता है कि विभाजन से पहले यह चावल अविभाजित पंजाब में उगता था, इसलिए यह दोनों देशों की साझा विरासत है। पाकिस्तान को आशंका है कि यदि भारत को जीआई टैग मिल गया, तब उसके निर्यात को गहरा नुकसान होगा। इसी कारण पाकिस्तान ने 2020 में अपना जीआई एक्ट बनाया और 2021 में अपने बासमती को जीआई टैग दिया। 2023 में पाकिस्तान ने यूरोपीय संघ में अपना आवेदन भी दायर किया, जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के चार जिलों को भी शामिल किया गया। यूरोपीय संघ में भारत का आवेदन विचाराधीन है और पाकिस्तान ने उस पर औपचारिक आपत्ति दर्ज कराई है। अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान के दावे को मान्यता देना भारत की संप्रभुता पर सवाल खड़ा कर सकता है, इसलिए ब्रुसेल्स इस पर सावधानी बरत रहा है। विवाद केवल यूरोपीय संघ तक सीमित नहीं है बल्कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में भी इसी तरह की दिक्कतें सामने आई हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती निर्यातक है और वैश्विक बाजार का करीब 65 प्रतिशत हिस्सा उसके पास है। पाकिस्तान शेष बाजार में हिस्सेदारी रखता है। हाल ही में भारत ने ईरान को 6,374 करोड़ रुपये का बासमती निर्यात किया, जो उसके कुल निर्यात का 12.6 प्रतिशत था। इस विवाद के चलते भारत और यूरोपीय संघ के बीच एफटीएफ की बातचीत पर भी असर पड़ा है। आशीष दुबे / 16 सिंतबर 2025