लेख
15-Nov-2025
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भारत की राजनीति में कौन सी स्थिति कब पैदा हो जाए, कोई यकीनी तौर पर कह नहीं सकता। कभी सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस के विरोध में राजनीतिक दल एकत्रित होते थे, अब यह दृश्य पूरी तरह से विपरीत होता जा रहा है। अब भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए राजनीति की जा रही है। इतना ही नहीं इसके लिए लोकतांत्रिक देश में आरोप और प्रत्यारोप का अभियान सा भी चलता दिखाई दे रहा है। आज की राजनीति के लिए सबसे गंभीर बात यह है कि यह सारे आरोप केवल और केवल प्रायोजित जैसे ही लगते हैं। अभी हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए चलाए जा रहे प्रचार अभियान के अंतर्गत विपक्षी राजनीतिक दलों ने केन्द्र की भाजपा सरकार पर वोट चोरी का गंभीर आरोप लगाकर चुनावी दृश्य को अपने रंग में रंगने का प्रयास किया। इस बारे में सबसे गंभीर तथ्य यह भी है कि जो इस दुनिया से चले जाते हैं, उनके वोट हर वर्ष कटते ही हैं और जो युवा अपनी 18 वर्ष की उम्र पूर्ण कर लेते हैं, उनके नाम भी जुड़ते हैं। वैधानिक स्थिति में दो स्थानों पर नाम होना एक बड़ा अपराध होता है। यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने और हटाने का काम विधिवत तरीके से चुनाव आयोग ही करता है, लेकिन राजनीतिक दल इसके लिए सीधे तौर पर भाजपा को जिम्मेदार बताने का प्रयास किया जा रहा है। यह आरोप लगाना ही यह प्रमाणित करता है कि वोट चोरी का मामला पूरी तरह से राजनीतिक है, लोकतांत्रिक नहीं। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत किए जा रहे कार्यों पर सवाल खड़े करना लोकतंत्र को कमजोर करने जैसा ही है। बिहार में जो आरोप लगाए गए, उनको प्रमाणित करने का सामर्थ्य अगर किसी के पास है तो उन प्रमाणों के साथ ही आरोप लगाना चाहिए। अगर प्रमाण नहीं है तो उन आरोपों को तथ्यहीन ही माना जाएगा। वोट चोरी का आरोप भी तथ्यहीन ही माना जा रहा है। क्योंकि चुनाव आयोग की ओर से एसआईआर के अंतर्गत की जा रही कार्यवाही में केवल उन्हीं लोगों के नाम हटाए हैं, जिनके हटाए जाना चाहिए। चुनाव आयोग ने जब इन आरोपों को सबूत के साथ लिखित में देने को कहा तो कोई भी सामने नहीं आया। आज विपक्ष की राजनीति लगभग ऐसी ही होती रही है। आरोप लगाने मात्र से कोई अपराधी नहीं बन जाता, उसके लिए समय पर प्रमाण भी देना होता है। ऐसा ही एक निराधार मामला हरियाणा के चुनाव से जुड़ा हुआ है। जिसमें कांग्रेस की ओर से दावा किया जा रहा है कि हरियाणा विधानसभा के चुनाव में ब्राजील की एक मॉडल ने 22 बार वोट डाला है। इसके विपरीत मॉडल लारिसा नेरी का कहना है कि वे भारत कभी गई ही नहीं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब वे भारत आई ही नहीं, तब कांग्रेस का यह आरोप केवल एक नैरेटिव स्थापित करने जैसा ही माना जा सकता है। राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं पर इस प्रकार का असत्य आरोप लगाना निश्चित ही लोकतंत्र के लिए घातक ही है। बिहार चुनाव के लिए इस प्रकार के आरोपों में कितना दम है, यह तो जांच करने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन सवाल यह है कि क्या राजनीति में इस प्रकार के आरोप लगाना उचित है। यकीनन इसका उत्तर नहीं ही होगा। कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल द्वारा ऐसे आरोप लगाने के यही निहितार्थ निकाले जा सकते हैं कि उनको किसी भी प्रकार से बिहार में अपनी सरकार बनाना है। आज बिहार के प्रमुख राजनीतिक दलों के पास ऐसा कोई मुद्दा नहीं है, जिसके सहारे जनता को प्रभावित किया जा सके। इसलिए सभी राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप लगाने की राजनीति कर रहे हैं। बिहार के राजनीतिक परिदृश्य की बात की जाए तो वहां भाजपा, कांगे्रस, राजद और जदयू के आसपास ही सत्ता के ताले की चाबी घूमती रहती है। अब भाजपा, जदयू, कांगे्रस, राजद के नेता अपनी पीठ पर तरकश बांधकर तैयार खड़े हैं। किसके तीरों से किसका संधान होगा, यह भविष्य के गर्भ में है। जहां एक ओर राजद की ओर से नीतीश कुमार को राजनीति के लिए अनफिट बताने का प्रयास किया जा रहा है, वहीं जदयू और भाजपा की ओर से राहुल और तेजस्वी को अपरिपक्व बताने का भी खेल हो रहा है। लेकिन इस बार सबसे ज्यादा ध्यान इस बात पर भी रहेगा कि प्रशांत कुमार की पार्टी कितना प्रभाव दिखाती है। अगर इनका खासा प्रभाव हुआ तो इसकी गति किसको ओवरटेक करेगी, यह देखने वाली बात होगी। देश के कुछ राजनीतिक विश्लेषक बिहार की राजनीति में लगाए जा रहे आरोपों पर यही कहते दिखाई दे रहे हैं कि इन आरोपों के चलते यह दल अपने बचाव करने की स्थिति बना रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस चुनाव में भी भाजपा और जदयू के नेतृत्व वाले गठबंधन को बहुमत मिलेगा। इस प्रकार का राजनीतिक दृश्य बनता है तो कांग्रेस और राजद इन्हीं मुद्दों को एक नए राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग कर सकता है। सबसे बड़ी बात यह भी है कि अगर बिहार का मतदाता कांगे्रस और राजद को पसंद करता है तो चुनाव आयोग की कोई भी गलती दिखाई नहीं देगी। आरोप केवल तब ही लगाए जाते हैं, जब कोई दल चुनाव हारता है। चूंकि हारने के लिए कोई बहाना भी तलाश करना होता है। इसलिए विपक्ष के पास वोट चोरी का मामला एक बहाने का ही काम करेगा। जहाँ तक बिहार की राजनीति की बात है तो यह सब जानते हैं कि यहां जातिवाद के सहारे ही सरकार बनाई जाती रही हैं। इस बार भी इसी को आधार मानकर विपक्ष राजनीति कर रहा है, वहीं भाजपा और जदयू विकास के नाम पर वोट मांग रही है। विपक्ष के सामने सबसे कठिन बात यही है कि जब प्रदेश में उनकी सरकार रही, तब के बिहार और वर्तमान बिहार की स्थिति में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। मतदाता इन दोनों स्थितियों का भी अध्ययन किया ही होगा। अब बिहार को आरोप नहीं, प्रमाण के साथ राजनीति करने की नीति पर आगे आना चाहिए। इसी से बिहार में लोकतंत्र स्थापित होगा और यही बिहार के हित में होगा। (वरिष्ठ पत्रकार) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 15 नवम्बर/2025