-भागवत ने मणिपुर में सत्य पर आधारित संगठन को समझने पर दिया बल इम्फाल,(ईएमएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मणिपुर दौरे पर हैं अपने दौरे से पहले दिन शुक्रवार को इम्फाल में गणमान्य व्यक्तियों की एक सभा को संबोधित किया। अपने संबोधन में भागवत ने संघ की सांस्कृतिक भूमिका, राष्ट्रीय ज़िम्मेदारियों और एक शांतिपूर्ण एवं सुदृढ़ मणिपुर के लिए चल रहे प्रयासों पर विचार किया। उन्होंने कहा कि आरएसएस देश भर में चर्चा का विषय बना है, जो अक्सर धारणाओं और दुष्प्रचार से प्रभावित होता है। संघ के कार्यों को अद्वितीय बताते हुए भागवत ने कहा कि आरएसएस की तुलना में कोई संगठन नहीं है, जैसे समुद्र, आकाश और महासागर की कोई तुलना नहीं है। आरएसएस का विकास स्वाभाविक है और इसकी कार्यप्रणाली इसकी स्थापना के 14 सालों के बाद साफ हो गई। इसे समझने के लिए शाखा जाना होगा। आरएसएस का उद्देश्य पूरे हिंदू समाज को संगठित करना है, जिसमें संघ का विरोध करने वाले भी शामिल हैं, न कि समाज के अंदर एक शक्ति केंद्र बनाना। उन्होंने कहा कि आरएसएस के खिलाफ गलत सूचना अभियान 1932-33 की शुरुआत में ही शुरू हो गए थे, जिनमें भारत के बाहर के स्रोत भी शामिल थे, जिन्हें भारत और उसके सभ्यतागत लोकाचार की समझ का अभाव था। भागवत ने धारणा-आधारित आख्यानों के बजाय सत्य पर आधारित संगठन को समझने की जरुरत पर बल दिया। आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार के जीवन को याद करते हुए उन्होंने उनकी शैक्षणिक उत्कृष्टता, जन्मजात देशभक्तिपूर्ण गतिविधियों और तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम की सभी धाराओं में उनकी भागीदारी को रेखांकित किया। संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि हेडगेवार द्वारा एक एकीकृत और गुणात्मक रूप से बेहतर समाज की जरुरत के एहसास ने आरएसएस के निर्माण को जन्म दिया। उन्होंने लोगों से जमीनी स्तर पर इसकी शाखा प्रणाली के जरिए संगठन को समझने का आग्रह करते हुए कहा कि संघ एक मानव-निर्माण पद्धति है। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में हिंदू शब्द एक धार्मिक पहचान के बजाय एक सांस्कृतिक और सभ्यतागत विवरणक है। (हिंदू) संज्ञा नहीं, बल्कि एक विशेषण है। सिराज/ईएमएस 21नवंबर25