नई दिल्ली (ईएमएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच एक समय रही गर्मजोशी अब कूटनीतिक दूरी में बदलती दिख रही है। इस साल जून में ट्रंप ने कनाडा से लौटते समय मोदी को अमेरिका रुकने का निमंत्रण दिया था, जिसे प्रधानमंत्री ने अस्वीकार कर दिया। इसके बाद शर्म अल-शेख में आयोजित मध्य-पूर्व शांति पहल के सम्मेलन में भी मोदी ने हिस्सा नहीं लिया और एक जूनियर मंत्री को भेजा। अब मलेशिया में चल रहे आसियान शिखर सम्मेलन में भी मोदी ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के बजाय वर्चुअल भागीदारी को चुना, जो पिछले एक दशक में दूसरी बार हुआ है। दोनों नेताओं की आमने-सामने मुलाकात अब शायद अगले एक साल तक नहीं हो पाएगी। उनकी आखिरी मुलाकात फरवरी में वॉशिंगटन डीसी में हुई थी। कभी “हाउडी मोदी” और “नमस्ते ट्रंप” जैसे आयोजनों से सुर्खियां बटोरने वाली यह दोस्ती अब ठंडी पड़ती दिख रही है। हालांकि, फोन पर तीन बार बातचीत हुई, लेकिन इसका कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। सतही तौर पर दोनों नेता एक-दूसरे की तारीफ करते हैं- मोदी ट्रंप के “शांति प्रयासों” की प्रशंसा करते हैं, और ट्रंप उन्हें “अच्छा दोस्त” कहते हैं- लेकिन गहराई में रिश्ते अब जटिल और सतर्क हो गए हैं। यह खटास अचानक नहीं आई। 2019-2020 में दोनों नेताओं की केमिस्ट्री उल्लेखनीय थी, लेकिन ट्रंप के इस साल दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद हालात बदल गए। ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध रोका, जिसे मोदी ने सार्वजनिक रूप से खारिज कर दिया, और इसके बाद से तनाव बढ़ता गया। तनाव के प्रमुख कारण भी साफ हैं। अमेरिका ने भारत के साथ व्यापार असंतुलन को लेकर सख्त रवैया अपनाया और भारतीय उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाए। वहीं, भारत अपने कृषि और डेयरी बाजारों को अमेरिकी प्रभाव से बचाने की कोशिश में है। इसके अलावा, भारत का रूस से तेल आयात अमेरिका को खटक रहा है। ट्रंप का कहना है कि भारत जल्द ही रूसी तेल खरीद कम करेगा, लेकिन भारत ने इस दावे को सिरे से नकार दिया है। दोनों नेता अपने घरेलू राजनीतिक आधार को ध्यान में रखते हुए किसी भी तरह की “कमजोरी” दिखाने से बच रहे हैं। भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” की नीति भी किसी एक देश के दबाव को सीमित करती है। ऐसे में माना जा रहा है कि मोदी ट्रंप के साथ असहज माहौल में मुलाकात से बच रहे हैं। शर्म अल-शेख सम्मेलन में न जाना इसी रणनीति का हिस्सा था, जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ट्रंप की जमकर तारीफ की और उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की बात कही। उस मंच पर मोदी की मौजूदगी भारत की स्थिति को कमजोर दिखा सकती थी। यह महज मुलाकात टालने का मामला नहीं, बल्कि एक सोची-समझी कूटनीतिक रणनीति है। भारत नहीं चाहता कि किसी बैठक में दबाव में समझौते का संदेश जाए। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, “भारत बंदूक की नोक पर कोई समझौता नहीं करेगा।” आगे दो संभावनाएं हैं- या तो दोनों नेता यह समझेंगे कि रिश्तों की रणनीतिक अहमियत व्यक्तिगत मतभेदों से बड़ी है और नई शुरुआत करेंगे, या फिर गर्मजोशी कम होने के बावजूद सहयोग सरकारी स्तर पर जारी रहेगा। कुल मिलाकर, मोदी-ट्रंप का रिश्ता अब व्यक्तिगत दोस्ती से हटकर व्यावहारिक साझेदारी की ओर बढ़ रहा है, जहां “सेल्फी डिप्लोमेसी” की जगह रणनीतिक हितों ने ले ली है। वीरेंद्र/ईएमएस 28 अक्टूबर 2025