कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या की सघन काली रात में ज्योति का झिलमिल प्रकाशं करके दीपावली मनाने की यह परम्परा भारतीय संस्कृति के बहुमुखी चिन्तन को प्रकट करती है। समाजशास्त्रियों का मत है कि विजयादशमी खासकर क्षत्रियों का धर्व है। इस अवसर पर शासक वर्ग अपनी राज-व्यवस्था, राष्ट्र-व्यवस्था का निरीक्षण-परीक्षण कर उसके गुण-दोषों की समीक्षा करते थे और राज-व्यवस्था को हर दृष्टि से मजबूत व व्यवस्थित करने का प्रयास करते थे। विजयादशमी के बाद दीपावली आती है। यह वैश्यों का पर्व है। वैश्य व्यापारी वर्ग राष्ट्र की आर्थिक धुरा का संचालक है। किसी भी राष्ट्र व समाज की सुदृढ़ता, सुस्थिरता और सम्पन्नता केवल सेना और शस्त्र-बल के आधार पर नहीं हो सकती। राष्ट्र की धुरी का अर्थ है-धन। धन से ही राष्ट्र की व्यवस्था चलती है। इसलिए राष्ट्र की आर्थिक प्रगति का लेखा-जोखा, निरीक्षण-परीक्षण कर नवीन योजनाएँ बनाने का अवसर मिलता है दीपावली के दिन । इसलिए समाजशास्त्र की दृष्टि से राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को सुसंचालित करने वाला पर्व दीपावली है। अतः इसे राष्ट्र की सुख-समृद्धि का प्रतीक भी माना गया है। दीपावली भारत का सांस्कृतिक पर्व है। इसका त्यौहार के रूप मे प्रचलन कब हुआ यह कहना मुश्किल है। कुछ लोगों की मान्यता है कि राजा बलि ने देवताओं को बन्दी बनाया तब उनके साथ लक्ष्मी को भी बन्दी बना लिया था। तब विष्णु ने वामन रूप धारणकर देवताओं सहित लक्ष्मी को बलि के बन्दीगृह से आज ही के दिन मुक्त कराया। इस कारण इस दिन लक्ष्मी की पूजा प्रारम्भ हो गई। कुछ विद्वानों का यह कथन है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम लंका-विजय करके सीता-लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने पूरे राज्य में विशाल उत्सव मनाया। घर-घर पर दीपक जलाये गये। इसलिए कार्तिक अमावस्या के दिन दीपमालिका करने की प्रथा चली। संत तुलसीदास जी ने गीतावली में भी इसका रोचक वर्णन किया है- *ततस्तु लोकः प्रतिवर्षमादराद् प्रसिद्धं दीपावलिका भारते। राम-राज्याभिषेक उत्सव तथा भगवान महावीर निर्वाण की दोनो घटनाओं में समानता यही है कि जनता ने दीप जलाकर प्रकाश उत्सव मनाया। हमारी लक्ष्मी न्यायोपार्जित ही हम सविवेकपूर्वक इसका उपयोग व उपयोग करें। दीपक संसार में जलकर प्रकाश करता है। इसी तरह यहां अपना बलिदान देकर दूसरों के जीवन में प्रकाश करें। अंधकार में मटकरी लोगों को ज्ञान-ज्योति, नेत्र ज्योति और आनन्द की ज्योति प्रदान कर जाते जीवन की सार्थक बनाएँ। दीपावली शुचिता का पर्व है। हमारा बाह्य वातावरण, अस्त्र, घर आदि जिस प्रकार स्वच्छ हैं, उसी प्रकार हमारा जीवन भी साफ-सुथरा हो, मन भी पवित्र हो, जीवन-व्यवहार भी पवित्र हो। कपट, द्वेष, मिथ्याचार अहंकार की गंदगी दूर करें। दीपावली पर लड्डू आदि विविध मिष्टान्नों का भोग बढ़ता है। मित्र स्वजनों, परिचितों को मिष्टान्न का आदान-प्रदान करने के साथ मधुरता क भाव बढ़ाएँ। हमारी वाणी मधुर हो। हमारा व्यवहार शालीन हो। किसी के प्रति कटुता व क्षुद्रता नहीं रखें। कहावत है खाने में चीनी की मात्रा कम रखें, किन्तु वचन में मिठास घोलकर मधुरता की सृष्टि करें। आज कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या है। आज की अमावस्या को, आज के दिन को हम सभी दीपावली के रूप में जानते हैं। प्रत्येक अमावस्या गहन अंधकार में डूबी हुई होती है, पर आज की अमावस्या में अंधकार की तनिक भी अवस्थिति नहीं है। आज की रात्रि में कोई, कहीं भी दृष्टिपात कर ले, उसे सर्वत्र आलोकहीआलोक अठखेलियों करता हुआ दिखाई देगा। अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के परिनिर्वाण की पावन स्मृतियाँ इस दिन के साथ जुड़ी हुई हैं। दीपावली का यह पावन पर्व जन-जन को जागृति का संदेश देने के लिए समुपस्थित हुआ है। दीप पर्व के सम्बन्ध में हम कह सकते हैं- दीपावली, प्रतिपल जगने जगाने का संदेश देती है। दीपावली, दीपावली है। इस पर्व के आगमन का हर एक व्यक्ति को बेसब्री से इंतजार रहता है। दीपावली के आगमन से पूर्व ही प्रायः इसके स्वागत के लिए प्रत्येक व्यक्ति सक्रिय हो उठता है। घर, दुकान, कार्यालय, फेक्ट्री, संस्थान आदि की स्वच्छता में प्रत्येक जुट जाता है। प्रयत्न यह रहता है कि कहीं भी थोड़ी-सी भी गंदगी या कचरा न रह जाए। लोक धारणा यह है कि जिस घर में अधिक स्वच्छता अथवा अधिक प्रकाश होगा, उसी घर में लक्ष्मी का आगमन होगा एवं लक्ष्मी जी उन्हीं पर प्रसन्न होंगी। दीप-पर्व पर हम अपने भीतर में संयम-साधना एवं परमार्थ का प्रकाश पैदा करें, तभी दीपावली के इस दीप पर्व की सार्थकता सिद्ध होगी। अब दीप पर्व की जो ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है, इस सम्बन्ध में आवश्यक रूप से कुछ जान लेना जरूरी है। दीप पर्व के साथ में सैकड़ों प्रसंग जुड़े हैं और वे सभी प्रसंग हमें संप्रेरित करते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम लंका विजय करके चौदह वर्ष के बाद अयोध्या में लौटे थे। उनके मंगल आगमन के उपलक्ष्य में असीम प्रसन्नता के साथअयोध्यावासियों ने अपने घरों और सम्पूर्ण नगर को दीप-पंक्तियों से जगमगाकर राम का अभिनंदन किया। इसी तरह श्रीकृष्ण ने दीपावली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी को नरकासुर दैत्य की अनुचित प्रवृत्तियों से त्रस्त तत्कालीन जन-जीवन को नरकासुर का वध करके मुक्त किया था। इसकी खुशी को अभिव्यक्त करने के लिए लोगों ने दीप प्रज्ज्वलित किये। तभी से दीपावली मनाई जा रही है।महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को आत्मानंद प्राप्त करने के लिए अप्प दीवो भव अर्थात् स्वयं अपने दीप बनो, का दिव्य-संदेश इसी दिन प्रदान किया। सिक्ख गुरु श्री हरगोविन्दसिंह जी ने जेल मंदिर से स्वर्ण मंदिर तक की विजय यात्रा इसी दिन सम्पन्न की। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद इसी दिन स्वर्गारोही हुए। स्वामी रामतीर्थ ने इसी दिन गंगा की लहरों दीपावली के पावन अवसर पर यह अभ्यास भी रहे कि हम अपने जीवन में अच्छाई का समावेश करें और बुराइयों से अपना दामन बचाएँ। सद्गुणों से समृद्ध जीवन न केवल स्वयं के लिए, अपितु अन्य जनों के लिए भी वरदान सिद्ध होता है। दीपावली पर्व पर अनिवार्य रूप से समय निकालकर जप-तप आदि की प्रवृत्ति को भी अपने घर में सामूहिकता देना, इस दृष्टि से श्रेष्ठ है। यदि दीपावली पर्व पर इस तरह अपने जीवन को सद्गुणों से आलोकित कर पाएँ तो निश्चित रूप से महापुरुषों के प्रति सच्ची श्रद्धाभिव्यक्ति तो होगी ही, हमारा जीवन भी सफल सार्थक बन सकेगा। ईएमएस / 17 अक्टूबर 2025