लेख
20-Nov-2025
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भारत-रूस संबंधों का भविष्य और वैश्विक भू-रणनीति पर प्रभाव भारत और रूस के बीच संबंध इतिहास, भावनाओं और रणनीतिक विश्वास पर आधारित रहे हैं। शीतयुद्ध के दौर से लेकर आज के बहुध्रुवीय विश्व तक, दोनों देशों ने एक-दूसरे को कठिन समय में निरंतर साथ दिया है। वर्ष 2025 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात की तैयारियाँ जारी हैं, उसी बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर की मॉस्को यात्रा ने इन रिश्तों को नई दिशा देने का अवसर प्रदान किया है। भारत-रूस रिश्तों में नई गर्माहट दिख रही है।ऊर्जा, रक्षा, अंतरिक्ष, आर्कटिक सहयोग, कनेक्टिविटी तथा वैश्विक राजनीति में दोनों की साझा समझ इन संबंधों को और मज़बूत बनाती है। इन बदलावों का भारत और रूस के भविष्य के द्विपक्षीय संबंधों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। पुतिन की प्रस्तावित भारत यात्रा का महत्व से बदलेंगे समीकरण और भारत रूस के साथ गाढ़ होंगे राजनयिक और दोनो देशो के बीच सम्बब्ध।व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा कई कारणों से ऐतिहासिक मानी जा रही है।रूस और भारत के बीच सदियों से घनिष्ठ दोस्त है।भारत रूस से अमेरिका के विरोध के बावजूद खरीद रहा है।रूस हर समय भारत को साथ देता आ रहा है। द्विपक्षीय उच्चस्तरीय संवाद की बहाली होगी।पिछले कुछ वर्षों में रूस युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंधों और वैश्विक तनावों से घिरा रहा। ऐसे समय में जब रूस को रणनीतिक साझेदारों की आवश्यकता है, भारत उसकी कूटनीतिक प्राथमिकता बन गया है। पुतिन की यात्रा साफ संकेत देती है कि रूस भारत को एक विश्वसनीय, स्वतंत्र और बहुध्रुवीय शक्ति के रूप में देखता है। रक्षा और टेक्नोलॉजी सहयोग की नई परत खुलेगी।भारत-रूस रक्षा सहयोग दुनिया में प्रसिद्ध है, पर अब यह महज हथियारों की खरीद से आगे बढ़कर संयुक्त उत्पादन, तकनीकी स्थानांतरण और दीर्घकालिक साझेदारी में बदल रहा है। चीन-रूस निकटता और भारत की स्वतंत्र कूटनीति से हालत सुधर रहे है। रूस की चीन के साथ बढ़ती रणनीतिक साझेदारी के बावजूद, वह भारत के साथ अपने संबंधों को एक संतुलक शक्ति के रूप में बनाए रखना चाहता है। भारत भी रूस के साथ मजबूत संबंधों को चीन के विरुद्ध किसी गुट में नहीं बदलना चाहता, बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता का मार्ग अपनाता है।भारत की ऊर्जा सुरक्षा के बेहतर परिणाम है। पुतिन की यात्रा के दौरान ऊर्जा क्षेत्र कच्चा तेल, गैस, LNG, परमाणु ऊर्जा, आर्कटिक परियोजनाएँ और दीर्घकालिक आपूर्ति पर बड़े समझौते होने की संभावना है। रूस भारत का शीर्ष कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है। विदेश मंत्री एस जयशंकर-लावरोव वार्ता से इस सदी की कूटनीति का संकेत मिल रहा है।भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव दुनिया के सबसे अनुभवी राजनयिकों में गिने जाते हैं। उनके बीच हुई वार्ता में निम्न मुद्दों पर गहन चर्चा हुई है। रक्षा और सुरक्षा सहयोग का विस्तार भारत-रूस रक्षा सहयोग का ढांचा तीन प्रमुख स्तंभों पर आधारित है। सैन्य तकनीक और आपूर्ति S-400 की डिलीवरी, फ्रिगेट्स, एयरक्राफ्ट, पनडुब्बियाँ और संयुक्त विकास ब्रह्मोस मिसाइल, सुपरसोनिक सिस्टम, संभावित हाइपरसोनिक भी शामिल है। सहयोग रक्षा निर्माण Make in India के तहत संयुक्त उत्पादन की भी चर्चा है।जयशंकर और लावरोव की मुलाकात में इन सभी परियोजनाओं को नए सिरे से तेजी देने की चर्चा हुई है। भारत अब रूस से केवल हथियार खरीदना नहीं चाहता, बल्कि प्रौद्योगिकी साझेदारी और स्थानीय उत्पादन पर जोर देता है।रूस के लिए भारत एक स्थिर व बड़ा बाज़ार है, इसलिए यह साझेदारी दीर्घकालिक रूप से दोनों के लिए लाभकारी बनती है। ऊर्जा सहयोग भारत की दीर्घकालिक सुरक्षा का एक दीर्ध रूप है।रूस भारत की ऊर्जा रणनीति का मुख्य आधार बन चुका है।भारत के कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 30–35% तक पहुंच चुकी है। रूस भारत को भारी डिस्काउंट पर तेल बेचता है। LNG और पाइपलाइन गैस पर भी दोनों देश नई चर्चा कर रहे हैं। जयशंकर-लावरोव वार्ता में तीन प्रमुख ऊर्जा योजनाओं पर ध्यान दिया गया। आर्कटिक LNG-2 परियोजना में भारत की भागीदारी बढ़ना ,फार ईस्ट (दूर-पूर्व) रूस में निवेश और दीर्घकालिक तेल आपूर्ति समझौते आदि शामिल है। रूस के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा साझेदारी भारत की भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। भू-रणनीतिक मुद्दे पर भी दुनिया की नजर थी।यूक्रेन, चीन और पश्चिम भारत और रूस कई मुद्दों पर एक-दूसरे की स्थिति को समझते हैं।भारत यूक्रेन युद्ध में शांतिपूर्ण समाधान और संवाद की नीति रखता है, रूस इसे स्वीकार करता है।रूस चीन के साथ संबंधों को मजबूरन बढ़ा रहा है, पर भारत को उसका संतुलित महत्व देता है। भारत पश्चिम और रूस दोनों के साथ स्वतंत्र, संतुलित संबंध रखता है।रूस इसे सम्मान देता है।इसलिए जयशंकर-लावरोव वार्ता ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वास-निर्माण को और गहरा किया।चाबहार, आर्कटिक पर नजर रही ।भारत और रूस मिलकर एक विशाल कनेक्टिविटी नेटवर्क बना रहे है। लागत कम, समय कम, भारत को यूरोपीय बाज़ारों से जोड़ता है।भारत की रणनीतिक परियोजना मेंयह भारत-रूस व्यापार के समुद्री मार्गों को मजबूत करेगा।रूस चाहता है कि भारत आर्कटिक में ऊर्जा व टेक्नोलॉजी परियोजनाओं में भूमिका निभाए। भारत भविष्य की ऊर्जा जरूरतों के लिए इसे महत्वपूर्ण मानता है। भारत-रूस के अंतरिक्ष सहयोग का लंबा इतिहास रहा है।भारत के प्रथम अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्माकई उपग्रह परियोजनाएँ गगनयान मिशन में रूस की तकनीकी सहायता की गहन चर्चा है।जयशंकर-लावरोव मुलाकात में निम्न विषयों पर भी चर्चा हुई संयुक्त उपग्रह निर्माण स्पेस साइंस सहयोग ग्लोबल नेविगेशन सिस्टम्स में तकनीकी साझेदारी आदि अग्रिम पंक्ति में शामिल हुई।पुतिन की यात्रा दोनों देशों के भविष्य को कैसे प्रभावित करेगी? पुतिन की भारत यात्रा निम्न क्षेत्रों में निर्णायक बदलाव ला सकती है।जिसमे रक्षा क्षेत्र में नई पीढ़ी की साझेदारी, अगली पीढ़ी की मिसाइल प्रणालियाँ, पनडुब्बी टेक्नोलॉजी, एयर डिफेंस सिस्टम और हाइपरसोनिक प्लेटफॉर्म पर सहयोग बढ़ने की उम्मीद है। भारत रूस से ऐसी तकनीक चाहता है जो दीर्घकालिक सुरक्षा ढांचे को मजबूत करे। ऊर्जा डील हुई है।जिसमे20 वर्षों का दीर्घकालिक समझौता संभव भारत और रूस बीच एक बड़े दीर्घकालिक कच्चा तेल और LNG आपूर्ति समझौते की संभावना है। यह वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव से भारत को सुरक्षा देगा।रुपया-रूबल व्यापार व्यवस्था को और मजबूत किया जाएगा।इससे डॉलर पर निर्भरता घटेगी और दोनों देशों के बीच व्यापार आसानी से बढ़ेगा। *ब्रह्मोस का वैश्विक विस्तार* फिलिपींस के बाद कई अन्य देश ब्रह्मोस में रुचि दिखा रहे हैं। पुतिन की यात्रा में इसे एक द्विपक्षीय रक्षा निर्यात प्लेटफॉर्म बनाने पर चर्चा संभव है। यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक शक्ति संतुलन बढ़ा है।भारत रूस का वह विश्वसनीय मित्र है जिसने प्रतिबंधों के बावजूद रूस से व्यापार बढ़ाया है।ऊर्जा खरीदकर रूस की अर्थव्यवस्था को सहयोग दिया है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संतुलित नीति अपनाई गई। रूस इसका कूटनीतिक मूल्य समझता है।पुतिन की यात्रा इस रणनीतिक भरोसे को नए स्तंभ देगी।हालांकि संबंध मजबूत हैं, पर कुछ चुनौतियाँ भी मौजूद हैं: रूस और चीन के बीच बढ़ती सामरिक साझेदारी भारत के लिए चिंता का विषय है। हालाँकि रूस बार-बार भारत को भरोसा दिलाता है कि यह साझेदारी भारत के विरुद्ध नहीं है। अमेरिका और यूरोपीय देशों की नीतियाँ रूस के वैश्विक व्यापार को प्रभावित करती हैं, जिससे भारत-रूस व्यापार व्यवस्था प्रभावित होती है। रुपया-रूबल और वैकल्पिक भुगतान प्रणाली को स्थिर करना आवश्यक है। रूस की रक्षा उद्योग युद्ध के कारण दबाव में है, जिससे भारत को समय पर डिलीवरी में चुनौतियाँ आई हैं।भारत और रूस के संबंध भविष्य में निम्न क्षेत्रों पर आधारित होंगे। तेल, गैस, आर्कटिक, परमाणु ऊर्जा—इन सभी में दोनों देश गहराई से जुड़ रहे हैं। भारत और रूस मिलकर गुटनिरपेक्ष, स्वतंत्र, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत करते हैं।भविष्य में रूस महज आपूर्तिकर्ता नहीं बल्कि तकनीकी साझेदार के रूप में उभरेगा। चाबहार, आर्कटिक कॉरिडोर और अंतरिक्ष विज्ञान दोनों देशों को लंबे समय के लिए जोड़ेंगे। भारत और रूस के संबंध समय की परीक्षा पर खरे उतरे हैं। पुतिन की भारत यात्रा, जयशंकर-लावरोव की मॉस्को बैठक और दोनों देशों के बीच निरंतर संवाद यह संकेत देते हैं कि भारत-रूस साझेदारी आने वाले दशक में और अधिक रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी रूप से गहरी होने वाली है।भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति, ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा शक्ति और बहुध्रुवीय कूटनीति को मजबूत बनाने के लिए रूस को एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में देखता है।और रूस भी भारत को एशिया और विश्व में एक स्थिर, भरोसेमंद और प्रभावशाली शक्ति मानता है।इस तरह, दोनों देशों के रिश्ते आने वाले समय में और अधिक व्यापक, बहुआयामी और भविष्य-केंद्रित होते दिखाई देते है। ईएमएस/20/11/2025