राज्य
16-Sep-2025


:: नागर चित्तौड़ा महाजन वैश्य समाज की भागवत कथा में कृष्ण-रुक्मणी विवाह का उत्सव :: इंदौर (ईएमएस)। विवाह हमारी सनातन संस्कृति का सबसे श्रेष्ठ संस्कार है। भारत भूमि सामाजिक मर्यादाओं के दायरे में रहकर ही फल-फूल रही है, क्योंकि हम जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कारों में जीते हैं, और इन्हीं में से एक है विवाह। ये विचार वृंदावन धाम डबरा के कथा भूषण आचार्य पं. कौशल किशोर शास्त्री ने व्यक्त किए। वे नागर चित्तौड़ा महाजन वैश्य समाज की मेजबानी में विश्वकर्मा नगर स्थित मांगलिक भवन पर चल रही भागवत ज्ञान यज्ञ में कृष्ण-रुक्मणी विवाह प्रसंग की व्याख्या कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण और रुक्मणी का विवाह नारी शक्ति के प्रति मंगल भाव का प्रतीक है। विवाह एक अटूट और पवित्र बंधन है, जो दो परिवारों के साथ ही मर्यादा, धर्म और संस्कृति के पोषण का माध्यम भी है। :: कृष्ण-रुक्मणी विवाह में झूमे श्रद्धालु :: जैसे ही दुल्हन बनी रुक्मणी ने भगवान कृष्ण को वरमाला पहनाई, पूरा कथा स्थल जय श्रीराम और जय श्री कृष्ण के जयघोष से गूंज उठा। वर-वधू पक्ष के लोगों ने बधाई गीतों पर नृत्य कर अपनी खुशी का इजहार किया। इससे पहले, पंडित शास्त्री ने भगवान के अवतरण और समाज के हित में उनके द्वारा किए गए कार्यों की महत्ता बताई। कथा की शुरुआत में धर्मेंद्र गुप्ता, सचिन हेतावल, पंकज गुप्ता, सुनील गुप्ता, दिलीप हेतावल और मातृशक्ति की ओर से श्रीमती कृष्णा गुप्ता, सुनीता गुप्ता एवं डिम्पल गुप्ता ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा संयोजक राजेंद्र महाजन और प्रहलाददास मेहता ने बताया कि बुधवार को कथा में कृष्ण-सुदामा मिलन प्रसंग होगा। गुरुवार को सुबह 8:30 बजे से यज्ञ और हवन के साथ कथा की पूर्णाहुति की जाएगी। पंडित शास्त्री ने यह भी बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं से अनेक ऐसे संदेश दिए हैं, जो हर युग में प्रासंगिक हैं। उनका अवतरण सज्जनों के संरक्षण और दुष्टों के नाश के लिए ही हुआ है। उन्होंने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अनेक लीलाएं कीं, जिनके माध्यम से पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का संदेश भी दिया। प्रकाश/16 सितम्बर 2025