लेख
28-Oct-2025
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रास्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पहले बिल्डर थे।रास्ट्रपति पद पर आसीन होने की मजबूरी थी कि धन्धा रिश्तेदारो के हवाले करना पड़ा।लेकिन उनके भीतर एक बिल्डर अब भी तड़प रहा है।इसका सबसे बडा सबूत है कि भारत के साथ राजनयिक रिश्ते इतने मजबूत थे कि अगर दूसरा कोई देश होता तो टेक्ष के बदले में भारत से रिश्ता हरगिज खराब नही करता ,लेकिन एक व्यापारी ऐसे सम्बंध नही देखता है,जिसका उदारहण डोनाल्ड ट्रम्प है।व्यापारी अपने हित के लिए सामने वाले से सम्बब्ध अपने स्वार्थ के लिए बिगाड़ भी सकता है।पहले टर्म में डोनाल्ड अंकल ने अमेरिका के सबसे बड़े कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखा थी।वह प्रोजेक्ट था अमेरिका और मेक्सिको के बीच 2000 हजार मिल लंबी दीवार बनाने का।हर साल मेक्सिको से हजारो लोग गैर कानूनी ढंग से अमेरिका आते है ट्रंप निकाल बाहर करना चाहते थे।लोगो ने कहा कि वे लोग सस्ते मजदूर है,अमेरिका की अर्थव्यवस्था में इनका बड़ा योगदान रहता है।वैसे भी अमेरिका एक ऐसा देश है,जिसे बहार से आये लोगो ने बनाया है।लेकिन ट्रम्प टस से मस होने को तैयार नही थे, उन्होंने कहा कि दीवार भी खड़ी करूंगा ओर पैसे मेक्सिको वालो से लूंगा।यह पेत्तरा तो भारतीय बिल्डरों वाला हो गया।पैसा तो उस कवड एरिया का भी लेते है,जो बेचारा खरीददार इस्तेमाल तक नही करता ।यह ट्रम्प की व्यापारिक दृष्टि है।भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाकर मोदी को चुनौती देने वाले रिस्ते की अहमियत क्या होती है,उनको कोई सरोकार नही है।उनको पैसों से याराना होता है।वे रिश्तो के पुल तोड़ना चाहते है और मुल्कों के बीच दीवार खड़ी करना चाहते है।ये दीवार सीमेंट और कंक्रीट की नही,बल्कि नफरत की दीवार बना रहे है।भारत अमेरिका की बीच एक भेदरेखा की दीवार बढ़ गई है।भारतीय जो अमेरिका सरकार को ज्यादा टेक्स देते है।अपने फायदे के लिए अमेरिका ने ग्लोबलाइजेशन का नारा दिया।अमेरिका अब अप्रवासियों को दुश्मन मानते है।वसुधैव कुटुम्बकम वाला देश भारत के पीएम आसियान का दौरा करने वाले थे,लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति से दूरी बनाने के कारण वे नही गए।उनकी जगह विदेश मंत्री एस जयशंकर को भेजा गया।2022 में आसियान भारत मैत्री सम्बंध के स्वरूप 30वी वर्षगांठ मनाई गई थी।आसियान सम्बन्ध विकसित करने के लिए भारत कटिबद्ध है।आसियान भारत के प्रमुख साझेदारों में से एक है,जो भारत के वैश्विक व्यापार में 11 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है।रविवार को डोनाल्ड ट्रम्प मलेशिया के दौरे पर पहुंचे।कम्बोडिया थाईलैंड के बीच शांति समझौता करवा कर उसका श्रेय ट्रम्प ने लिया। भारत पाकिस्तान के बीच पहलगाम की घटना के बाद मिसाइल हमलों को रोकने के लिये ट्रम्प ने मध्यस्थता की बात आज भी बार बार दोहराते है।लेकिन भारत ने उनकी मध्यस्थता को सिरे से खारिज कर दिया।इजराइल हमास की जंग दोनो देशो के बीच शांतिवार्ता की पहल डोनाल्ड ट्रम्प ने की है।लेकिन रूस युक्रेन दोनो सहमत नही हुए है।आज भी उनके बीच युद्ध चालू है।दोनो देशो के बीच मध्यस्थता कर शांति वार्ता की कोशिश कर खून खराबे से निजात दिलाने का प्रयास सराहनीय है।लेकिन जिस तरह से भारत अमेरिका के बीच जो खाई परिलक्षित हुई है।उसकी पूर्णता माप नही सकते है।उल्लेखनीय है कि कुलाललंपुर में कम्बोडिया और थाईलैंड के बीच शांतिपूर्ण माहौल में सैन्य संघर्ष को खत्म करने के लिए शांति समझोते पर हस्ताक्षर किए। यह स्वागतयोग्य पहल है।विश्व समुदाय के लिए डोनाल्ड ट्रम्प समझौता करवा कर युद्ध विराम के लिए दोनो देशो को मना रहे है।यह बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण बात है।आज किसे पड़ी है जो किसी अन्य देश मे दखलंदाजी करे।लेकिन डोनाल्ड की यह कोशिश ट्रम्प को प्रसिद्वि ही नही दिलाती है परन्तु वैश्विक नेता की पहचान भी करा रही है।थाइलैंड और कंबोडिया के बीच मंदिर को लेकर पांच दिन से जंग छिड़ी हुई थी।कनाडा पर दस प्रतिशत एक्स्ट्रा टैरिफ लगाया गया है।इसके पूर्व रूस से तेल खरीदते समय डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर अगस्त में 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया था।अब यह जगजाहिर हो गया है कि ट्रम्प राष्ट्रपति की हैसियत कम रखते है और व्यापारिक दृष्टिकोण ज्यादा रखते है।उनको पैसो से ज्यादा और रिश्ते से कोई औचित्य नही है।अमेरिका की यह मनमानी की वज़ह से नागरिकों की वाइट हाउस के प्रति बढ़ती दूरियां के कारण लाखो लोग डोनाल्ड ट्रम्प का विरोध जताकर उनसे इस्तीफा की मांग की गई।राष्ट्रपति ट्रम्प का दुर्व्यवहार दुनिया मे घर्षण बढ़ाने का कार्य करता दिखाई दे रहा है।चीन,रूस,युक्रेन, इजरायल, भारत और अन्य देशों के साथ सीधी बात नही करके राजनयिक रिश्ते तार तार करने में लगे है।यह अमेरिका के लिए ठीक नही है।अमेरिका से कनाडा निर्यात में अच्छी साझेदारी है।अमेरिका और कनाडा के बीच व्यापार 38 लाखो करोड़ का होता है।और कनाडा से अमेरिका के लिए निर्यात 41 लाख करोड़ किया जा रहा है।लेकिन इनके साथ मैत्री की जगह अमेरिका व्यापार में दोगलिनीति अपना रहा है।क्या यह उचित है?जिस दौर में अमेरिका के सम्बब्ध भारत के साथ मजबूत थे।उसी दौर में अमेरिका पाकिस्तान के साथ भी अच्छे रिश्ते रखता था उसने केवल भारत के साथ ही दोस्ती नही रखी थी।अमेरिका दोनो हाथों में लड्डू रखने वाला छुपारुष्तम देश है।पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ ने पाकिस्तान के परमाणु हथियार अमेरिका को सौंप दिए थे।उसका खुलासा अमेरिका की खुफिया एजेंसी के अफसर ने यह दावा किया था।भारत के साथ पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ ने भी धोखा किया था। भारत के तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति मुशर्रफ को बातचीत के लिए दिल्ली बुलाए थे,लेकिन बातचीत की मेज से उठकर मुशर्रफ पाकिस्तान चले गए और कुछ ही दिनों के बाद कारगिल युद्ध शुरू कर दिया।यह पाकिस्तान की करतूत थी।भारत ने दोस्ती का हाथ बढ़ाता रहा और ये भारत शांतिप्रिय देश होने का फायदा उठाते रहे।अमेरिका की मंशा भी यही है कि तीसरी महाशक्ति वाले इस देश को दबाव में लेकर अमेरिका का नाम दुनिया ने रोशन किया जाए।लेकिन पाकिस्तान और युक्रेन जैसे देश को आंख बताने वाले अमेरिका ने गलत देश से पंगा लिया है क्योंकि भारत किसी की शरणागति स्वीकार नही करेगा।कदरअसल, अमेरिका को यह मालूम है कि कांग्रेस सरकार अमेरिका की जीहजूरी करती थी।इसलिए मोदी भी उसी की कदमताल में चलकर अमेरिका के सामने झुक जाएगा।अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया है कि वे हर महीने जंग खत्म करा रहे है।औऱ उनको उम्मीद है कि पाकिस्तान अफगान की जंग जल्द खत्म कराने की कोशिश करेंगे। ईएमएस/28/10/2025