वॉशिंगटन,(ईएमएस)। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान जल्द ही अमेरिका की यात्रा पर पहुंचने वाले हैं। इस दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ उनकी मुलाकात में एफ-35 फाइटर जेट्स की बिक्री से जुड़ी एक बड़ी डील पर हस्ताक्षर हो सकते हैं। हालांकि, इस सौदे से पहले ही अमेरिकी रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) गहरी चिंता में डूबा हुआ है। पेंटागन की खुफिया एजेंसी की एक गोपनीय रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि यह डील पूरी हुई, तो चीन इन उन्नत लड़ाकू विमानों की संवेदनशील तकनीक तक पहुंच प्राप्त कर सकता है। यह आशंका उन विशेषज्ञ अधिकारियों द्वारा जताई गई है, जिन्होंने डील का गहन विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब और चीन के बीच बढ़ते सुरक्षा संबंध भविष्य में तकनीकी लीक का गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सबसे बड़ा जोखिम चीन से है। अमेरिकी अधिकारी आशंकित हैं कि सऊदी अरब और चीन के बीच बढ़ता रक्षा सहयोग एफ-35 की अत्याधुनिक तकनीक—जैसे स्टेल्थ फीचर्स, सेंसर और एवियोनिक्स—को लीक होने का रास्ता खोल सकता है। चीन पहले से ही समान तकनीक विकसित करने में लगा हुआ है, और किसी भी तरह की पहुंच उसे अमेरिकी वायुसेना की श्रेष्ठता को चुनौती देने में मदद कर सकती है। यह चिंता केवल अनुमान नहीं, बल्कि ठोस अध्ययनों पर आधारित है। सऊदी अरब अमेरिका से हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है, लेकिन उसके चीन के साथ बढ़ते संबंध—जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास और निवेश—अमेरिका को सतर्क कर रहे हैं। सऊदी अरब अमेरिका से सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम की मंजूरी भी मांग रहा है, जिस पर चिंता है कि यह परमाणु हथियार विकसित करने की दिशा में कदम हो सकता है। ट्रंप और पूर्व राष्ट्रपति बाइडन दोनों प्रशासन सऊदी को इजरायल के साथ संबंध सामान्य करने के लिए प्रयासरत रहे हैं, लेकिन गाजा संघर्ष और क्षेत्रीय नीतियों के कारण यह प्रक्रिया रुकी हुई है। सफलता की संभावना कम है, जो डील को और जटिल बनाती है।साल 2020 में ट्रंप प्रशासन ने अब्राहम समझौते के तहत संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को एफ-35 बेचने की सहमति दी थी। चीन से तकनीक लीक के डर से बाइडन प्रशासन ने सौदे की समीक्षा की और अंततः इसे रद्द कर दिया। यह उदाहरण पेंटागन की वर्तमान आशंकाओं को मजबूत करता है। सऊदी डील भी इसी जोखिम का शिकार हो सकती है, भले ही ट्रंप प्रशासन उत्साहित हो।कुल मिलाकर, यह दौरा मध्य पूर्व में अमेरिकी प्रभाव को मजबूत करने का अवसर है, लेकिन तकनीकी सुरक्षा और भू-राजनीतिक जोखिम इसे विवादास्पद बनाते हैं। यदि डील हुई, तो यह ट्रंप की विदेश नीति की बड़ी जीत होगी, लेकिन पेंटागन की चेतावनी अनदेखी नहीं की जा सकती। 48 एफ-35 फाइटर जेट्स की आपूर्ति की जाएगी ट्रंप प्रशासन और सऊदी अरब पिछले कई महीनों से इस सौदे को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं। प्रस्तावित डील के तहत सऊदी अरब को 48 एफ-35 फाइटर जेट्स की आपूर्ति की जाएगी, जिसकी कीमत कई अरब डॉलर आंकी गई है। यह सौदा न केवल सैन्य सहयोग को मजबूत करेगा, बल्कि सऊदी अरब को अमेरिका का सबसे बड़ा हथियार खरीदार बनाए रखेगा। रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ इस डील को मंजूरी देने की प्रक्रिया में थे, जिसके बाद विभिन्न सरकारी विभागों की संयुक्त समीक्षा होनी थी। मंगलवार को व्हाइट हाउस में क्राउन प्रिंस और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच होने वाली बैठक में एफ-35 डील और व्यापक रक्षा समझौता प्रमुख एजेंडा होंगे। सऊदी रक्षा मंत्री खालिद बिन सलमान ने हाल ही में अमेरिकी अधिकारियों—रक्षा मंत्री हेगसेथ, विदेश मंत्री मार्को रुबियो और मध्य पूर्व दूत स्टीव विटकॉफ—से मुलाकात की। उन्होंने बताया कि चर्चा में दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने पर जोर दिया गया। पेंटागन ने अपनी रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है, जबकि सऊदी दूतावास भी चुप्पी साधे हुए है। वीरेंद्र/ईएमएस/15नवंबर2025 -----------------------------------