विश्व अर्थव्यवस्था आज एक गंभीर संकट की तरफ बढ़ती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुद्रास्फीति, बढ़ता हुआ कर्ज और राजनीतिक तनाव आर्थिक गतिविधियों पर भारी असर डाल रहे हैं। अमेरिका, जिसे 1944 के बाद से सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था माना जाता रहा, अब कर्ज के बोझ तले दब गया है। अमेरिका का कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से 124 प्रतिशत अधिक हो गया है और देश अपने खर्चों को चलाने के लिए पुराने बॉन्ड बेचने पर निर्भर हो गया है। वहीं, अमेरिका में लॉकडाउन और लाखों लोगों की बेरोज़गारी ने डॉलर की वैश्विक पकड़ को भी कमजोर कर दिया है। कुछ वर्षों पहले तक वैश्विक कारोबार का लगभग 75 प्रतिशत डॉलर में होता था, जो अब घटकर करीब 56 प्रतिशत रह गया है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे है, यह आंकड़ा जल्द ही 50 प्रतिशत से नीचे जा सकता है, जिससे डॉलर मुद्रा को सबसे बड़ा संकट झेलना पड़ेगा। वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के बीच सोने और चांदी की मांग लगातार बढ़ रही है। जब भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता दिखाई देती है, तो निवेशक सुरक्षित विकल्प की तलाश में सोने की ओर रुख करते हैं। 2008 की अमेरिकी मंदी के बाद से दुनिया के फेडरल बैंकों ने बड़े पैमाने पर सोना खरीदा और अपने खजाने में रखा। उस समय अमेरिका के पास लगभग 20,000 टन सोना था, जो अब घटकर मात्र 8,200 टन रह गया है। वहीं, चीन और भारत जैसे देशों में सोने का भंडार पिछले 15 वर्षों में लगातार बढ़ा है। बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी भी अर्थव्यवस्था में निवेश के नए विकल्प बनते जा रहे हैं। बिटकॉइन की कीमत पिछले एक साल में लगभग दोगुनी होकर 52 लाख रुपए से 1.1 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है, लेकिन क्रिप्टो अभी भी सबसे जोखिम भरी मुद्रा मानी जाती है। एथेरियम, सोलाना, डोजकॉइन जैसी अन्य क्रिप्टोकरेंसी भी बाजार में सक्रिय हैं और वैश्विक अस्थिरता को बढ़ाने का कारक बन सकती हैं। विश्वविख्यात लेखक और आर्थिक विशेषज्ञ रॉबर्ट कियोसाकी, जिन्होंने ‘रिच डैड पुअर डैड’ जैसी चर्चित किताबें लिखी हैं, का मानना है कि बैंकों में पैसा रखना सुरक्षित विकल्प नहीं है। उनका कहना है कि 2026 के अंत तक कर्ज और मुद्रास्फीति के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर संकट आना तय माना जा सकता है। ऐसे समय में निवेशकों को अपनी पूंजी का संरक्षण करना चाहिए। कियोसाकी के अनुसार, नगदी को छोड़कर निवेश सोने, चांदी, म्युचुअल फंड और शेयर बाजार जैसे विकल्पों में किया जाना चाहिए, जहां अल्पकालिक उतार-चढ़ाव का जोखिम कम हो। पिछले 30 वर्षों में वैश्विक कर्ज की गंगा लगातार तेजी के साथ बढ़ती रही है। विश्व के सभी देशों की सरकारें, राज्य सरकारें, स्थानीय संस्थाएँ और यहां तक कि 80-90 फीसदी परिवार भी कर्ज में डूब चुके हैं। आमदनी के मुकाबले खर्च लगातार बढ़ रहा है। अमेरिका जैसे विकसित देशों का कर्ज बेहिसाब बढ़ रहा है। अमेरिका ने ईराक से लेकर अभी तक सैकड़ों प्रतिबंध लगाकर डालर से कारोबार रोकन और डालर जप्त करने का जो खेल खेला है, उससे डालर की विश्वसनीयता अन्तर्राष्ट्रयी स्तर पर समाप्त होने से डॉलर का प्रभुत्व लगातार घट रहा है। इसके कारण ब्रिक्स देशों की मुद्रा, यूरो, चीन का युआन और अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्रा विकल्पों के बीच प्रतिस्पर्धा तेज हो गई है। इस परिदृश्य में सोना और चांदी न केवल सुरक्षित निवेश बल्कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा और वैश्विक कारोबार में स्वीकार्य विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं, भविष्य में सोना वैश्विक मुद्रा के रूप में प्रमुख भूमिका निभा सकता है। वर्तमान आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए निवेशकों और आम नागरिकों के लिए यह जरूरी है। वह अपने धन को सुरक्षित क्षेत्रों में निवेश करें। विविध क्षेत्रों में सोच-समझकर निवेश करने से न केवल आर्थिक संकट के समय नुकसान कम होगा, बल्कि संपत्ति की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी। वर्तमान आर्थिक संकेतों के आधार पर कहा जा सकता है। इस वर्ष के अंत तक वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। निवेशकों को समय रहते तैयार रहना चाहिए। भारत के उपर भी कर्ज 4 गुना बढ़ गया है। बैंकों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। ऐसी स्थिति में विविध निवेश में समझदारी है। एसजे/ 16 अक्टूबर/2025