लेख
09-Nov-2025
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पाकिस्तान की राजनीति और सेना के बीच का रिश्ता हमेशा से सत्ता संघर्ष और आपसी हितों की खींचतान में उलझा रहा है। मगर हालिया घटनाओं ने इस रिश्ते की जटिलता को और गहरा कर दिया है। जिस वक्त पाकिस्तान की सेना तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे संगठनों से बल्कि प्रत्येक मोर्चे पर लगातार पराजय झेल रही है, उसी वक्त शहबाज सरकार ने सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को नई शक्तियां देने का रास्ता निकाल लिया है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने संविधान में संशोधन का 27वां बिल संसद में पेश कर रक्षा बलों के प्रमुख का नया पद सृजित किया है और इस पद पर नियुक्ति का ताज असीम मुनीर के सिर सजने वाला है। यह संशोधन महज एक प्रशासनिक कदम नहीं कहा जा सकता बल्कि इसे सत्ता-संतुलन के खेल का अहम हिस्सा माना जाना चाहिए। यह कौन नहीं जानता कि पाकिस्तान में सेना की मर्जी के बगैर कोई भी लोकतांत्रिक सरकार चार दिन भी नहीं चल सकती है। सेना का प्रभाव इतना गहरा है कि सरकारें उसकी छाया में ही महफूज रहती हैं। ऐसे में रक्षा बलों के प्रमुख का नया पद बनाकर सरकार ने यह संकेत दे दिया है कि सैन्य तंत्र को अब संवैधानिक रूप से भी सर्वोपरि दर्जा दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की सलाह पर यह नियुक्ति होगी, परंतु यह सलाह वस्तुतः औपचारिक्ता वाली रह जाएगी। सेना अब न केवल रक्षा नीति बल्कि राष्ट्रीय राजनीति का भी निर्णायक चेहरा बनने की ओर अग्रसर है। दिलचस्प बात यह है, कि यह फैसला उस समय आया है जबकि पाकिस्तान की सेना अंदर और बाहर दोनों मोर्चों पर लगातार नाकाम साबित हो रही है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में एफ-16 समेत कई पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों के ध्वस्त होने के बाद पाकिस्तान को युद्धविराम की गुहार लगानी पड़ी थी। इस पराजय के तुरंत बाद असीम मुनीर को फील्ड मार्शल का तमगा देकर पुरस्कृत किया गया और अब उन्हें तीनों सेनाओं का सर्वोच्च प्रमुख बनाए जाने की तैयारी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या पराजय को ढंकने के लिए सम्मान और पदोन्नति का यह खेल खेला जा रहा है? खैबर पख्तूनख्वा के बन्नू जिले की एक ताजा घटना ने पाक सेना की अक्षमता को और भी बेहतर ढंग से उजागर करने का काम किया है। दरअसल खबर है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के लड़ाकों ने सेना की एक चौकी पर कब्जा कर सैनिकों को भागने पर मजबूर कर दिया। चौकी पर तालिबानी झंडा फहराया गया और पाकिस्तानी सेना के जवानों के हथियारों को कब्जे में ले लिया गया। यह वही इलाका है जहां कभी पाकिस्तानी सेना आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाने और अनेक लड़ाकों को मारने जैसे दावे करती थी। अब हालात इतने बिगड़ गए हैं कि तालिबानी संगठन खुलेआम अपनी चेकपोस्टें बना रहे हैं और स्थानीय इलाकों पर नियंत्रण कायम कर रहे हैं। पेशावर और बन्नू जैसे इलाकों में सरकार और सेना का प्रभाव घटता जा रहा है। इसे विडंबना ही कहा जा सकता है, कि जब पाकिस्तान की सीमाओं के भीतर उसकी सेना अपना नियंत्रण खोती जा रही है, तब वही सेना देश के भीतर सत्ता की बागडोर और मजबूत पकड़ बनाने में व्यस्त है। इससे साफ झलकता है कि पाकिस्तानी नेतृत्व की प्राथमिकता राष्ट्रीय सुरक्षा नहीं, बल्कि सत्ता संरक्षण है। मुनीर को दिया जा रहा यह ‘सुपर-सीओएस’ पद राजनीतिक व्यवस्था पर सेना के स्थायी कब्जे की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। उधर, आतंकवाद का पुराना चेहरा हाफिज सईद और उसके संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा की पड़ोसी देशों में बढ़ती गतिविधियां एक बार फिर चिंता का सबब बनी हैं। एक वायरल वीडियो में लश्कर कमांडर सैफुल्लाह सैफ यह दावा करता नजर आया कि हाफिज सईद बांग्लादेश के रास्ते भारत पर हमले की योजना बना रहा है। इस दावे में सच्चाई चाहे जितनी भी हो, परन्तु यह साफ संकेत है कि पाकिस्तान की भूमि एक बार फिर आतंकवादी लॉन्चपैड के रूप में इस्तेमाल होने के लिए तैयार है। इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं पहली, पाकिस्तानी शासन आतंकी ढांचों पर प्रभावी नियंत्रण खो चुका है और दूसरी, वह आतंकी समूहों को अपने रणनीतिक उपकरण की तरह अब भी इस्तेमाल करने से बाज नहीं आ रहा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह स्थिति पाकिस्तान के लिए घातक साबित हो सकती है। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि मौजूदा हालात में पाकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहा है। बढ़ती बेरोजगारी और डॉलर की कमी से पाकिस्तान सरकार आईएमएफ की शर्तों को मानने पर बाध्य है, वहीं दूसरी ओर आतंकवाद के पुनरुत्थान और सैन्य वर्चस्व ने उसकी विश्वसनीयता को दुनियां के अधिकांश देशों के सामने और गिरा दिया है। इस पृष्ठभूमि में मुनीर को नया पद देकर शक्ति सौंपना लोकतंत्र को कमजोर करने की दिशा में एक और कदम है। पाकिस्तान की इस स्थिति को देखते हुए भारत को सीमा पर और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। क्योंकि पाकिस्तान का हाल इन दिनों कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है, कि हम तो डूबे हैं सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे। यह अलग बात है कि इस मामले में भी पाकिस्तान को मुंह की ही खानी पड़ेगी, क्योंकि पाकिस्तान की सेना आज भी दो मोर्चों पर पिट रही है, एक ओर आतंकी संगठनों से, दूसरी ओर अपनी ही असफल नीतियों से। बावजूद इसके, मुनीर को यूं तमगों से नवाजा जाना, पाकिस्तानी आवाम के गले से भी नीचे नहीं उतर रहा है। आम जनता भी यही कह रही है कि जब हर मोर्चे पर सेना हार रही है तो फिर ये तमगे क्योंकर और कैसे? ईएमएस / 09 नवम्बर 25