अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर के मेयर पद पर पहली बार भारतीय मूल के मुस्लिम नेता जोहरान ममदानी निर्वाचित हुए हैं। यह न केवल एक ऐतिहासिक जीत है, बल्कि अमेरिकी राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत भी मानी जा रही है। ममदानी ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त कर यह चुनाव जीता है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस चुनाव में हस्तक्षेप करते हुए चेतावनी दी थी कि यदि ममदानी जीतते हैं, तो वह न्यूयॉर्क की फंडिंग बंद कर देंगे। ट्रंप की इस धमकी के बावजूद न्यूयॉर्क की जनता ने 34 वर्षीय ममदानी को भारी बहुमत से विजयी बनाकर यह स्पष्ट संदेश दे दिया कि अमेरिका में परिवर्तन की लहर उठ चुकी है। यह जीत ट्रंप के लिए एक बड़ी राजनीतिक हार मानी जा रही है। डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका धार्मिक ध्रुवीकरण और नस्ली भेदभाव की दिशा में बढ़ता नजर आ रहा है। उनकी आर्थिक नीतियां कॉरपोरेट घरानों के पक्ष में झुकी हुई हैं, जिससे आम नागरिकों की मूलभूत सुविधाएं लगातार कम हो रही हैं। परिणामस्वरूप, अब न केवल डेमोक्रेटिक पार्टी बल्कि रिपब्लिकन खेमे के भीतर भी ट्रंप की कार्यशैली को लेकर असंतोष बढ़ रहा है। पिछले सौ वर्षों में न्यूयॉर्क के पहले भारतीय मूल के मेयर के रूप में ममदानी ने प्रगतिशील राजनीति और समाजवाद के प्रतीक बनकर जनता का विश्वास जीता है। वर्ष 2020 में वह न्यूयॉर्क स्टेट असेंबली के सदस्य चुने गए थे। गरीब और श्रमिक वर्ग के हक की आवाज उठाने के कारण उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती गई। मेयर बनने के बाद अपने पहले भाषण में ममदानी ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के 15 अगस्त 1947 के ऐतिहासिक संबोधन का उल्लेख करते हुए कहा— न्यूयॉर्क अब पुराने से नए युग की ओर बढ़ रहा है। संघीय व्यवस्था और न्यायपालिका को जिस तरह से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चुनौती दी जा रही है, उसके खिलाफ एक बड़ा वातावरण बनना अमेरिका में शुरू हो गया है। न्यूयॉर्क के मेयर पद का चुनाव ट्रंप के लिए एक चिंगारी है। जो सुलग गई है, आगे चलकर यह एक बड़े स्वरूप में सामने आएगी। अमेरिका में पूंजीवाद का विरोध शुरू हो चुका है। पूंजीवाद के साथ अब समाजवाद की भी बात होने लगी है। भारत की तरह मिश्रित अर्थ व्यवस्था को लेकर अमेरिका के आगे बढ़ने का यह एक संकेत है। ममदानी लंबे समय से कॉरपोरेट पर टैक्स बढ़ाने और मध्यम एवं निम्न वर्ग को अधिक सुविधाएं देने की मांग करते रहे हैं। वहीं, ट्रंप के शासनकाल में धार्मिक कट्टरता, नस्लवाद और महंगाई में वृद्धि ने आम अमेरिकी नागरिकों को परेशान कर रखा है। ट्रंप की ‘टैरिफ वार’ नीति से आयातित वस्तुएं महंगी हो गई हैं। वह एक तानाशाह की तरह निर्णय लेते हुए न्यायपालिका और संघीय संस्थाओं को दरकिनार कर रहे हैं। इससे अमेरिकी लोकतंत्र की जड़ें हिल रही हैं। ममदानी की जीत के साथ ही वर्जीनिया में भारतीय मूल की डेमोक्रेट नेता गजाला हाशमी ने लेफ्टिनेंट गवर्नर का चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया है। वह इस पद पर पहुंचने वाली अमेरिका की पहली मुस्लिम महिला हैं। इसी तरह, भारतीय मूल के आफताब पुरेवाल ने ओहायो के सिनसिनाटी शहर में दोबारा मेयर का चुनाव जीता है। यह सभी जीतें संकेत हैं कि अमेरिका की राजनीतिक फिजा तेजी से बदल रही है। अमेरिका एक संघीय लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जहां विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग सदियों से साथ रहते आए हैं। लेकिन हाल के वर्षों में नस्लवाद और धार्मिक उन्माद ने अमेरिकी समाज की नींव को कमजोर किया है। बढ़ती महंगाई, टैक्सों का बोझ और कॉरपोरेट के प्रति सरकारी झुकाव ने मध्यम व निम्न वर्ग की परेशानियां बढ़ा दी हैं। ऐसे माहौल में ममदानी की जीत ने न केवल ट्रंप की नीतियों को चुनौती दी है, बल्कि यह पूंजीवाद के खिलाफ समाजवादी सोच के पुनर्जागरण का संकेत भी देती है। उन्होंने अपने भाषण में नेहरू के उस विचार का उल्लेख किया, जिसमें भारत ने पूंजीवाद, समाजवाद और साम्यवाद के मिश्रण से अपनी अर्थव्यवस्था को संतुलित करने का प्रयास किया था। आज जब दुनिया आर्थिक मंदी के संकट से जूझ रही है, तब ममदानी जैसे युवा नेता आशा की नई किरण बनकर उभर रहे हैं। अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश में समाजवादी सोच की यह चिंगारी शायद एक नई दिशा दिखाए, जहां आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय और समानता भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण हों। निश्चित रूप से सभी वर्ग अपने आपको आर्थिक और सामाजिक तौर पर बेहतर स्थिति के रूप में देख रहे हैं। नई सोच का नेतृत्व अब ममदानी जैसे युवा कंधों पर आ गया है। जिस तरह से आर्थिक मंदी का खतरा सारी दुनिया में देखा जा रहा है। ऐसे समय पर यह नया नेतृत्व आशा की एक नई किरण बनकर सामने है। अमेरिका जैसे देश में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक आदर्श के रूप में देखा जा रहा है। ईएमएस / 06 नवम्बर 25