पुष्पक विमान का वर्णन प्राय: सभी श्रीरामकथाओं में वर्णित है किन्तु इसका वर्णन विस्तृत न होकर अत्यन्त ही लघुरूप में रहता है। पुष्पक विमान का वर्णन युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड) में आरम्भ होकर इसी काण्ड में समाप्त हो जाता है किन्तु वाल्मीकि रामायण में इसका वर्णन सुन्दरकाण्ड से प्रारम्भ होकर युद्धकाण्ड में अत्यन्त विस्तृत रूप से दिया गया है। पुष्पक विमान का इतिहास, उसकी विशेषता उस समय के विज्ञान का श्रेष्ठ होना सिद्ध करता है। वर्तमान नई पीढ़ी की उसकी जिज्ञासा, आस्था एवं विज्ञान का यह वर्णन आनन्ददायक प्राप्त होगा। अत: इस रामायण के विभिन्न काण्डों में से चुन-चुनकर वर्णन किया गया है। इसमें पुष्पक विमान की विस्तारपूर्वक विशेषताएँ बतलाई गई है। हनुमानजी सीताजी की खोज करते-करते लंका के विशाल भवन जिसमें सैकड़ों अट्टालिकाएँ थीं, सैकड़ों रमणीय रत्नों से व्याप्त थीं, वहाँ पहुँचे। उसकी ड्योढ़ियाँ बहुत बड़ी-बड़ी थीं। ऐसे विशाल भवन में हनुमानजी के प्रवेश का यह प्रसंग वाल्मीकि रामायण में सर्वप्रथम सुन्दरकाण्ड में वर्णित है। वे भवन बड़े प्रयत्न से बनाए गए थे और ऐसे अद्भुत लगते थे, मानों साक्षात् मयदानव ने ही इनका निर्माण किया हो। हनुमानजी ने उन्हें देखा, लंकापति रावण के वे घर इस भूतल पर सभी गुणों में सबसे बढ़-चढ़कर थे। तदनन्तर उन्होंने राक्षसराज रावण का उसकी शक्ति के अनुरूप अत्यन्त उत्तम और अनुपम पुष्पक विमान देखा जो मेघ के समान ऊँचा सुवर्ण के समान सुन्दर कान्तिवाला तथा मनोहर था। वह इसे भूतल पर बिखरे हुए स्वर्ण के समान जान पड़ता था। अपनी कान्ति से प्रज्वलित सा हो रहा था। अनेकानेक रत्नों से व्याप्त, भाँति-भाँति के वृक्षों के फूलों से आच्छादित तथा पुष्पों के पराग से भरे हुए पर्वत-शिखर के तुल्य शोभा पा रहा था। वह विमान रूप भवन विन्ध्यमालाओं से पूजित मेघ के समान रमणीय रत्नों से देदीप्यमान हो रहा था और श्रेष्ठ हंसों द्वारा आकाश में ढोये जाते हुए विमान की गति जान पड़ता था। वह अद्भुत शोभा से सम्पन्न दिखाई देता था। जैसे अनेक धातुओं के कारण पर्वत शिखर, ग्रहों और चन्द्रमा के कारण आकाश तथा अनेक वर्णों से युक्त होने के कारण मनोहर मेघ विभिन्न शोभा धारण करते हैं। उसी तरह नाना रत्नों से निर्मित होने के कारण वह पुष्पक विमान भी विचित्र शोभा से सम्पन्न दिखाई देता था। उस पुष्पक विमान की आधार भूमि (आरोहियों के खड़े होने का स्थान) सोने और मणियों के द्वारा निर्मित कृत्रिम पर्वत-मालाओं से पूर्ण बनी हुई थी। वे पर्वत वृक्षों की विस्तृत पंक्तियों से हरे भरे रचे गए थे। वे वृक्ष फूलों के बाहुल्य से व्याप्त बनाए गए थे ताकि पुष्प भी केसर एवं पंखुड़ियों से पूर्ण निर्मित हुए थे। उस विमान में श्वेतभवन बने हुए थे। सुन्दर फूलों से सुशोभित पोखरे बनाए गए थे। केसरयुक्त कमल, विचित्र वन और अद्भुत सरोवरों का भी निर्माण किया गया था। पुष्पाह्ययं नाम विराजमानं म् रत्नप्रभामिश्च विघूर्णमान वेश्मोतमानामपि चोच्चमानं महाकविस्तत्र महाविमानम्। वाल्मीकिरामायण सुन्दरकाण्ड सर्ग ७-११ महाकपि हनुमान ने जिस सुन्दर विमान को वहाँ देखा, उसका नाम पुष्पक था। वह रत्नों की प्रभा से प्रकाशमान था और इधर-उधर भ्रमण करता था। देवताओं के गृहाकार उत्तम विमानों में सबसे अधिक आदर उस महाविमान पुष्पक का ही होता था। पुष्पक विमान में नीलम, चाँदी और मूँगों के आकाशचारी पक्षी बनाए गए थे। नाना प्रकार के रत्नों से विचित्र वर्ण के सर्पों का निर्माण किया गया था और अच्छी नस्ल (जाति) के घोड़ों के समान सुन्दर-सुन्दर अंगवाले अश्व भी बनाए गए थे। उस विमान पर सुन्दर मुख और मनोहर पंखवाले बहुत से ऐसे विहंगम पक्षी निर्मित हुए थे, जो साक्षात् कामदेव के सहायक जान पड़ते थे। उनकी पंखें मूंगे और सुवर्ण के बने हुए फूलों से युक्त थीं तथा उन्होंने लीलापूर्वक अपने बाँकें पंखों को समेट रखा था। उस विमान के कमलमण्डित सरोवर में ऐसे हाथी बनाए गए थे कि लक्ष्मी के अभिषेक कार्य में नियुक्त थे। उनकी सूँड बड़ी ही सुन्दर थी। उनके अंगों में कमलों के केसर लगे हुए थे तथा उन्होंने अपनी सुण्डों में कमल पुष्प धारण किए थे। उनके साथ ही साथ वहाँ तेजस्विनी लक्ष्मीदेवी की प्रतिमा भी विराजमान थी जिनका उन हाथियों के द्वारा अभिषेक हो रहा था। उनके हाथ बड़े सुन्दर थे। उन्होंने अपने हाथ में कमलपुष्प धारण कर रखा था। इस प्रकार सुन्दर कन्दराओं ावले पर्वत के समान तथा वसन्त ऋतु में सुन्दर कोटों वाले परम सुगन्धयुक्त वृक्ष के समान उस शोभायमान मनोहर विमान में पहुँचकर हनुमानजी बड़े विस्मित हुए और तुरन्त वह दु:खी भी हो गए क्योंकि सीताजी इनमें उन्हें कहीं नहीं दिखाई दी। रावण के भवनके मध्य भाग में खड़े हनुमानजी ने पुन: पुष्पक विमान देखा। उसके सौन्दर्य और रचना की दृष्टि से मापा नहीं जा सकता है। स्वयं विश्वकर्मा ने उसे बनाया था। रावण ने निराहार रहकर तप किया और भगवान के चिन्तन में चित्त को एकाग्र किया था, इससे मिले हुए पराक्रम से उसने उस विमान पर अधिकार प्राप्त किया था। मन में जहाँ कहीं भी जाने का संकल्प उठता वहीं वह विमान पहुँच जाता था। ब्रह्मणोऽर्थे कृतं दिव्य दिवि यद् विश्वकर्मणा। विमानं पुष्पकं नाम सर्वरत्नविभूषितम्।। परेण तपसा लेभे यत कुबेर: पितामहात्। कुबेरमोजसा जित्वा लेभे तद् राक्षसेश्वर:।। वाल्मीकिरामायण सुन्दरकाण्ड सर्ग ९-११-१२ सब प्रकार के रत्नों से विभूषित पुष्पक नामक दिव्य विमान स्वर्गलोक में विश्वकर्मा ने ब्रह्माजी के लिए बनाया था। कुबेर ने बड़ी तपस्या करके उसे ब्रह्माजी से प्राप्त किया और फिर कुबेर को बलपूर्वक परास्त करके राक्षसराज रावण ने उसे अपने हाथ में कर लिया। हनुमानजी ने देखा कि लंकावर्ती सर्वश्रेष्ठ गृह के मध्य भाग में एक उत्तम भवन शोभायमान था। वह बहुत ही निर्मल एवं विस्तृत था। उसकी लम्बाई एक योजन और चौड़ाई आधा योजन थी। सीताजी की खोज करते-करते हनुमानजी सब ओर घूम रहे थे। घूमते-घूमते वे रावण के निजी निवास में पहुँच गए। नर-नारियों से भरा हुआ वह कोलाहलपूर्ण भवन महासागर के समान प्रतीत हो रहा था। जो लक्ष्मी, कुबेर, चन्द्रमा और इन्द्र के यहाँ निवास करती हैं वे ही और भी सुरम्य रूप से रावण के घर में नित्य ही निश्चल होकर रहती थी। उस महल के मध्य भाग में एक दूसरा भवन पुष्पक विमान था। जिसे हनुमानजी ने फिर देखा। हनुमानजी उस दिव्य पुष्पक विमान पर चढ़ गए। यहाँ बैठकर वे दिव्य गंध सूंघने लगे। सुगंध जहाँ से आ रही थी वहाँ हनुमानजी प्रस्थित हुए। आगे उनको एक और बड़ी हवेली दिखी, जहाँ बहुमूल्य बिछोने बिछे हुए थे और रावण वहाँ निवास करता था। वहाँ हनुमानजी को कहीं भी सीताजी नहीं दिखी। पुष्पक विमान की एक और विशेषता वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड में देखने को प्राप्त होती है। मेघनाद नागपाश (नागमय बाणों) में श्रीराम और लक्ष्मणजी को बाँध देता है तथा अपने पिता रावण से यह सारा वृत्तांत सुनाता है, तब रावण उस समय सीता की रक्षा करने वाली राक्षसियों को बुलवाता है, आज्ञा पाते ही त्रिजटा तथा अन्य राक्षसियाँ उनके पास आईं। तब हर्ष में भरे हुए रावण ने उन राक्षसियों से कहा- हताविन्द्रजिताख्यात वैदेह्या रामलक्ष्मणौ। पुष्पकं तत्समारोप्य दर्शयध्वं रणे हतौ।। वाल्मीकिरामायण युद्धकाण्ड सर्ग ४७-७ तुम लोग विदेह कुमारी सीता से जाकर कहा कि इन्द्रजीत ने राम और लक्ष्मण को मार डाला। फिर पुष्पक विमान पर सीता को चढ़ाकर रणभूमि में ले जाओ और उन मारे गए दोनों बन्धुओं को दिखा दो। उन राक्षसियों ने पति शोक से व्याकुल हुई सीता को तत्काल पुष्पक विमान पर चढ़ाकर रणक्षेत्र में ले गई। वहाँ अपने स्वामी श्रीराम को तथा महाबली लक्ष्मण को भी मारा गया देखकर शोक से पीड़ित हुई सीता बारम्बार करुणाजनक विलाप करने लगी। इस प्रकार विलाप करती हुई सीता से राक्षसी त्रिजटा ने कहा देवि! विषाद न करो। तुम्हारे पतिदेव जीवित हैं। इदं विमानं वैदेहि पुष्पकं नाम नामत:। दिव्यं त्वां धारयेन्नेदं यद्येतौ गतजीवितो।। वाल्मीकिरामायण युद्धकाण्ड सर्ग ४८-२५ विदेहनन्दिनी! यह पुष्पक नामक विमान दिव्य है। यदि इन दोनों (राम-लक्ष्मण) के प्राण चले गए होते तो (वैधैव्यावस्था में) तुम्हें धारण न करता। इसके अतिरिक्त जब सेना का प्रधान वीर मारा जाता है, तब उसककी सेना उत्साह और उद्योग से हीन होकर युद्ध स्थल में उसी तरह मारी-मारी फिरती है जैसे कर्णधार के नष्ट हो जाने पर नौका जल में बहती रहती है परन्तु तपस्विनी! इस सेना में किसी भी प्रकार की घबराहट या उद्वेग नहीं है। यह इन दोनों राजकुमारों की रक्षा कर रही है। इस प्रकार मैंने तुम्हें प्रेमपूर्वक यह बतााय है कि ये दोनों भाई जीवित हैं। पुष्पक विमान का वर्णन युद्धकाण्ड के अन्त में सर्ग १२१ में विस्तारपूर्वक अनेक विशेषताओं सहित किया गया है। श्रीराम ने रावण वध उपरान्त विभीषण से कहा कि अब तो तुम इस बात की ओर ध्यान दो कि हम किस तरह शीघ्र से शीघ्र अयोध्यापुरी को लौट सकेंगे क्योंकि वहाँ तक पैदल यात्रा करने वाले के लिए यह मार्ग बहुत ही दुर्गम है। विभीषण ने श्रीराम से कहा कि राजकुमार! आप इसके लिए चिन्तित न हो। मैं एक ही दिन में आपको उस पुरी में पहुँचा दूँगा। आपका कल्याण हो। मेरे यहाँ मेरे बड़े भाई कुबेर का सूर्य तुल्य तेजस्वी पुष्पक विमान है, जिसे रावण ने संग्राम में कुबेर को पराजित कर छीन लिया था। वह इच्छानुसार चलने वाला दिव्य एवं उत्तम विमान मैंने यहाँ आपके लिए ही रख छोड़ा है। श्रीरामजी के कहने पर विभीषण ने बड़ी उतावली के साथ उस सूर्य तुल्य तेजस्वी विमान का आह्वान किया। पुष्पक विमान मन के वेग के समान था और उसकी गति कहीं रूकती नहीं थी। वह विमान तुरन्त ही सेवा में उपस्थित हो गया। विभीषण ने इस बात की सूचना श्रीराम को दी। तब श्रीराम ने विभीषण से कहा- विभीषण! इन सारे वानरों ने युद्ध में बड़ा यत्न एवं परिश्रम किया है अत: तुम नाना प्रकार के रत्न और धन आदि द्वारा इन सबका सत्कार करो। श्रीराम ने देखा कि सबकी आँखें पुष्पक विमान एवं श्रीराम पर लगी है तथा सभी उनके साथ अयोध्या चलने का आग्रह कर रहे हैं अत: श्रीराम की आज्ञा से सभी वानरों सहित सुग्रीव और मंत्रियों सहित विभीषण बड़ी प्रसन्नता के साथ उस दिव्य विमान पर चढ़ गए। उन सबके चढ़ जाने पर कुबेर का वह उत्तम पुष्पक विमान श्रीरघुनाथजी की आज्ञा पाकर आकाश में महान शब्द करता हुआ उड़ गया। वे सब वानर, भालू और महाबली राक्षस उस दिव्य विमान में बड़े सुखपूर्वक फैलकर बैठे हुए तथा किसी की किसी से धक्का नहीं खाना पड़ा। इस दिव्य पुष्पक विमान की ढेर सारी तकनीकी विशेषताओं को देखकर हमें हमारी संस्कृति और उस समय के विज्ञान की चरम उन्नति देखकर सम्मान करना चाहिए। ईएमएस/09/11/2025