पटना,(ईएमएस)। बिहार विधानसभा चुनाव के आए नतीजों में एनडीए को बंपर जीत मिली है। 202 सीटें जीतने के बाद पूरा एनडीए कुनबा गदगद है। इस सफलता के पीछे जानकार ये मानकर चल रहे हैं कि महिलाओं की बंपर वोटिंग, जातिगत समीकरण और सीट बंटवारे में सूझबूझ ही एनडीए की जीत का प्रमुख कारण बनी। एनडीए की जीत में चुनाव से पहले सावधानीपूर्वक तैयार सीट बंटवारे के फॉर्मूले का बड़ा योगदान माना जा रहा है। इस गठबंधन में भाजपा, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), हम और आरएलएम शामिल थे। भाजपा और जदयू ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा, जो समानता का प्रतीक बना। एलजेपी (रामविलास) ने 29 सीटें लीं। हम ने 15 की मांग के बावजूद 6 पर संतुष्टि जताई। ऐसी सीटों पर जोर दिया गया जहां दलों की मजबूत उपस्थिति थी, जिससे वोट बंटवारा कम हुआ। जीतन राम मांझी ने पीएम मोदी के प्रति समर्थन जताया, जिससे जातिगत और क्षेत्रीय रेखाओं पर एकता सुनिश्चित हुई। इस फॉर्मूले ने पिछले विवादों से बचाया, संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव हुआ और वोट शेयर को सीटों में तब्दील किया जा सका। एनडीए की इस जीत में जातिगत गठबंधनों के विस्तार का योगदान नजर आता है। एमवाय (यादव-मुस्लिम) को आरजेडी का पक्षधर माना गया। मगर एमई फैक्टर ने महिलाओं और ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग) पर जोर दिया, जिससे एनडीए का वोट शेयर महागठबंधन के 38प्रतिशत के मुकाबले लगभग 49प्रतिशत हो गया। भाजपा ने ऊपरी जातियों को एकजुट किया। जेडीयू ने कुर्मी और ईबीसी को सुरक्षित किया। एलजेपी (रामविलास), राष्ट्रीय लोक मोर्चा और हम(एस) ने दलित व पिछड़े जातियों की अपील बढ़ाई। इसने आरजेडी के ब्लॉक को कमजोर कर दिया। एनडीए के पास अधिक एकजुटता नजर आई। इसी तरह बिहार चुनाव में महिलाएं निर्णायक रहीं, जिनका मतदान प्रतिशत सुपौल, किशनगंज और मधुबनी जैसे जिलों में पुरुषों से 10-20 प्रतिशत अधिक था। चुनाव आयोग ने महिलाओं को मतदान में मार्गदर्शन करने के लिए 1.8 लाख से अधिक जीविका दीदियों को स्वयंसेवक के रूप में तैनात किया। एनडीए की स्वयं-सहायता समूहों, आजीविका और सुरक्षा के लिए कल्याण योजनाओं ने महिलाओं को आकर्षित किया। 14 लाख से अधिक नए युवा मतदाताओं में से कई महिलाएं थीं, जिन्होंने एनडीए के आधार का विस्तार किया और जीत के लिए निर्णायक अंतर बनाया। एनडीए ने लालू-रबड़ी के शासनकाल को (1990-2005) को जंगलराज बताया। एक तरह से भय दिखाया गया। उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के काफिले पर हमले जैसी घटनाओं को विपक्षी आरजेडी से जुड़े गुंडों हरकत करार दिया गया। भाजपा और जदयू की सरकार को सुशासन के तौर पर पेश किया गया। नेताओं की बयानबाजी ने उन लोगों को आकर्षित किया जो अस्थिरता से डरते थे। इसे मोदी और नीतीश के विकास वाले वादों के साथ मिलाया गया, जिससे एनडीए ने गुंडाराज के खिलाफ रक्षक के रूप में अपनी छवि बनाई। नीतीश कुमार के प्रति अपील और जेडीयू का मजबूत उभार देखने को मिला। उम्र और शासन संबंधी चिंताओं के बावजूद उन्हें अच्छे शासन का पर्याय माना गया। नीतीश के लिए बिहार का मतलब नीतीश कुमार और टाइगर अभी जिंदा है जैसे नारे काफी असरदार रहे। भाजपा के साथ समान सीट बंटवारे ने जेडीयू के आत्मविश्वास को दर्शाया, जो भाजपा आलाकमान के रहते हुए हुआ। नीतीश कुमार की कल्याणकारी योजनाओं और जाति-संतुलन ने विश्वास को मजबूत किया। इस तरह बिहार के मतदाताओं के एक बड़े वर्ग का सीएम नीतीश और पीएम मोदी को साथ मिला। वीरेंद्र/ईएमएस/15नवंबर2025