लंदन (ईएमएस)। जिन मरीजों में कोविड संक्रमण के बाद भी महीनों तक कमजोरी, सांस फूलना, शरीर में दर्द, ब्रेन फॉग और थकान जैसे लक्षण बने रहते हैं, उनके खून में छोटे-छोटे थक्के यानी माइक्रोक्लॉट्स और इम्यून सिस्टम के खास बदलाव इसके पीछे बड़ी वजह हो सकते हैं। यह खोज भविष्य में इलाज की नई दिशा भी खोल सकती है। कोविड-19 महामारी भले ही अब नियंत्रण में दिखती हो, लेकिन दुनिया आज भी इसके दीर्घकालिक प्रभावों से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाई है। इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादातर लोग कुछ दिनों की बीमारी के बाद पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, लेकिन कई मरीज लंबे समय तक परेशान रहते हैं। अब तक इस स्थिति का सही कारण स्पष्ट नहीं था। लेकिन ताजा अध्ययन में दो मुख्य बदलावों की पहचान की गई है खून में मौजूद माइक्रोक्लॉट्स और व्हाइट ब्लड सेल्स के एक प्रकार न्यूट्रोफिल में होने वाले परिवर्तन। माइक्रोक्लॉट्स असामान्य क्लॉटिंग प्रोटीन के छोटे गुच्छे होते हैं, जो पहली बार कोविड मरीजों के खून में पाए गए थे। ये शरीर में सामान्य रक्त प्रवाह को बाधित कर सकते हैं और सूजन को बढ़ा सकते हैं। स्टडी के अनुसार, लॉन्ग कोविड मरीजों के न्यूट्रोफिल कोशिकाएं एक प्रक्रिया से गुजरती हैं, जिसमें वे अपना डीएनए बाहर निकालकर धागेनुमा जाल जैसी संरचनाएं बनाती हैं। इन्हें न्यूट्रोफिल एक्स्ट्रासेल्युलर ट्रैप्स (एनईटीएस) कहा जाता है। सामान्य परिस्थितियों में ये एनईटीएस शरीर को संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं, लेकिन लॉन्ग कोविड मरीजों में इनका अत्यधिक निर्माण स्थिति को जटिल बना देता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि माइक्रोक्लॉट्स और एनईटीएस के बीच होने वाला इंटरैक्शन शरीर में ऐसी प्रतिक्रियाओं की श्रृंखला शुरू कर देता है, जो अंत में लॉन्ग कोविड के लक्षण पैदा कर सकती हैं। अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि लॉन्ग कोविड मरीजों के प्लाज्मा में माइक्रोक्लॉट्स और एनईटीएस दोनों की मात्रा स्वस्थ लोगों की तुलना में काफी अधिक थी। यहां तक कि इनके माइक्रोक्लॉट्स आकार में भी बड़े पाए गए। रिसर्चर रिसिया प्रिटोरियस ने बताया कि माइक्रोक्लॉट्स एनईटीएस के अत्यधिक निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे सूजन बढ़ती है और खून के थक्के आसानी से नहीं टूटते। इससे ये थक्के लंबे समय तक खून में बने रहते हैं और रक्त वाहिकाओं से जुड़ी समस्याएं बढ़ जाती हैं। सुदामा/ईएमएस 25 नवंबर 2025