बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 64.66 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया - यह पिछले दो दशकों का सबसे ऊंचा आंकड़ा है। 2020 के चुनाव में जहां 57.29% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था, वहीं 2015 में यह आंकड़ा 56.8% और 2010 में 52.6% था। इस बार करीब 7 प्रतिशत की वृद्धि ने न केवल चुनावी विश्लेषकों को चौंकाया है, बल्कि बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में नए संकेत भी दिए हैं। :: अभूतपूर्व मतदान और सामाजिक संकेत :: निर्वाचन आयोग के अनुसार, पहले चरण में 121 विधानसभा सीटों पर लगभग 3.75 करोड़ मतदाता शामिल हुए। मतदान के दौरान कुल 45,341 केंद्र बनाए गए, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में थे। यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों में मतदान का उत्साह सबसे अधिक देखा गया। कई जिलों में लंबी कतारें सुबह से ही देखने को मिलीं। मुजफ्फरपुर, सीवान, और सासाराम जैसे जिलों में मतदान दर 70 प्रतिशत से ऊपर रही, जो बिहार के चुनावी इतिहास में दुर्लभ है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में इतनी बड़ी मतदान वृद्धि राज्य की लोकतांत्रिक परिपक्वता का संकेत है। यह इस बात का प्रमाण है कि मतदाता अब सरकारों को परखने और जवाबदेही तय करने के प्रति अधिक सजग हो चुके हैं। साथ ही, निर्वाचन आयोग की ‘स्पेशल इंटेंसिव रिविजन’ (SIR) प्रक्रिया के तहत लाखों फर्जी, मृत या डुप्लिकेट नाम हटाए जाने से भी वास्तविक मतदान प्रतिशत बढ़ा है। इस बार के चुनाव में सबसे बड़ा और सकारात्मक बदलाव महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के रूप में देखने को मिला। निर्वाचन आयोग ने भी इसे बिहार के लोकतांत्रिक इतिहास की “महिला शक्ति की ऐतिहासिक भागीदारी” बताया है। कुल मतदाताओं में लगभग 47 प्रतिशत महिलाएँ थीं, और कई निर्वाचन क्षेत्रों में महिलाओं की मतदान दर पुरुषों से अधिक रही। विशेषज्ञों का मानना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार द्वारा चलाई गई महिला केंद्रित योजनाएँ - जैसे कि छात्राओं के लिए साइकिल योजना, कन्या उत्थान योजना, और हाल ही में घोषित नकद प्रोत्साहन योजनाएँ - महिला मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करने में अहम रहीं। 2020 में भी जिन सीटों पर महिलाओं की वोटिंग दर अधिक थी, वहां एनडीए को बढ़त मिली थी। इसलिए इस बार भी महिलाओं की निर्णायक भूमिका चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती है। :: सत्ता और विपक्ष - दोनों के लिए परीक्षा :: इतना ऊंचा मतदान आमतौर पर दो संकेत देता है - या तो मतदाता सरकार पर भरोसा जता रहे हैं, या वे बदलाव की ललक में हैं। एनडीए खेमे में इसे ‘सुशासन और विकास’ पर जनता के भरोसे के रूप में देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा नेतृत्व का दावा है कि सरकार की कल्याणकारी नीतियों और स्थिरता के प्रति लोगों ने विश्वास जताया है। वहीं, विपक्षी दल - विशेषकर राजद और कांग्रेस इसे ‘जनता का जनादेश बदलने की इच्छा’ बता रहे हैं। उनका मानना है कि रोजगार, महंगाई, और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर मतदाता नाराज़ हैं और उच्च मतदान उसी असंतोष का प्रतिबिंब है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, “इतिहास बताता है कि बिहार में जब-जब मतदान दर बढ़ी है, सत्ता परिवर्तन की संभावना भी बढ़ी है। पर इस बार समीकरण थोड़ा अलग है - ग्रामीण मतदाताओं और महिलाओं की उच्च भागीदारी सत्तारूढ़ गठबंधन को भी लाभ पहुंचा सकती है।” :: दूसरा चरण और आगे की राह :: बिहार चुनाव के दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को होगा, जिसमें शेष 122 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। पहले चरण का रुझान अगर आगे भी कायम रहा, तो यह बिहार में अभूतपूर्व मतदाता सक्रियता का प्रमाण होगा। इस बार के रिकॉर्ड मतदान ने यह साबित कर दिया है कि बिहार के मतदाता न केवल जागरूक हैं, बल्कि राज्य के भविष्य को लेकर पहले से अधिक सजग भी हैं। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी, ग्रामीण इलाकों का राजनीतिक पुनर्जागरण, और युवाओं की बढ़ी दिलचस्पी - इन सबने मिलकर बिहार के लोकतंत्र की नींव को और मजबूत किया है। अब सबकी नज़र 14 नवंबर को होने वाली मतगणना पर है। तब यह साफ होगा कि यह जोश और बढ़ी भागीदारी सत्ता में विश्वास की जीत है या बदलाव की चाहत की घोषणा। ईएमएस/प्रकाश/7 नवम्बर 2025