(सौजन्य से पीआईबी) (17 सितम्बडर जन्महदिवस पर विशेष) जब ज़्यादातर नेता सिर्फ भाषणों तक ही सीमित रह जाते हैं, नरेन्द्र मोदी इससे भी आगे का मार्ग चुनते हैं। वे यात्राओं को जन संपर्क और पलों को जन संवेदना का स्वरूप देते हैं। एक तरफ वह ओडिशा में संथाली हथकरघा का पुनरुत्थान करने वाली एक जनजातीय महिला के उत्कृष्ट कार्यों की सराहना करते हैं तो दूसरी तरफ वह पुलवामा के पहले रात्रिकालीन क्रिकेट मैच का उत्साहवर्धन भी करते हैं। वह विकसित भारत पर हर नागरिक से प्रतिक्रिया आमंत्रित करते हैं। वह मानवता के लिए योग 2.0 से दुनिया को प्रेरित करते हैं। उनका यह जुड़ाव कृत्रिम नहीं है अपितु जीवन के भाव से परिपूर्ण है। यह हाथ मिलाने में, पत्र लिखने में, रेडियो पर साझा की गई कहानी में, और उस समुदाय के गौरव में है जिनकी आवाज़ राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचती है। जन संवेदना लोगों के संघर्षों और आकांक्षाओं के प्रति सहानुभूति को दर्शाती है, और जन संपर्क देश के हर कोने में नागरिकों के साथ निरंतर संपर्क सुनिश्चित करता है। चाय पर चर्चा और निर्वाचन क्षेत्र की पहली रैलियों से लेकर स्थानीय गौरव का सम्मान करने वाले बहुभाषी संभाषणों तक, वह लोगों से मिलते हैं, उनकी बात सुनते हैं, तथा पूर्ण सहानुभूति और नीति दोनों के साथ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। प्रौद्योगिकी इस बंधन को मजबूत बनाती है: नमो ऐप सहभागी एकजुटता को सक्षम बनाता है, जबकि मन की बात नागरिकों की कहानियों को राष्ट्रीय आंदोलनों में परिवर्तित कर देती है। संकट के समय और प्रतिदिन के शासन में, सहानुभूति के भाव- जैसे किसी शोकाकुल परिवार को सांत्वना देना या जवानों के साथ त्योहार मनाना- योजनाओं और सुधारों के माध्यम से व्यापक स्तर पर क्रियान्वयन के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़े होते हैं। लाभार्थियों की आवाज़ें, नागरिकों के अनुभव और उत्कृष्ट परिणाम मिलकर विश्वास की प्रमाण परिधि का निर्माण करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की कुछ प्रमुख यात्राएं प्रधानमंत्री बनने से पहले ही, नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक यात्रा उन यात्राओं से जुड़ी थी जिनसे देखा जा सकता है कि उन्हें लोगों की इच्छाओं की कितनी समझ थी और लोगों से उनका सीधा जुड़ाव था। · सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा (1990): लालकृष्ण आडवाणी द्वारा आयोजित इस यात्रा में मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका रही और इसका उद्देश्य सोमनाथ से अयोध्या तक सांस्कृतिक मूल्यों और राष्ट्रीय गौरव को वापस लाना था। इसने आस्था और अस्मिता पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण आंदोलन का उदय हुआ। · एकता यात्रा (1991-92): यह यात्रा श्रीनगर के लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के साथ संपन्न हुई, जिसका नेतृत्व मोदी ने किया। यह भारत की एकता और स्वतंत्रता का एक सशक्त प्रदर्शन था। · गुजरात गौरव यात्रा (2002): गुजरात में, मोदी ने लोगों से पुनः से जुड़ने और उनमें विश्वास जगाने के लिए पूरे राज्य में इस यात्रा का नेतृत्व किया। इसने लोगों में कठिन समय के बाद मज़बूत, गौरवान्वित और प्रगति के प्रति आशावान रहने का भाव बलवती हुआ। · स्वर्णिम गुजरात संकल्प ज्योत रथ यात्रा (2010): मुख्यमंत्री के रूप में, मोदी ने गुजरात के गठन के 50 वर्ष पूरे होने का उत्सव मनाया। इस यात्रा में लोगों के बीच विकास और सहयोग पर आधारित स्वर्णिम गुजरात का वादा किया गया था। सांस्कृतिक जुड़ाव- सभ्यतागत विश्वास प्रचार रणनीति से आगे बढ़ते हुए, प्रधानमंत्री मोदी की सांस्कृतिक पहुंच समावेशिता को सभ्यतागत विश्वास के साथ जोड़ती है- इसमें विरासत को पुनः प्राप्त करना और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का संकेत देना शामिल है। मन की बात और पीपुल्स पद्म, दैनिक जीवन की सफलताओं और गुमनाम प्रतीकों को एक साझा राष्ट्रीय विशिष्ट-समूह में स्थान प्रदान करते हैं। समावेशिता का यह सूत्र उनके अंतर्धार्मिक सांस्कृतिक संयोजन में भी स्पष्ट दिखाई देता है। भारत बौद्ध, मुस्लिम और ईसाई धर्मों के प्रमुखों के साथ संवाद स्थापित करता है और उनमें शामिल होता है; कोरियाई भिक्षु तीर्थयात्राओं और वैश्विक बौद्ध सम्मेलनों का आयोजन करता है; साथ ही लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देता है। प्रधानमंत्री की मस्जिदों (इंदौर के सैफी से लेकर काहिरा के अल-हकीम और अबू धाबी के शेख जायद तक), चर्चों (सेक्रेड हार्ट, दिल्ली; कोलंबो), बौद्ध तीर्थस्थलों (बोधगया, लुम्बिनी, सारनाथ, कुशीनगर) और विदेशी मंदिरों (बीएपीएस, यूएई) की यात्राएं सभी धर्मों के प्रति उनके सम्मान का स्पष्ट प्रतीक हैं। विदेशों में इन अंतर-धार्मिक और सांस्कृतिक प्रयासों के आधार पर, भारत का बुद्ध- युद्ध नहीं के संदेश, योग कूटनीति और कलाकृतियों के प्रत्यावर्तन, बहुलवाद में निहित एक मृदुल शक्ति को प्रदर्शित करता है। संकट के समय में जन-संवेदना संपर्क का यही दर्शन अनिश्चितता के क्षणों में भी महत्वपूर्ण है, जब प्रधानमंत्री मोदी लोगों के करीब आते हैं, उन्हें आश्वस्त करते हैं और उनके संघर्षों में अपने भावों को साझा करते हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान, यह तब स्पष्ट हुआ जब उन्होंने आगे बढ़कर नेतृत्व किया और अपने अभिनव संचार माध्यमों से कोविड के विरुद्ध लड़ाई को एक जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। उनके टेलीविज़न संबोधनों, मन की बात संवादों और नमो ऐप पहुंच ने जटिल नीतियों को भावनात्मक अपीलों में बदल दिया जिससे नागरिकों ने अपनी आवाज को सुनने, ज़िम्मेदार होने और एकजुट होने का भाव महसूस किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, चाहे वैक्सीन कूटनीति का समन्वय हो या ऑपरेशन गंगा या ऑपरेशन दोस्त जैसे बचाव अभियानों पर जनता को अपडेट करना हो, प्रधानमंत्री मोदी का व्यक्तिगत स्पर्श- छात्रों, परिवारों और राहत कर्मियों से सीधे बात करना- सरकारी कार्रवाई में विश्वास को मज़बूत बनाता है। उरी से लेकर बालाकोट, गलवान और पहलगाम तक, सुरक्षा संकटों के दौरान भी, उनके शब्द - घर में घुस के मारेंगे - ने संकल्प और आश्वासन का मिश्रण किया और राष्ट्रीय स्तर पर आत्मविश्वास का संचार किया। स्पष्ट संदेश, मानवीय भाव-भंगिमाओं और प्रतीकात्मक कार्यों के इस मिश्रण ने- सीमा पर सैनिकों के साथ दीपावली मनाने से लेकर प्रभावित परिवारों को सांत्वना देने तक- यह सुनिश्चित किया है कि संकट केवल चुनौतियां न बनें, बल्कि लोगों के साथ संबंधों को आत्मीय करने के अवसर भी बनें। संकट के समय में प्रधानमंत्री मोदी के जन संपर्क और जन संवेदना के मॉडल ने संचार को विश्वास के सेतु में बदल दिया है और चिंता को सामूहिक उदारपूर्ण भाव में बदल दिया है। संकट के समय में इस मानवीय स्पर्श के उदाहरण प्रचुर मात्रा में हैं। जब चंद्रयान-2 को झटका लगा, तो इसरो प्रमुख के. सिवन को गले लगाना एकजुटता का प्रतीक बन गया। स्वच्छता कर्मचारियों के पैर धोने जैसे प्रयास समारोहों से कहीं भाव रखते हैं; वे सम्मान, समावेशिता और कृतज्ञता दर्शाते हैं। प्रत्येक कार्य इस बात की पुष्टि करता है कि प्रत्येक योगदान महत्वपूर्ण है। मानवीय स्पर्श यह दर्शन दैनिक जीवन में भी व्याप्त है। प्रधानमंत्री मोदी का जन संपर्क दैनिक वार्तालाप में स्पष्ट रूप से झलकता है। परीक्षा पे चर्चा के दौरान बच्चों के प्रति उनकी गर्मजोशी, युवाओं से जुड़ने की उनकी अद्वितीय क्षमता का एक प्रमुख उदाहरण है। छत्तीसगढ़ में जनजातीय समुदायों के साथ सीधा जुड़ाव और अपने शपथ ग्रहण समारोह में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को आमंत्रित करने जैसे उनके प्रयास ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों तक उनकी पहुंच को दर्शाते हैं। सुनने और साझा करने के ये कार्य विश्वास और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देते हैं। मानवीय भाव से युक्त कूटनीति प्रधानमंत्री मोदी जन संपर्क और जन संवेदना को कूटनीति में भी शामिल करते हैं। वैश्विक नेताओं के साथ उनके विशिष्ट आलिंगन, वैश्विक अभिवादन के रूप में नमस्ते को अपनाना, या यात्राओं के दौरान क्षेत्रीय परिधान पहनना, ये सभी मानवीय सेतु बनाते हैं जो पदानुक्रम को सहज बनाते हैं और मित्रता को बढ़ावा देते हैं। साबरमती में चरखा चलाकर, विदेशी नेताओं के साथ गंगा आरती में शामिल होकर, या संयुक्त राष्ट्र में योग का नेतृत्व करके, वे सांस्कृतिक गौरव को व्यक्तिगत उपस्थिति के साथ जोड़ते हैं, जिससे भारत की परंपराएं दुनिया भर में सुलभ और प्रासंगिक बनती हैं। कार्य में नेतृत्व इन सभी भावों के माध्यम से- चाहे सांत्वना देना हो, उत्सव मनाना हो, या बस स्वीकार करना हो- प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया है कि नेतृत्व केवल नीति के संदर्भ में नहीं, बल्कि कार्य के बारे में भी है। जन संपर्क और जन संवेदना का उनका मॉडल यह सिद्ध करता है कि कार्य, जो अक्सर बिना शब्दों के होते हैं, संभाषणों की तुलना में अधिक शक्तिशाली रूप से सहानुभूति, सम्मान और जुड़ाव पैदा कर सकते हैं, और लोगों को सामान्य और ऐतिहासिक, दोनों ही क्षणों में अपने नेता से जोड़ सकते हैं। ईएमएस/16/09/2025