कर्नाटक की आलंद विधानसभा सीट पर हुए “वोट चोरी” मामले ने केंद्रीय चुनाव आयोग और भारतीय लोकतंत्र की नींव को हिलाकर रख दिया है। कर्नाटक की एसआईटी जांच में यह खुलासा हुआ है, केंद्रीय चुनाव आयोग के सॉफ्टवेयर और डाटा सेंटर के जरिये सुनियोजित और मनवांछित तरीके से मतदाताओं के नाम डिलीट किए गए। अभी तक केंद्रीय चुनाव आयोग यह कहता रहा है, कि उसकी चुनाव प्रक्रिया में जो भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और सॉफ्टवेयर उपयोग में लाये जा रहे हैं उन्हें ना तो हैक किया जा सकता है ना ही किसी तरह का दुरुपयोग संभव है। इन दावों के बीच पहली बार एसआईटी की जांच में चुनाव आयोग में हो रही गड़बड़ी उजागर हुई है। यह किसी एक राज्य या चुनाव क्षेत्र की समस्या नहीं है। इस गड़बड़ी ने पूरी चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी पर गहरा प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के आरोपों और खुलासों के बाद कर्नाटक सरकार ने मतदाता सूची में हुई गड़बड़ियों को लेकर एसआईटी गठित की। उस समय किसी को उम्मीद नहीं थी, चुनाव आयोग के सॉफ्टवेयर के जरिए ही इन सारी गड़बड़ियों को अंजाम दिया जा रहा है। जांच में सामने आया है, कि प्रति वोट डिलीट करने के लिए 80 रुपये का भुगतान डाटा एंट्री ऑपरेटर को किया जा रहा था। सॉफ्टवेयर चुनाव आयोग द्वारा तैयार कराया गया था। इसमें ऑनलाइन डाटा डिलीट करने की सुविधा थी। सॉफ्टवेयर में जो ओटीपी की सुविधा थी, वह ऐसे नंबरों पर भेजी गई जो फर्जी थे। जिन लोगों के नाम काटे गए, उनके मोबाईल फोन नंबर नहीं थे, ना ही उन्हें मतदाता सूची से नाम कटने की जानकारी थी। लोकतंत्र के सबसे पवित्र “वोट देने के अधिकार” सॉफ्टवेयर के जरिए सुनियोजित रूप से अपराध को अंजाम देकर लोगों के मतदाता अधिकार छीन लिए गए। यह सब किसी लोकल नेटवर्क या छोटे स्तर का अपराध नहीं था। यह सब संगठित साइबर ऑपरेशन के माध्यम से किया गया अपराधिक कृत्य था। सबसे गंभीर तथ्य यह है, एसआईटी की जांच में यह पूरा नेटवर्क पूर्व भाजपा विधायक सुभाष गुट्टेदार से जुड़ा पाया गया है। एसआईटी ने पूर्व विधायक के घर और दफ्तर से सात लैपटॉप, कई मोबाइल फोन और वोटर लिस्ट बरामद की हैं। जाँच मे पता चला है, 75 मोबाइल नंबरों से चुनाव आयोग के पोर्टल पर वोटर्स को डिलीट करने का प्रयास किया गया। मात्र 24 वोटर जिनके नाम हटाए गए थे वह सही थे बाकी 5000 से अधिक नाम जो हटाए गए थे, उसके बारे में मतदाताओं को भी पता नहीं था। ध्यान देने वाली बात है, कि राहुल गांधी ने पत्रकार वार्ता में आरोप लगाया था, कि जिन मतदाताओं के नाम हटाए गए थे वह सभी कांग्रेस समर्थक थे। इसके साथ ही सबसे बड़ा सवाल चुनाव आयोग की भूमिका पर खड़ा हो गया है। चुनाव आयोग के सॉफ्टवेयर से बाहर के डाटा सेंटर को चुनाव आयोग के पासवर्ड और सॉफ्टवेयर के बारे में जानकारी किस तरह से लगी। डाटा सेंटर को जानकारी देने वाले लोग कौन थे। यह जानकारी चुनाव आयोग के ही अंदर से दी गई है? चुनाव आयोग के सहयोग के बिना इस तरह की गड़बड़ी नहीं हो सकती है। चुनाव आयोग की कार्य प्रणाली इतनी कमजोर है? कोई भी “डेटा ऑपरेटर” चुनाव आयोग के सॉफ्टवेयर के जरिए मतदाता सूची में हेराफेरी कर सकता है? ऐसी स्थिति में चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता कैसे सुरक्षित रह पाएगी? कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया है। यह कहना गलत नहीं है। वोट चोरी का यह मामला केवल कर्नाटक तक सीमित नहीं है। पिछले 2 साल में जिन राज्यों में चुनाव हुए हैं। वहां पर भी इसी तरह के आरोप हैं। चुनाव आयोग सभी राजनीतिक दलों एवं भविष्य में देश के लिए यह एक चेतावनी भी है। डिजिटल युग में “साइबर धांधली” के माध्यम से चुनाव जीतने का नया हथियार चुनाव आयोग के सॉफ्टवेयर बन चुके हैं। इसलिए जरूरी है, चुनाव आयोग इस मामले में पूर्ण पारदर्शिता दिखाए, एसआईटी को जांच के लिए सभी किस्म के जरूरी डेटा को जांच एजेंसी को उपलब्ध कराए। दोषियों को सख्त सजा जल्द से जल्द दी जाए। लोकतंत्र में विश्वास बनाए रखना है, तो इस मामले में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के जरिए जो गड़बड़ियां उजागर हुई हैं उसको “एक मिसाल” बनाते हुए केंद्रीय चुनाव आयोग को अपने सभी सॉफ्टवेयर और उनके उपयोग को लेकर राजनीतिक दलों और आम जनता को भी पारदर्शिता के साथ जानकारी देनी चाहिए। सभी राजनीतिक दल, एजेंसी, तकनीक पर चुनाव आयोग की निष्पक्षता एवं विश्वास कायम बरकरार रखा जाए। जनता का विश्वास लोकतांत्रिक और चुनाव व्यवस्था में बना रहे इसके लिए जरूरी है जिन कारणों से संदेह उत्पन्न हो रहा है, उसमें सभी राजनीतिक दलों, मतदाताओं का संदेह दूर किया जाए। सॉफ्टवेयर तथा डिजिटल हार्डवेयर इत्यादि की जानकारी आम जनता के सामने चुनाव आयोग उजागर करे। केंद्रीय चुनाव आयोग ने यदि अभी भी पारदर्शिता नहीं बरती, तो आने वाले समय में इसके परिणाम काफी भयावह देखने को मिल सकते हैं। भविष्य में इस तरह से वोटो की चोरी ना हो। चुनाव के दौरान पूरी निष्पक्षता के साथ चुनाव आयोग चुनाव को संपन्न कराये। चुनाव आयोग द्वारा समय रहते लोगों के संदेह को दूर करना होगा जिस तरह से विपक्ष चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर बार-बार सवाल उठा रहा है, यह लोकतंत्र और कानून व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। एसजे/ 24 अक्टूबर/2025