-कुछ शोध से पता चला मतदाता बुजुर्ग उम्मीदवारों को ज्यादा पसंद करते हैं नई दिल्ली,(ईएमएस)। भारत समेत दुनिया के कई देशों में 70 साल कम उम्र पार कर चुके लोगों के हाथों में सत्ता है। वहीं पीएम नरेंद्र मोदी भी आज यानी 17 सितंबर को 75 साल के हो गए। वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 79 साल के हैं तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 72 साल के हो चुके हैं। भारत से दुश्मनी निकालने वाले तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन भी 71 साल के हो चुके हैं। ये वो देश हैं, जिनका सिक्का पूरी दुनिया में चलता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1984 में अमेरिका के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा जा रहा था। उस वक्त एक उम्मीदवार रोनाल्ड रीगन भी यह चुनाव लड़ रहे थे। उनसे एक पत्रकार ने उम्र पूछी तो जवाब में रीगन ने मजाकिया अंदाज में कहा- मैं इस अभियान में उम्र को मुद्दा नहीं बनाऊंगा। मैं राजनीतिक मकसद के लिए अपने प्रतिद्वंद्वी के युवापन और अनुभवहीनता का फायदा नहीं उठाने वाला। उस वक्त उनके प्रतिद्वंद्वी वाल्टर मोंडेल जो उस समय 56 साल के थे को बहुत युवा और अनुभवहीन कहना केवल एक व्यंग्य था। आज 79 साल की उम्र में डोनाल्ड ट्रंप दुनिया के सबसे ताकतवर और पुराने लोकतांत्रिक देश अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। उनसे पहले जो बाइडेन ने 81 साल की उम्र में अमेरिका की कमान संभाली थी। एक रिसर्च से पता चला है कि चुनाव जीतने के लिए बड़ी मात्रा में राजनीतिक पूंजी और अनुभव की जरूरत होती है। इस बात के भी प्रमाण हैं कि पार्टियां सभी प्रकार के चुनावों में नामांकन में बुजुर्ग उम्मीदवारों को ज्यादा प्राथमिकता देती हैं। युवा उम्मीदवारों के पास न तो अनुभव है और न ही उनकी पार्टी के भीतर सर्वोच्च पद के लिए गंभीर दावेदार होने के लिए नेटवर्क कनेक्शन हैं। वहीं, कुछ शोध से पता लगता है कि मतदाता बुजुर्ग उम्मीदवारों को ज्यादा पसंद करते हैं। रिसर्च के मुताबिक जो नेता चुनावों के जरिए या किसी पूर्ववर्ती के कार्यकाल के अप्रत्याशित अंत के बाद डिफॉल्ट या नियुक्ति द्वारा पद प्राप्त करते हैं, उन्हें अपेक्षाकृत सीनियर होना चाहिए। चुनावों के जरिए निचले पद से उच्च पद पर पहुंचने के लिए पार्टियां पदासीनता और रिक्त पदों के लिए वरिष्ठता को महत्व देती हैं। यही बात मंत्रिमंडल के नामांकन पर भी लागू होती है। मंत्रिमंडल में पद प्राप्त व्यक्तियों को नए मंत्रिमंडल में फिर से शामिल किए जाने की संभावना होती है और नए पद आमतौर पर अनुभवी राजनेताओं को मिलते हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से केवल सबसे अनुभवी राजनेता ही सर्वोच्च पद के दावेदार होते हैं। रिसर्च से पता चलता है कि वरिष्ठता की थ्योरी का अप्रत्याशित अंत कई अलग-अलग तरीकों से हो सकता है। जैसे मौजूदा पदासीन नेता की मृत्यु या बीमारी, इस्तीफा, महाभियोग प्रक्रिया या अविश्वास प्रस्ताव शामिल है। राष्ट्रपति और संसदीय प्रणालियों में इस्तीफे या मृत्यु के मामले में आमतौर पर एक प्रक्रिया होती है, जिसमें आम तौर पर एक उपराष्ट्रपति, एक उप प्रधानमंत्री, एक संसदीय नेता, या पहले से ही सत्ता की स्थिति में कोई अन्य व्यक्ति शामिल होता है, जो कार्यकाल के आखिर तक एक अनंतिम भूमिका निभाता है। रिसर्च में यह भी कहा गया है कि चुनावों की तुलना में शाही उत्तराधिकार के जरिए सत्ता तक पहुंचने वाले नेता सिंहासनारूढ़ होने के समय कम उम्र के होते हैं, लेकिन पद छोड़ने के समय ज्यादा उम्र के होते हैं। राजतंत्रों में वंशानुगत कारक नए सम्राट की आयु तय करने में भूमिका निभा सकता है और वरिष्ठता के नियमों का उल्लंघन कर सकता है। चूंकि परिवार का एक सदस्य, आमतौर पर पिछले सम्राट की मृत्यु या बीमारी के कारण अक्षमता के बाद, दूसरे परिवार के सदस्य को सत्ता सौंपता है, इसलिए यह संभव है कि नया सम्राट काफी युवा हो या यहां तक कि एक बच्चा भी हो। रिसर्च के मुताबिक तख्तापलट या क्रांति के जरिये सत्ता हासिल करने वाले नेताओं की उम्र चुनावों के जरिये सत्ता हासिल करने वाले नेताओं की तुलना में कम होती है। सैन्य तख्तापलट या क्रांति एक जबरदस्त बदलाव का दौर होता है। अकसर पूरे अभिजात वर्ग की जगह एक नया अभिजात वर्ग ले लेता है। आमतौर पर इस नए अभिजात वर्ग का पुराने अभिजात वर्ग से कोई संबंध नहीं होता है और ऐसे में उसके युवा होने की भी संभावना ज्यादा होती है। हालांकि तख्तापलट असाधारण परिस्थितियों में ही होता है। बता दें 1945 के बाद से कई देशों ने तख्तापलट का सामना किया है। सैन्य शासन भी सबसे नाजुक और सबसे कम टिकाऊ शासन के तरीकों में से एक है। इसका अर्थ है कि सैन्य नेता बहुत लंबे समय तक सत्ता में नहीं रह सकते हैं, जिससे इस प्रकार के नेताओं की औसत आयु और कम हो सकती है। सिराज/ईएमएस 18 सितंबर 2025