नई दिल्ली (ईएमएस)। वीजा के नाम पर अकड़ दिखाने वाले अमेरिका के भारतीय छात्रों ने होश ठिकाने ला दिए है। यहां पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 17 प्रतिशत घट गई है। इसके वजह से विश्व विद्वयालयों की हालत खराब होने लगी है। बताया जा रहा है कि छात्रों की निरंतर घटती संख्या के कारण कॉलेजों की सीटें खाली होती जा रहीं हैं। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में इस वर्ष बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2024 सेशन में नए अंतरराष्ट्रीय छात्रों का नामांकन 17 प्रतिशत कम हो गया है। यह कमी उस समय सामने आई है जब अमेरिका ने छात्र वीजा और इमिग्रेशन नियमों पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे अधिक गिरावट भारतीय छात्रों के नामांकन में दर्ज की गई है। भारत अभी भी अमेरिकी उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए सबसे बड़ा स्रोत है, लेकिन सख्त वीज़ा नीतियों के चलते अब बड़ी संख्या में छात्र पीछे हट रहे हैं। इससे भारतीय छात्रों की भविष्य की योजनाओं पर बड़ा असर हो सकता है, खासकर स्टीम और रिसर्च आधारित प्रोग्राम्स में। रिपोर्ट इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन (आईआईई) ने 825 अमेरिकी उच्च शिक्षा संस्थानों के आधार पर जारी की है। इंडियन स्टूडेंट्स पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिन संस्थानों में गिरावट दर्ज की गई, उनमें से 96 प्रतिशत ने वीजा आवेदन से जुड़े नियम और जटिलताओं को मुख्य कारण बताया, जबकि 68 प्रतिशत ने यात्रा प्रतिबंधों को जिम्मेदार माना। यह स्पष्ट संकेत है कि छात्रों की पहली चिंता अमेरिका का वीज़ा प्रोसेस बन गया है, जो अब लंबा, अनिश्चित और कई बार निराशाजनक साबित हो रहा है।ट्रम्प प्रशासन ने पिछले साल से अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए कई नीतिगत बदलाव लागू किए हैं, जिनमें सोशल मीडिया अकाउंट की जांच, वीज़ा सीमा तय करने के प्रयास और अतिरिक्त जांच प्रक्रियाएं शामिल हैं। कई छात्रों के वीज़ा नवीनीकरण में देरी हुई है, जबकि कुछ मामलों में वीजा रद्द भी किए गए। कई यूनिवर्सिटीज ने बताया कि छात्र वीज़ा प्रक्रिया की देरी और अस्थायी रोक के कारण छात्र समय पर अमेरिका नहीं पहुंच सके। यही वजह है कि कई छात्रों ने विकल्प के तौर पर कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों का रुख किया है।अमेरिका में इस समय लगभग 12 लाख विदेशी छात्र पढ़ते हैं, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था में करीब 55 अरब डॉलर का योगदान करते हैं। ये छात्र आमतौर पर फुल ट्यूशन फीस देते हैं और अधिकतर वित्तीय सहायता के पात्र नहीं होते। इसलिए विश्वविद्यालयों को भारी आर्थिक झटका लग रहा है, खासकर ऐसे समय में जब घरेलू नामांकन भी घट रहा है और सरकारी फंडिंग में कटौती हो रही है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 29 प्रतिशत संस्थानों ने नए दाखिले में वृद्धि देखी है, जबकि 14प्रतिशत में स्थिति स्थिर रही। लेकिन 57 प्रतिशत संस्थानों में गिरावट दर्ज की गई, यानी कुल तस्वीर अभी भी चिंताजनक है। वीरेंद्र/ईएमएस 19 नवंबर 2025