मुख्यमंत्री न बन पाने का टीस दिल में आज भी भोपाल (ईएमएस)। केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रदेश का मुख्यमंत्री न बन पाने की टीस आखिरकार रविवार को जुंबा पर आ ही गई। जब उन्होंनें किरार समाज के स मेलन में डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने की बात कही ओर कहा कि ‘2023 के विधानसभा चुनाव के बाद की परिस्थितियां जीवन की बड़ी परीक्षा थी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस निर्णय के बाद उनके माथे पर बल नहीं पड़ा। अब सवाल यह उठता है कि आखिरकार शिवराज ने यह बात करीब दो वर्ष बाद क्यों कही क्या वह केन्द्र की राजनीति में अपने को सहज महसूस कर रहे या फिर बीस वर्ष तक प्रदेश का मुख्यमंत्री रहने के बाद इस पद से मोह हो गया था। पार्टी ने जो निर्णय लिया वह अन्य नेताओं को आगे बडाने के लिए था। लेकिन इस निर्णय से शिवराज को इतना बड़ा झटका लगी कि समाज के कार्यक्रम में उनके मुंह से यह बात निकली इससे साफ ज़ाहिर होता हेै कि उनके मन में यह टीस रही कि वह मु यमंत्री नही बन सके। उन्होंने अपने भाषण के दौरान इस बात का उल्लेख भी किया कि बंपर बहुमत मिला था। सबको लगा था कि अब सब कुछ स्वाभाविक है इससे साफ होता है कि शिवराज भी स्वयं मुख्यमंत्री का पद मिलने को लेकर आश्वस्त थे लेकिन घोषणा किसी ओर के नाम की हो गई। शिवराज ने अपने भाषण में यह भी बताने का प्रयास किया कि उन्होंने कितनी मेहनत की थी और जनता ने किस के नाम पर वोट दिया। उन्होंने कहा कि अलग-अलग रिएक्शन हो सकते थे। गुस्सा भी आ सकता था कि मैंने इतनी मेहनत की, लोगों ने किसे वोट दिया? लेकिन दिल ने कहा- शिवराज, ये तेरी परीक्षा की घड़ी है। माथे पर शिकन मत आने देना। आज तू कसौटी पर कसा जा रहा है। यही परीक्षा होती है। पूर्व मंत्री सज्जन वर्मा ने कहा - शिवराज का दर्द झलक जाता है... शिवराज के बयान पर कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कहा- शिवराज सिंह ने सच ही कहा है। भाजपा ने उन्हें दूल्हा बनाकर घोड़ी पर बैठाकर पूरे प्रदेश में घुमाया, लेकिन जैसे ही चुनाव परिणाम आए, उन्हें घोड़ी से उतारकर मोहन यादव को बैठा दिया गया। उन्होंने कहा कि ‘सारा पैसा शिवराज ने लगाया, पूरे प्रदेश में घूमे, मेहनत की... लेकिन आज वे कह रहे हैं कि मैंने ही मोहन यादव का नाम प्रस्तावित किया था और मुझे कोई आपत्ति नहीं। जबकि उनके शब्दों में मौके-मौके पर दर्द साफ झलक ही जाता है। जब शिवराज यह बातें कहते हैं, तो लोग समझ जाते हैं कि उनके मन में कितनी पीड़ा है। यह तो उनकी समाज का कार्यक्रम था, इसलिए शायद शिवराज सच बोल गए कि ‘दूल्हा मैं था, लेकिन जब बारात दरवाजे पर पहुंची, तो मुझे उतारकर दूसरे को घोड़ी पर बैठा दिया।