गाजर की पुंगी बजी तो बजी,नही तो खा लेंगे यह उक्ति बिहार के चुनाव में महागठबंधन की किवंदती की तरह सुनाई दे रही है।महागठबंधन आज फिर उसी दुविधा में है।महागठबंधन धीरे धीरे यही प्रयास कर रहा है कि गाजर की इस पुंगी को बजाने की और कोशिश करना निर्रथक प्रयास है और इस समस्या पर पर्दा डालने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अशोक गहलोत को बुलाया गया।मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा करने के बाद राहुल गांधी बिहार की जनसभा में कहीं दिख नही रहे है।क्या वे नाराज है या पार्टी हाईकमान ने उन्हें आराम के लिए कह दिया है? क्योंकि न्याय यात्रा में राहुल को थकान हुई होगी?लेकिन महागठबंधन की इस दुविधा से बेखबर ,बेपरवाह आरजेडी नेता आपसी जंग से किनारा कर प्रचार में लग गए है।बिहार में मुख्यमंत्री के नाम को लेकर मीडिया में अटकलें तो बहुत लगाई जा रही है।लेकिन हकीकत कुछ और है।भाजपा के वरिष्ठ नेता मंगल पांडे की तरफ मुख्यमंत्री के नाम की सुई जाती हुई दिखाई दे रही है।वही,अगर महागठबंधन की सरकार बनती है तो तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा और उसके नीचे चार डिप्टी सीएम का पद आवंटित किया जाएगा। बिहार चुनाव में चर्चा जोरो पर है।उपरोक्त बात को लेकर बिहार में सब जगह चर्चा का दौर है। विधानसभा चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है।विपक्षने तेजस्वी को खलनायक की उपमा दी है।उधर, 45 मिनट के भाषण में मोदी ने नीतीश कुमार के नाम मुख्यमंत्री के पते नही खोलने पर यह चर्चा है कि इस बार एनडीए का मुख्यमंत्री कौन?लेकिन अमित शाह ने स्पष्ट कह दिया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ा जा रहा है,दरअसल, चुनाव में यह भी चर्चा है कि वर्तमान समय मे लालू और तेजस्वी की उपयोगिता नही बची है।सतारूढ़ की नजर में विपक्ष की उपयोगिता खत्म हो गई है।बिहार में भाषण के दौरान मोदी ने कहा कि समय बदल गया है अब लालटेन की क्या आवश्यकता है।दोनो बाप बेटे लूट के इरादे से सरकार बनाने के लिये तैयारी कर रहें है।क्योंकि महागठबंधन की सरकार आएगी और बिहार में लूटने का अच्छा मौका मिल जाएगा।बिहार में लालू की सरकार के दौरान जंगलराज कायम था।पार्टियां लूट खसोट में लगी थी।सरकार जाते ही अचानक लालू का आभामंडल लुप्त हो गया।पूरे परिवार को भ्रष्टाचार में झोंकने वाले लालू को बिहार में फिर से जनता जनार्दन अपना पाएगी?बिहार में जुठ और सच्चाई की राजनीति की लड़ाई अब थमने वाली नही है।विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्त्व में चुनाव लड़ा जा रहा है।लेकिन अटकलें कुछ और है।बिहार में मोदी और नीतीश की राजनैतिक छवि साफ और भरोसेमंद रही है।बिहार में भारी विकास हुआ है।गांव शहरों से कटे हुए थे, रेल सुविधा या आवागमन के कोई साधन उपलब्ध नही था,वही पक्की सड़क और इंटरनेट मीडिया की उपलब्धता से लोग आज अपना रोजगार सुगमता से प्राप्त कर रहे है।युवा अपने पैरों पर खड़े है ।इसमें महिला रोजगार के भारी अवसर मिल रहे है।कानून व्यवस्था की तरफ सरकार अपने वादों पर खरी उतरी है। बिहार में यह चर्चा है कि सरकार चलाना आरजेडी के बूते की बात नही है।क्योंकि उनकी सरकार बन भी जाती है तो अराजकता व्याप्त राज्य फिर से बन जायेगा।क्योकि कांग्रेस तेजस्वी को ज्यादा दिन बर्दाश्त नही करेंगे।उनका काम निकल जायेगा उन्हें दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया जाएगा।क्योंकि कांग्रेस आज भी अपनी कथनी और करनी पर कायम नही है।उत्तरप्रदेश में समाजवादी के साथ गठबंधन किया तो समाजवादी की नीतियों से अखिलेश को पराजय मिली,लेकिन कांग्रेस का उत्तरप्रदेश में दो प्रत्याशी जीतकर गए थे।कहते है कि चालाकिया हर बार काम नही आती है।लालू की साख में गिरावट उस समय आई,जब वे भ्रष्टाचार में लिप्त जेल में सजा काटकर आए।राजनीतिक गलियारों में मोलभाव करने में उनका कोई सानी नही है।लालू ने तो नीतीश कुमार पर भी आरोप लगाया था,जबकि सबसे बड़े राजनैतिक जोकर तो लालू है।शब्दबाण की बौछार में लालू का कोई सानी नही है।बिहार में आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर फार्मूला बैठाया है लेकिन दोनों दलों की अपनी अपनी मजबूरी है।कांग्रेस कभी अकेले दम पर देश मे सरकार बनाने वाली पार्टीथी लेकिन कांग्रेस के लिए बिहार चुनाव अभी नही तो कभी नही वाला है।पिछली विधानसभा में उसे केवल 19 सीटे मिली थी।मोदी और नीतीश लहर के चलते इस बार भी विपक्ष अपनी उम्मीदों पर खरा नही उतर सकता है।इसका कारण यह है कि जनता नीतीश के नाम पर खुश है।महागठबंधन का पेच फंसने के बाद उसको सुलझाने के लिए फिर हाजर नही हुए।चुनाव आयोग के हिदायतों के बाद पूरी तरह एसआईआर को केंद्र में रखकर चुनाव लडा जा रहा है इस चुनाव का एक पहलू यह भी है कि सिद्धांतो,नैतिकता और मूल्यो की दुहाई देने वाले दल ही इनकी लक्ष्मणरेखा लांघने में कोई कसर नही छोड़ी है।हिंदू और हिंदुत्ववादी पर निशाना साधने वाले राहुल के साथ प्रियंका की सभा भी नही हो रही है।सर्वाधिक उतावले दिखने वाले राहुल बिहार में प्रचार नही करेंगे?विपक्षी दलों के लिए चुनाव इस बार जीने मरने के प्रश्न जैसा है।सूबे में इस बार चुनाव जीने मरने जैसा है।क्योंकि पूर्ववर्ती सरकारों में पीड़ा,तिरस्कार, क़ानून व्यवस्था, गरीबी,भुखमरी, दुष्कर्म की घटनाएं और हत्या का दौर था।अगर लालू के शासनकाल में जनता खुश होती तो इस बार अवसर शायद मिल सकता था।लेनिक विरासत धुंधली और भयानक रही है।इसलिए राह आसान नही दिख रही है।कांग्रेस और तेजस्वी की पार्टी में सबसे बड़ी फजीहत परिवारवाद को लेकर हो रही है।क्योकि कांग्रेस और आरजेडी सबसे बडी परिवारवाद की पोषक है।चुनाव में मुकाबला दिलचस्प हो रहा है।क्योंकि बिहार में सियासत के दांव पेंच खूब जमकर खेले जा रहे है।गुलाब जहा भी खिलता है,वह अपने रंग रूप और अपनी खुश्बू से वातावरण को सुंगधित कर देता है।मुखरित कर देता है।जिसके मन मे समाज और राष्ट्र कल्याण की धुन है,वह कही भी जाएगा वही अपने जीवन की महक दुसरो को प्रदान करता रहेगा।जो विकास के मार्ग पर अग्रसर है।उसे कोई भय नही है। (वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार स्तम्भकार) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 27 अक्टूबर/2025