लेख
11-Nov-2025
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अलीगढ़ जैसे संवेदनशील और शिक्षा के केंद्र माने जाने वाले शहर में हाल ही में जो खुलासा हुआ है कि रोहिंग्या घुसपैठियों ने जाली दस्तावेजों के जरिए आधार कार्ड, पैन कार्ड, और यहां तक कि भारतीय पहचान दस्तावेज हासिल कर लिए है।वह केवल एक स्थानीय घटना नहीं है। यह पूरे देश की आंतरिक सुरक्षा, जनसंख्या संतुलन, और सामाजिक ताने-बाने के लिए गंभीर चेतावनी है। यह मामला यह दिखाता है कि प्रशासनिक तंत्र, स्थानीय एजेंसियां और आधार सत्यापन व्यवस्था में कितनी बड़ी चूक हुई है। इस घुसपैठ ने केवल पहचान के स्तर पर नहीं, बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और जनसंख्यिकीय दृष्टि से भी देश की सुरक्षा को प्रभावित किया है। सवाल यह है कि जब भारत के नागरिकों को कभी-कभी छोटे-से दस्तावेज के लिए महीनों चक्कर काटने पड़ते हैं, तो एक विदेशी, अवैध रूप से देश में घुसा व्यक्ति कैसे इतनी आसानी से वैध पहचान का पात्र बन जाता है?हमारी जांच एजेंसियां सतर्क है।इसके बाद रोजाना 50 आधार कार्ड बनाने का टारगेट कही न कही जनसंखिकी बढ़ाने का घिनोना कृत्य उजागर हुआ है।यह बहुत बडी कामयाबी है। अलीगढ़ के मामले में प्रशासनिक लापरवाही का एक उदाहरण है। अलीगढ़ में हाल में कई रोहिंग्या नागरिकों के पास से भारतीय आधार कार्ड, राशन कार्ड, मोबाइल सिम और बैंक खाते मिलने की खबर ने सभी को चौंका दिया। जांच में पाया गया कि ये दस्तावेज स्थानीय एजेंटों और भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से बने थे। इन विदेशी नागरिकों ने म्यांमार या बांग्लादेश से घुसपैठ कर पहले दिल्ली और फिर उत्तर प्रदेश के शहरों में डेरा डाल लिया। धीरे-धीरे उन्होंने स्थानीय मुस्लिम बस्तियों में घुलमिलकर जाली दस्तावेज बनवाए, ताकि वे भारत के स्थायी नागरिक के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर सकें।यह न केवल प्रशासन की नाकामी है बल्कि आधार प्रणाली की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठाता है। आधार का उद्देश्य था हर नागरिक की डिजिटल पहचान, लेकिन जब यह पहचान घुसपैठियों के हाथों में हथियार बन जाए, तब यह व्यवस्था स्वयं खतरे में पड़ जाती है।राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर रोहिंग्या शरणार्थी केवल शरणार्थी नहीं है उनमें से कई के बारे में आतंकी संगठनों और कट्टरपंथी नेटवर्क से जुड़ाव की सूचनाएं पहले से कई राज्यों की खुफिया रिपोर्टों में आ चुकी हैं। ऐसे में यदि इन लोगों के पास वैध भारतीय पहचानपत्र हैं, तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए विस्फोटक स्थिति है। आतंकवादी संगठन अवैध फंडिंग और हवाला नेटवर्क को मजबूती दे सकते हैं।नकली मतदाता बनाकर राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित किया जा सकता है।घुसपैठ कर रहे अन्य तत्वों को सुरक्षित आवास और पहचान मिल सकती है। अलीगढ़ का यह मामला सीमांचल क्षेत्र कटिहार, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया) से भी जुड़ता है, जहाँ पहले से ही रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है।मोदी ने एक सभा मे कहा था कि घुसपैठियों को खदेड़ा जाएगा।घुसपैठ एक रास्ट्रीय समस्या है और भारतीय नागरिकों का हक मारने का काम करते है।जो राज्य और केन्द्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में सेंघ मारी जा रही है।आधार के लिए पोस्ट ऑफिस के कर्मचारियों को जवाबदेही सौंपीं गई है।उससे किसी प्रकार की धोखाधड़ी नही हो सके।लेकिन अलीगढ़ की घटना घृणित है।बिहार का सीमांचल क्षेत्र भारत-बांग्लादेश सीमा के समीप है और घुसपैठ का सबसे आसान रास्ता माना जाता है। इस इलाके में किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया जैसे जिले पहले से ही अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के बसेरों के रूप में पहचाने जाते हैं।पिछले कुछ वर्षों में यहां की जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक रही है, और इसका कारण केवल प्राकृतिक वृद्धि नहीं, बल्कि घुसपैठ और स्थायी बसावट की प्रवृत्ति है। स्थानीय राजनीति में संरक्षण मिलता है।राशन और पहचान पत्र आसानी से जारी हो जाते हैं, और धीरे-धीरे वे स्थानीय नागरिकों की नौकरियां, जमीनें और संसाधन हड़पने लगते हैं। यदि इस प्रक्रिया को रोका न गया, तो आने वाले दशक में यह जनसांख्यिकीय परिवर्तन भारत की सीमाओं और आंतरिक नीति दोनों को अस्थिर कर सकता है। जनसंख्या असंतुलन सीमावर्ती और कुछ शहरी क्षेत्रों में घुसपैठियों की संख्या बढ़ने से स्थानीय जातीय और धार्मिक संतुलन बिगड़ रहा है। इससे सामाजिक तनाव और वोट बैंक की राजनीति को बल मिलता है। राष्ट्रीय संसाधनों पर बोझ है। ये अवैध नागरिक सरकारी राशन, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार योजनाओं का लाभ उठाते हैं, जिससे असली नागरिकों का हिस्सा कम होता है। आर्थिक अपराधों में वृद्धि हो रही है।जाली आधार और बैंक खातों के जरिये मनी लॉन्ड्रिंग, हवाला और आतंक फंडिंग जैसे अपराध पनप रहे हैं। कुछ क्षेत्रों में ये अवैध वोटर बन चुके हैं, जिससे लोकतांत्रिक ढांचा विकृत हो रहा है। स्थानीय लोगों में असंतोष, सांप्रदायिक तनाव और अपराध दर में वृद्धि जैसी स्थितियाँ देखी जा रही हैं। राष्ट्रीय स्तर पर ठोस नीति जरूरी है।डिजिटल सत्यापन को मजबूत करना होगा।आधार बनवाने के लिए केवल दस्तावेज नहीं, बल्कि बायोमेट्रिक और नागरिकता सत्यापन को दोहरी प्रक्रिया से जोड़ा जाए। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को केवल असम तक सीमित न रखकर संवेदनशील राज्यों और सीमांचल क्षेत्र तक लागू किया जाए। सीमा सुरक्षा को तकनीकी रूप से मजबूत बनाएं जाए। बांग्लादेश सीमा पर ड्रोन, सैटेलाइट निगरानी और स्मार्ट फेंसिंग सिस्टम लगाया जाए। अवैध नागरिकों की पहचान व निष्कासन की आवश्यकता है। जो लोग आधार या अन्य दस्तावेजों के जरिए अवैध रूप से नागरिक बन गए हैं, उनका डेटा-आधारित पता लगाकर निर्वासन (deportation) किया जाए। स्थानीय अधिकारियों की जवाबदेही तय हो और गलती करने पर सजा का प्रावधान होना चाहिए।अलीगढ़ जैसे मामलों में संबंधित अधिकारियों और एजेंटों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाए।नागरिक जागरूकता अभियान चलाया जाना जरूरी है।जनता को यह समझाना जरूरी है कि किसी विदेशी को किराए पर घर देना या उसके दस्तावेज बनवाना देशद्रोह जैसा अपराध है।आधार प्रणाली में राष्ट्रीयता टैगिंग की सुविधा जरूरी। UIDAI को आधार कार्ड पर नागरिकता की स्थिति दर्शाने का विकल्प देना चाहिए।जैसे Citizen” या Residen, ताकि विदेशी पहचानें अलग हों। सीमांचल में जांच और निगरानी के लिए विशेष अभियान चलाया जाए।सीमांचल नागरिक सत्यापन मिशन” शुरू किया जाए, जिसमें हर जिले में मतदाता सूची राशन कार्ड, स्कूल प्रवेश रिकॉर्ड, और आधार डेटा का मिलान कराया जाए। जिला स्तर पर संयुक्त टास्क फोर्स (SP, DM, BSF, UIDAI अधिकारी) बनाई जाए, जो हर संदेहास्पद परिवार की जांच करे। यदि किसी इलाके में असामान्य रूप से अधिक आधार या मोबाइल सिम सक्रिय हुए हैं, तो स्वचालित अलर्ट सिस्टम लगे। NGO और धार्मिक संस्थाओं की फंडिंग पर नजर जरूरी है।विदेशी फंडिंग के जरिये घुसपैठियों के हौसले बुलंद है। सीमांचल में कई संगठनसक्रिय है। “शरणार्थी सहायता” के नाम पर घुसपैठ को वैधता देने का काम कर रहे हैं; इन पर FCRA और ED जांच की जरूरत है। ग्राम स्तर पर “जनसंख्या निगरानी समिति” बनाई जाए जो नए आने वाले परिवारों की सूचना स्थानीय प्रशासन को दे। राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय नीति की आवश्यकताहै और राज्य के सभी दलों को सहयोग करना चाहिए।घुसपैठ का मुद्दा केवल किसी धर्म, जाति या दल का नहीं है।यह राष्ट्र की सुरक्षा और अस्तित्व का विषय है। दुर्भाग्य से अब तक इस पर राजनीतिक मतभेदों ने कार्रवाई को कमजोर किया है। सभी दलों को यह समझना होगा कि रोहिंग्या या अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की बसावट केवल स्थानीय समस्या नहीं, बल्कि यह भविष्य में भारत के आंतरिक संघर्षों की नींव रख सकती है। यदि देश को एक सुरक्षित भविष्य चाहिए, तो राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, नागरिकता सत्यापन कानून, और डेटा सुरक्षा कानून को एकीकृत रूप से लागू करना होगा। अलीगढ़ में रोहिंग्या घुसपैठियों के आधार कार्ड बनने की घटना केवल एक प्रशासनिक गलती नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय चेतावनी का संकेत है। यदि अब भी सरकारें, एजेंसियां और नागरिक समाज सतर्क नहीं हुए, तो आने वाले वर्षों में भारत अवैध जनसंख्या दबाव, आर्थिक असमानता और सुरक्षा संकट से जूझेगा।समय आ गया है कि हम यह तय करें कि मानवता के नाम पर देश की सुरक्षा को दांव पर नहीं लगाया जा सकता। शरण देना और शत्रु को पहचानना और दोनों में फर्क समझना ही आज भारत की सबसे बड़ी आवश्यकता है।इसलिए जरूरी है किअलीगढ़ जैसे मामलों की व्यापक जांच,सीमांचल क्षेत्रों में सघन सत्यापन,और आधार प्रणाली की पुन: समीक्षा। यही भारत की आंतरिक सुरक्षा और पहचान की रक्षा का एकमात्र रास्ता है। लापरवाही नही होनी चाहिए। (रिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार स्तम्भकार) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 11 नवम्बर/2025