तिरुवानंतपुरम(ईएमएस)। केरल हाईकोर्ट में एक महिला वकील के व्यवहार से जज पूरी तरह स्तब्ध रह गए। सुनवाई के दौरान उसने न केवल अदालत और जजों का अपमान किया, बल्कि उन पर आधारहीन आरोप भी लगाए। सूत्रों के अनुसार, महिला ने खुद को अधिवक्ता बताते हुए अपना निजी मामला खुद लड़ने के लिए कोर्ट पहुंची थी। इस क्रम में उसने पीठासीन जजों को अयोग्य तक घोषित कर दिया। हाईकोर्ट ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे आश्चर्यचकित हैं कि कोई वकील इस स्तर तक कैसे गिर सकता है।एक रिपोर्ट के अनुसार, मामले की सुनवाई जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एमबी स्नेहलता की डिवीजन बेंच कर रही थी। खुद को वकील बताने वाली याचिकाकर्ता महीला ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसके पति की तलाक की अर्जी को मंजूरी दे दी गई थी। कोर्ट ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता वकीलों की आधिकारिक पोशाक में बहस के लिए उपस्थित हुई। किंतु नियमों के तहत वकीलों को अपने व्यक्तिगत मामलों में इस पोशाक में पैरवी करने की इजाजत नहीं है। इसी कारण बेंच ने उसे वकील की पोशाक में बहस की अनुमति देने से इनकार कर दिया। इस फैसले पर महिला ने जजों पर गंभीर इल्ज़ाम लगा दिए। जजों ने बताया कि शुरू में उन्होंने संयम बरता और मामले को कुछ देर के लिए स्थगित कर दिया ताकि याचिकाकर्ता द्वारा उत्पन्न तनाव को कम किया जा सके। इस अंतराल में कुछ अन्य अधिवक्ताओं ने हस्तक्षेप किया और महिला से संवाद किया। उसने अपना लॉयर गाउन उतार दिया, मगर वकील का बैंड पहने रही। कोर्ट के अनुसार, जब सुनवाई दोबारा शुरू हुई तो उसने आक्रामक अंदाज़ में दलीलें पेश कीं। अंततः जब उसे लगा कि फैसला उसके पक्ष में नहीं जाएगा, तो उसने दावा किया कि सुनवाई कर रहे जजों को कानून का ज्ञान ही नहीं है। बेंच ने कहा, हमारी सोच को भांपते हुए याचिकाकर्ता ने अनियंत्रित होकर बोलना शुरू कर दिया, हम पर कानून की जानकारी न होने और अयोग्य जज होने का आरोप ठोंका। उसने एक विकृत टिप्पणी यह भी की कि जज उसे लॉयर की पोशाक पहनने से इसलिए रोक रहे हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि उसका शरीर दिखे। हम उसके शब्दों को शब्दशः नहीं दोहरा रहे, क्योंकि यह निश्चित रूप से शालीनता की सभी सीमाओं का अतिक्रमण होगा; लेकिन हम स्तब्ध और हैरान तो थे ही। पीठ ने आगे कहा, यह घृणित और निंदनीय है, फिर भी हम याचिकाकर्ता के आचरण का संज्ञान नहीं लेना चाहते, लेकिन हम इस बात से स्तब्ध हैं कि एक वकील, यदि वह वास्तव में वकील है, इतना नीचे कैसे गिर गई। हम इसे यहीं समाप्त करते हैं! बावजूद इसके, हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि बार काउंसिल या बार एसोसिएशन को याचिकाकर्ता के इस व्यवहार की जांच करनी चाहिए। वीरेंद्र/ईएमएस/28अक्टूबर2025