भारत सरकार ने शुक्रवार को लेबर संहिता के चार जो नए कानून तैयार किए हैं, उनको अधिसूचित कर दिया गया और अब ये देशभर में लागू हो गए हैं। इनके अनुसार ही अब कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन की गारंटी दी गई है। ओवरटाइम भी वेतन से दो गुना देना होगा। एक साल काम करने के बाद अब कर्मचारियों को ग्रेच्युटी का लाभ मिल सकेगा। 40 साल की उम्र पूरी कर चुके श्रमिकों के लिए अब मुफ्त हेल्थ चेकअप कराने की जिम्मेदारी नियौक्ताओं पर डाली गई है। सरकार ने दावा किया है, कि 1920 से लेकर 1950 के बीच में देश में 29 श्रम कानून लागू थे, अब उन कानून को समाप्त कर दिया गया है। सोशल सिक्योरिटी कोड, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड, वेजेस कोड और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड के नाम से नए कर कानून बनाए गए हैं। इनके जरिए अब किसी भी क्षेत्र का श्रमिक हो उसे इन कानून का लाभ मिलेगा। श्रमिकों में महिला और पुरुषों के बीच का भेद-भाव समाप्त किया गया है। अब दोनों को समान वेतन मिलेगा। ओवरटाइम करने पर वेतन का दोगुना भुगतान, नियौक्ता को करना अनिवार्य किया गया है। कर्मचारियों को हर माह की 7 तारीख तक अनिवार्य रूप से भुगतान प्राप्त हो, इसका भी प्रावधान नए कानून में किया गया है। श्रमिकों के लिए पीएफ, ग्रेजुएटी और सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान भी किया गया है। नए कानून के अनुसार अब किसी कर्मचारी का वेतन रोका नहीं जा सकेगा। 26 हफ्ते की गर्भवती महिलाओं को मैटरनिटी लीव देना अनिवार्य किया गया है। वर्क फ्रॉम होम की सुविधा को भी अब कानून बनाया गया है। महिला के निर्भर परिवारजनों में अब सास-ससुर को भी शामिल कर दिया गया है। महिला चाहे तो वह अपने सास-ससुर को शामिल करने का विकल्प चुन सकती है। श्रमिकों की सुरक्षा के दायरे को बढ़ाया गया है। अभी तक 10 से कम कर्मचारी वाली इकाई पर श्रम कानून लागू नहीं होते थे, लेकिन अब इन पर भी श्रम कानून लागू होंगे। संस्थाओं को पांच फ़ीसदी राशि सोशल सिक्योरिटी फंड में देने का प्रावधान किया गया है। दुर्घटना रोजगार संबंधी और अन्य मामलों में वेलफेयर बेनिफिट्स लागू किए जाएंगे। यदि कर्मचारी माइग्रेट होता है तो ऐसी स्थिति में भी उसके अधिकार सुरक्षित किए गए हैं। श्रमिकों के लिए कार्यस्थल पर कैंटीन, पानी पीने की व्यवस्था और आराम इत्यादि का भी प्रावधान किया गया है। श्रमिकों के लिए पेड लीव की व्यवस्था भी श्रम कानून में की गई है। श्रम कानून में तीन नई परिभाषाओं को जोड़ा गया है। फिक्स्ड टर्म अपॉइंटमेंट, इसमें कर्मचारियों को एक निश्चित अवधि के लिए रखने की व्यवस्था है। अवधि समाप्त होने के बाद नौकरी खत्म हो जाएगी। श्रमिकों के लिए देश भर में न्यूनतम वेतनमान तय किया गया है। कोई भी राज्य इससे कम वेतन फिक्स नहीं करेगा। आवश्यक होने पर वह वेतनमान को ज्यादा कितना भी कर सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर बनाए गए सेफ्टी और हेल्थ स्टैंडर्ड को सारे देश में एक साथ लागू किया जा रहा है। सरकार ने श्रम कानून में जो परिवर्तन किए हैं उसमें श्रमिकों के लिए जो अच्छे प्रावधान किए हैं उनका प्रचार-प्रसार जोर-जोर से किया जा रहा है, लेकिन पुराने श्रम कानून में जिस तरह के अधिकार श्रमिकों को प्राप्त थे वह अधिकार नए कानून में खत्म कर दिए गए हैं। अब कर्मचारियों को नियोक्ता अपनी सुविधा अनुसार कांटेक्ट के आधार पर रख सकेंगे। नियम तो पहले भी बने हैं, लेकिन नियमों का पालन श्रमिकों के लिए हो नहीं पता है। पिछले 75 वर्षों में श्रमिकों की समस्याओं के लिए बहुत सारी विशेष अदालतें भी काम कर रहीं थीं, लेकिन इनसे बड़े स्तर पर कर्मचारियों को कोई लाभ मिला हो ऐसा देखने में नहीं आता है। श्रम कानूनो का पालन कराने के लिए सरकार ने प्रत्येक राज्य में बड़ी संख्या में अधिकारियों और इंस्पेक्टर्स की नियुक्ति कर रखी है, लेकिन वह सब कर्मचारियों के स्थान पर नियुक्ताओं की ज्यादा फिक्र करते हैं। नियुक्ताओं द्वारा उनकी जेब को भारी कर दिया जाता है जिसके कारण नियम कानून होते हुए भी पिछले 75 वर्षों से भारत के श्रमिक नियोक्ता की मर्जी और भगवान के भरोसे ही काम कर रहे थे। सरकार ने श्रम कानून में जो परिवर्तन किया है वह अंतरराष्ट्रीय दबाव में किया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रम कानून के बन जाने के बाद कर्मचारियों की नियुक्ति और काम के बारे में पारदर्शिता बन गई है, लेकिन लंबे समय तक कर्मचारियों की नौकरी सुरक्षित रहेगी इस बात की अब कोई गारंटी नहीं है। औद्योगिक संस्थानों में या बड़ी कंपनियों में जो कर्मचारी नियुक्त हो जाते थे वह नौकरी जॉइन करने से लेकर सेवानिवृत्ति तक कंपनी में काम करते रहते थे, लेकिन नए कानून में अब वह सुविधा खत्म हो गई है। भारत में भी अब काम की संतुष्टि और एक समय सीमा के लिए कर्मचारियों को नियुक्त किया जाएगा, जैसे ही समय सीमा खत्म हो जाएगी वैसे ही नियोक्ता की जिम्मेदारी भी खत्म हो जाएंगे। भारत जैसे देश में इसमें श्रमिकों का भविष्य असुरक्षित हो जाएगा। अब नियोक्ता पर निर्भर होगा कि वह कर्मचारियों को रखना चाहें, उनकी समय सीमा का नवीनीकरण करें या नहीं, ऐसे में श्रमिकों को अब कितने दिन काम मिलेगा या उनका भविष्य क्या होगा अब यह सुरक्षित नहीं रहेगा। श्रमिकों को लेकर जो नए कानून बने हैं उसमें लाभ कम और नुकसान ज्यादा हैं। सरकार छोटे, मध्यम और बड़े सभी को एक ही कानून से हांकने जा रही है। ऐसी स्थिति में भारत जैसे देश में जहां असंगठित रोजगार बड़ी संख्या में पैदा होता है, उसे संगठित रोजगार के क्षेत्र में नए कानून श्रमिकों के लिए नुकसानदेह साबित होंगे। यह आशंका व्यक्त की जा रही है। वैश्विक व्यापार संधि को लेकर वैश्विक स्तर पर जिस तरह के कानून बनाए जा रहे हैं वह भारत के असंगठित क्षेत्र के रोजगार के लिए बेहतर नहीं माने जा सकते हैं। सरकार ने चार नए श्रम कानून में सब धान 22 पसेरी वाले पैमाने की कोशिश की है। इसके कोई बेहतर परिणाम होंगे कहना मुश्किल है। डिमांड और सप्लाई बाजार में मूल्य निर्धारण करती है। भारत में बेरोजगारों की संख्या करोड़ों में है। रोजगार के अवसर लाखों में भी नहीं हैं। ऐसी स्थिति में इन श्रम कानून का पालन कैसे होगा इसे आसानी से समझा जा सकता है। सरकार जब कोई भी नई चीज लाती है तब उसको बेहतर साबित करने के लिए उसके एक अच्छे पक्ष को तो उजागर करती है, लेकिन दूसरे हानि वाले पक्ष के बारे में चुप्पी साध लेती है। वर्तमान में जो सरकार है वह स्वयं कोई कार्य के लिए जिम्मेदार नहीं होती है। सारी जिम्मेदारी दूसरों पर डालकर कानून बनाकर इतिश्री कर लेती है। जिसके कारण दिनों दिन रोजगार और नौकरी के क्षेत्र में स्थिति खराब होती जा रही है। फिर भी सरकार ने श्रमिकों के लिए जो नए कानून बनाए हैं, आशा की जानी चाहिए कि उससे श्रमिकों का भला होगा। कानून केवल कागजों पर नहीं बने रहेंगे, कानून का असर जमीनी स्तर पर भी दिखेगा। ईएमएस / 22 नवम्बर 25