छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में मंगलवार को एक दर्दनाक ट्रेन हादसा हुआ। यहां कोरबा पैसेंजर ट्रेन और मालगाड़ी आपस में टकरा गईं। भिड़ंत इतनी जबरदस्त थी कि कई डिब्बे क्षतिग्रस्त हो गए। हादसे में लोको पायलट समेत 11 लोगों की मौत हो गई। वहीं कई यात्री घायल हैं। हादसा इतना भीषण था कि पैसेंजर ट्रेन मालगाड़ी के ऊपर चढ़ गई थी। जानकारी के मुताबिक, यह पैसेंजर ट्रेन गेवरा से बिलासपुर जा रही थी, जबकि मालगाड़ी बिलासपुर से आ रही थी। इस हादसे ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ रेल एवं भारतीय रेल सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। छत्तीसगढ़ में ट्रेन हादसे कोई नई बात नहीं है , 2025 में अब तक तीन से ज्यादा रेल हादसे हो चुके हैं, ये घटनाएं यात्रियों के लिए चिंता का विषय हैं। हर बार रेलवे प्रशासन की लापरवाही या तकनीकी खामी को जिम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन हादसे रुक नहीं रहे। रेलवे विशेषज्ञों द्वारा की गई घटना की प्रारंभिक जांच के मुताबिक खड़ी मालगाड़ी से टकराने वाली यात्री ट्रेन का चालक दल रेड सिग्नल पर उसे नियंत्रित करने में विफल रहा। रिपोर्ट में आगे बताया गया कि ट्रेन का चालक दल सही समय और सही स्थिति में ट्रेन को नियंत्रित न कर पाने के लिए ज़िम्मेदार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रेन लाल सिग्नल को पार कर गई और दोपहर 3:50 बजे अगले लाल सिग्नल पर खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई। जांच रिपोर्ट पांच विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई थी, हालाँकि केवल तीन ने ही इस पर हस्ताक्षर किए हैं। सिग्नल और दूरसंचार विभाग के अधिकारी ने रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। रिपोर्ट में गेवरा स्टेशन मास्टर का एक बयान भी शामिल है, जिन्होंने कहा कि मेमू ट्रेन के रवाना होने के बाद, उन्हें वीएचएफ संचार पर गार्ड से एक संदेश मिला जिसमें टक्कर होने के कारण एम्बुलेंस बुलाने का अनुरोध किया गया था। वहीं एक अधिकारी ने बताया कि रेलवे सुरक्षा आयुक्त अब दुर्घटना के कारणों की जांच करेंगे और एक विस्तृत रिपोर्ट देंगे। ख़ैर ये रिपोर्ट आदि तो काग़ज़ी गतिविधियां होती रहती हैं, परंतु जो लोग सिस्टम की लापरवाही से मर गए उनकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा ? क्या मुआवजा मिल जाने से मरने वाले लौट आएंगे? जब किसी के घर का सदस्य असामयिक मर जाता है या सिस्टम की भेंट चढ़ जाता है तब किसी तरह से कोई बहाना किसी पर थोप दिया जाता है, जबकि ये सिस्टम एवं सरकार का फेलियर कहा जाएगा। पिछले कुछ सालो से रेल हादसों की बाढ़ सी आ गई है, सोशल मीडिया पर खूब मज़ाक उड़ाया जाता है कि भैया मैं आज रेल सफ़र करने वाला हूं मेरे लिए दुआएं कीजिए! लोगों के अंदर रेल्वे हादसों के बीच बढ़ता खौफ़ रेल्वे एवं सरकार के लिए शर्मनाक है। सरकार से जब रेल हादसों के बारे में पूछा जाता है किसकी ज़िम्मेदारी है? तो सरकार की तरफ से कहा जाता है कि अब रेल हादसों में मरने वालों की संख्या में गिरावट आई है जबकि ये बेहद असंवेदनशील बयान है। अगर सिस्टम के कारण किसी एक भी व्यक्ति की जान जाती है तो सरकार को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। कभी हमारे देश में नैतिकता के आधार पर मंत्रियों के इस्तीफे हो जाते थे, 1956 में, तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने तमिलनाडु में अरियालुर रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था। नीतीश कुमार ने 2 अगस्त 1999 को गैसल ट्रेन दुर्घटना के बाद पद छोड़ दिया था। ममता बनर्जी ने भी रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, परंतु अटल बिहारी वाजपेयी ने इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं किया था। अगस्त 2017 में, सुरेश प्रभु ने चार दिनों में दो दुर्घटनाओं की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना इस्तीफा सौंप दिया था। औरैया के पास कैफियत एक्सप्रेस का पटरी से उतरना, जिसमें 70 से अधिक लोग घायल हो गए थे और मुजफ्फरनगर के पास खतौली में कलिंग उत्कल एक्सप्रेस का पटरी से उतरना, जिसमें 22 लोगों की मौत हो गई और 150 से अधिक लोग घायल हो गए थे। अब नैतिक ज़िम्मेदारी जैसी कोई बात नहीं रह गई है, मंत्रियों के पास बहाने ही बहाने हैं, विचित्र सी स्थिति है, क्या लोगों के जान की कीमत मुआवजे से तय होगी? यह काफ़ी दुर्भाग्यपूर्ण है कि रेल दुर्घटनाएं, खास तौर पर पटरी से उतरना, इतनी दुर्लभ नहीं हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2021 में 17,993 रेल दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, रिकॉर्ड बताते हैं कि पिछले 10 सालों में ट्रेन दुर्घटनाओं में लगभग 2.6 लाख लोगों की जान गई है और इनमें से ज्यादातर मौतें टक्कर की वजह से नहीं बल्कि इसलिए हुई क्योंकि लोग ट्रेन से गिर गए या ट्रेन के नीचे दब गए। फिर भी, देश में रेल सुरक्षा एक बड़ी चिंता बनी हुई है, रेल्वे को लोगों की जान की परवाह करते हुए सुरक्षा मज़बूत करनी चाहिए जिससे लोगों के अंदर रेल्वे हादसों का खौफ़ ख़त्म हो जाए। (लेखक पत्रकार हैं) ईएमएस / 06 नवम्बर 25