राज्य में “एक जिला – एक उत्पाद ” पर केन्दित हाल ही में “निर्यात प्रोत्साहन कार्यशाला आयोजित की गई। मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम और इंदौर जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में इंदौर में आयोजित इस कार्यशाला का उद्देश्य स्थानीय उद्यमियों, कारीगरों तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम इकाइयों को वैश्विक व्यापार एवं निर्यात अवसरों से लभान्वित कराना है। कार्यशाला के तकनीक एवं प्रशिक्षण सत्र में विषय विशेषज्ञों ने उद्यमियों को निर्यात से जुड़ी प्रक्रियाओं, वित्तीय सहायता और जोखिम प्रबंधन पर प्रशिक्षण प्रदान किया। एक्सपोर्ट क्रेडिट एवं जोखिम प्रबंधन सहित निर्यातकों को वित्तीय सुरक्षा संबंधित विस्तृत जानकारी दी गई। साथ ही कृषि उत्पाद निर्यात की वैश्विक संभावनाएं साझा कीं गई। इस दौरान बताया कि किस प्रकार इंडिया पोस्ट छोटे कारीगरों और उद्यमियों को अंतरराष्ट्रीय लॉजिस्टिक से जोड़ रहा है। कार्यशाला में निर्यात संभावनाओं को मज़बूत करने के लिए वैल्यू एडिशन, ब्रांडिंग, प्रमाणन और बाज़ार संपर्क के बारे में बताया गया। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता के लिए ग्राम स्वराज पर बल देते हुए स्थानीय उत्पाद एवं अन्य स्वदेशी उत्पादों को खादी के अर्थ से जोड़ा। उनका कहाना था कि “स्वतंत्रता की शुरुआत निचले स्तर से होनी चाहिए तभी प्रत्येक गांव एक गणतंत्र बनेगा। उनका यह सूत्र पंडित दीनदयाल उपाध्याय, और अटल बिहारी वाजपेयी के उद्घोष में परिलक्षित होता है। इसी अवधारणा का चिन्तन कर प्रधानमंत्री ने उसे चुनौती के रूप में स्वीकार कर नई सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था का आगाज किया। 24 जनवरी 2018 को उत्तरप्रदेश से शुरू हुई इस योजना का उद्देश्य जिले के छोटे, मध्यम और परंपरागत उद्योगो का विकास करना है। स्थानीय अर्थव्यवस्था के विकास इंजन के रूप में जिला-विशिष्ट उत्पादों को बढ़ावा देना। कारीगरों, किसानों और उद्यमियों को कौशल विकास और वित्तीय सहायता प्रदान करना तथा उत्पादन, भंडारण और रसद के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करना मजबूत ब्रांडिंग और वैश्विक बाजार संबंध बनाएं रखना है। इसका परिणाम यह हुआ कि साल 2024 में मध्य प्रदेश को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच योजना के उत्कृष्ट कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय ओडीओपी पुरस्कार रजत पदक से सम्मानित हुआ। आज - ओडीओपी के तहत 55 जिले 38 उत्पादों के साथ 10,000 से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षित करने में सफल रहा है। मध्य प्रदेश के ओडीओपी उत्पादों का निर्यात सालाना 15% की दर से बढ़ रहा है। ई-ग्राम स्वराज के तहत ग्रामीणों को न केवल मूलभूत अधिकारों से सशक्त किया बल्कि गांवों की जमीन की ड्रोन मैपिंग कर उन्हें स्वामित्व कवच देकर अनेक विवादों से मुक्त कर दिया है। वहीं गांवों से रोजगार की तलाश में आये ग्रामीणों को एक राष्ट्र एक राशनकार्ड से लाभ सुनिश्चित कर समाज को प्रशासनिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग होने का गौरव प्राप्त हुआ है। शायद यही कारण है कि समाज के प्रति राजनीतिक उत्तरदायित्व के कारण उन्हें सतत सफलता मिली है। ग्रामीण क्षेत्रों में फसल कटाई पश्चात भण्डारण के लिए समुचित रखरखाव के अभाव में अनाज की बर्बादी से एक ओर देश जहां कृषि उपज से वंचित रह जाता है वहीं इसकी पैदावार में प्रयुक्त खाद-बीज, बिजली-पानी पर होने वाले व्यय के साथ किसानों के परिश्रम का एक बड़ा भाग व्यर्थ हो जाता है। अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत 45 प्रमुख खाद्य पदार्थों की बर्बादी पर किये गये शोध के अनुसार प्रतिवर्ष 92 हजार करोड़ रुपये से अधिक के खाद्य उत्पाद बर्बाद हो जाते हैं। इस संदर्भ में खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में रोजगार के सृजन से ग्रामीणों की आय बढ़ाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। देश के खाद्य बाजार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की भागीदारी 32 फीसदी है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के विकास की प्रबल संभावनायें हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 तक इस क्षेत्र में 33 अरब डालर के नये निवेश और 90 लाख नए रोजगार सृजन की संभावना है। खाद्य प्रसंस्करण के तहत देश में पांच क्षेत्र हैं – डेयरी, फल, सब्जी, अनाज ,मांस ,मछली, पोल्ट्री और पैकेटबंद खाद्य और पेय पदार्थ। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से कृषि और विनिर्माण दोनो क्षेत्रों की आयवृद्धि का कारक है, जो असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के रोजगार के अहम भूमिका निभाता है। इसलिए इससे जुड़े उद्योगों को वित्त, तकनीक जैसी मद सुनिश्चत कराने के लिए खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने देश में केन्द्र प्रायोजित प्रधानमंत्री फार्मलाइजेशन आफ माइक्रोफूड प्रोसेसिंग इंटरप्राइज योजना की शुरुआत की है। इस योजना के तहत वर्ष 2024-25 तक दस हजार करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे। इनमें राज्यों की जिम्मेदारी निर्धारित की गई है कि वे कच्चे माल के उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए एक जिला एक खाद्य उत्पाद व मछली, मुर्गीपालन या खिलौनों को शामिल कर उसका नियमन करें। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने 35 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों को ‘एक जिला-एक उत्पाद’ के लिए अनुमोदित किया है। इसके लिए 17 राज्यों में 50 से अधिक इंक्यूबेशन केंद्रों की मंजूरी भी दी गई है। इस प्रकार जिला स्तर पर उत्पादों और पारंपरिक कलाओं को प्रोत्साहित कर नई पहचान से रोजगारोन्मुखी बनाते हुए आत्मनिर्भर के लक्ष्य की प्राप्ति योजना का प्रमुख लक्ष्य है। योजना की पृष्ठभूमि राज्य सरकार द्वारा संबंधित क्षेत्र की कला, शिल्प्, खाद्य और फसल के उत्पादों का आधारभूत अध्ययन पर केन्द्रित होता है। योजना के तहत आने वाले उत्पादों की सामान्य अवसंरचना और विपणन तथा ब्रांडिंग के लिए सहायता दी जाती है योजनांतर्गत संबंधित जिलों को कच्चा माल, डिजाइन ट्रेनिंग और मार्केट उपलब्ध कराये जाने की व्यवस्था है उन्हें अपना घर छोड़ कर के किसी दूसरी जगह पर ना जाना पड़े तथा स्थानीय कारीगरों की नियमित आय सुनिश्चित की जा सके। मध्यप्रदेश में इसे तीन भागों में बांटा गया है। पहला उद्यानिकी विभाग की ओर से जारी जिलेवार उत्पाद, दूसरा कषि विभाग की ओर से चुनिंदा दस जिलों के लिए फसल और तीसरा उद्योग विभाग की ओर से हर जिले के एक उत्पाद को प्रोत्साहित करना। उद्यानिकी विभाग की सूची में अनूपपुर झाबुआ सिंगरौली सागर कटनी शिवपुरी सतना दमोह रायसेन दतिया और अशोकनगर – टमाटर,आगर मालवा - संतरा, अलीराजपुर -सीताफल, बड़वानी अदरक, बैतूल आम,भोपाल- अमरूद, बुरहानपुर -केला, छतरपुर -सुपारी, छिंदवाड़ा देवास- आलू ,धार -सीताफल, गुना -धनिया,ग्वालियर- आलू, हरदा -प्याज, होशंगाबाद- अमरूद, इंदौर -आलू , जबलपुर- हरी मटर, खंडवा- प्याज ,खरगोन- मिर्च, मंदसौर -लहसुन, नीमच- धनिया, निवाड़ी- अदरक, पन्ना -आंवला, राजगढ़ -संतरा, रतलाम –लहसुन, रीवा- हल्दी, सीहोर- अमरूद, सिवनी -सीताफल, शहडोल- हल्दी, शाजापुर- प्याज, श्योपुर -अमरूद, सीधी -आम, टीकमगढ़ -अदरक, उज्जैन- प्याज, उमरिया- आम और विदिशा- प्याज को शामिल किया गया है। इन उत्पादों को रोजगार और अधिकतम हितग्राहियों की आय सुनिश्चित करने को ध्यान में रखकर परिवर्तित भी किया गया है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना में एक वर्ष के भीतर छोटी इकाइयों की स्थापना की दिशा में कई उल्लेखनीय पहल की गई है। इस दिशा में उल्लेखनीय है कि कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण(एपीडा) के अंतर्गत अंगूर, आम,केला, प्याज, चावल, पोशक तत्व वाले अनाज तथा अनार और फूलों की खेती के लिए ईटीएफ का गठन किया गया है। इस दिशा में बांस, हथकरघा, खिलौनों, जड़ी बूटियों, वनस्पतियों जैसे अनेक उत्पादों को शामिल कर मध्यप्रदेश नित नये नवाचार को प्रोत्साहित कर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। ईएमएस / 22 नवम्बर 25