अंतर्राष्ट्रीय
03-Nov-2025


लोग कह रहे ये चीन के कर्ज के जाल में फंसने जैसा जकार्ता (ईएमएस)। इंडोनेशिया की बुलेट ट्रेन परियोजना के चीन से लिए गए कर्ज और उससे जुड़े वित्तीय विवाद इनदिनों चर्चा में है। दक्षिण-पूर्व एशिया की पहली हाई-स्पीड रेल परियोजना वुश, जिसे चीन की मदद से बनाया गया है। परियोजना की लागत 7.27 अरब डॉलर (करीब 60,000 करोड़) है, और अब इसके बढ़ते कर्ज को लेकर इंडोनेशिया सरकार में आंतरिक विवाद खड़ा हो गया है। इस फैसले को चीन के कर्ज के जाल में फंसने के रूप में देखा जा रहा है। वित्त मंत्री पुरबाया युधि सादेवा ने स्पष्ट किया है कि इस प्रोजेक्ट का कर्ज देश के बजट से नहीं चुकाया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी देश की सॉवरेन वेल्थ फंड संस्था डानंतारा की है, जो सरकारी कंपनियों के मुनाफे और निवेश को नियंत्रित करती है। उनका तर्क है कि डानंतारा ने सरकारी कंपनियों से बड़ा डिविडेंड लिया है, इसलिए कर्ज उसे ही संभालना चाहिए। मंत्री के अनुसार, इंडोनेशिया को इस प्रोजेक्ट के लिए हर साल 2 ट्रिलियन रुपिया (लगभग 120 मिलियन डॉलर) का कर्ज चुकाना पड़ता है। डानंतारा के सीईओ रोसान रोसलानी ने कहा कि वे कर्ज संकट से निकलने के लिए हिस्सेदारी बढ़ाना और सरकारी स्वामित्व में लेना सहित सभी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। चीन ने संकेत दिया है कि वह कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग (पुनर्गठन) पर चर्चा के लिए तैयार है। वहीं पूर्व राष्ट्रपति जोको विडोडो के कार्यकाल में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट का बचाव करते हुए मंत्री लुहुत पांडजैतान ने चीन के कर्ज के जाल में फंसने की बात को गलत बताया। उन्होंने कहा कि वित्तीय सुधार किए जा रहे हैं और चीन से कर्ज पुनर्गठन पर बातचीत शुरू हो गई है। पूर्व समन्वय मंत्री महफूद ने आरोप लगाया कि निर्माण लागत बढ़कर 52 मिलियन डॉलर प्रति किलोमीटर हो गई, जो चीन में ऐसी लाइन की लागत से तीन गुना अधिक है। उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट को सार्वजनिक न करने पर भी सवाल उठाया। किसे चुकाना चाहिए कर्ज? इंडोनेशियाई विशेषज्ञ इस मुद्दे पर दो धड़ों में बंट गए है। गजाह माडा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एडी जुनार्सिन का मानना है कि कर्ज की जिम्मेदारी डानंतारा को उठानी चाहिए, क्योंकि वहीं निवेश और डिविडेंड फैसले लेती है। उन्होंने कहा, ‘वित्त मंत्रालय केवल समर्थन दे सकता है, लेकिन मुख्य जिम्मेदारी डानंतारा की है। वहीं इंडेफ के शोधकर्ता अंद्री सात्रियो नुग्रोहो का मानना है कि कर्ज का बोझ स्टेट बजट से ही चुकाया जाना चाहिए, क्योंकि हाई-स्पीड रेल जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स आमतौर पर ‘गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट’ मॉडल से चलते हैं। आशीष दुबे / 03 नवबंर 2025