बीजिंग,(ईएमएस)। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ताइवान को लेकर चीन और जापान के बीच तनाव इतना बढ़ चुका है कि युद्ध की आहट साफ सुनाई देने लगी है। नवंबर 2025 में यह विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया है, जहां चीन ने जापान के रुख को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की वैश्विक व्यवस्था के लिए खतरा बताया है। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मध्यस्थता में जुटे हैं, लेकिन उनकी चुप्पी ने भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। हाल ही में जापान यात्रा के दौरान ट्रंप ने नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री साने ताकाइची की खुलकर तारीफ की थी, मगर ताइवान मुद्दे पर चीन-जापान आमने-सामने आते ही ट्रंप ताइवान का नाम तक लेने से कतरा रहे हैं। सोमवार को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ट्रंप के बीच फोन पर हुई बातचीत ने इस विवाद को वैश्विक चिंता का विषय बना दिया। दोनों नेताओं ने अक्टूबर में दक्षिण कोरिया के बुसान में हुए एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग सम्मेलन की सहमति को दोहराया और कहा कि चीन-अमेरिका संबंध स्थिर व सकारात्मक दिशा में हैं। बातचीत का केंद्र ताइवान ही रहा। शी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ताइवान का चीन में विलय द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में बनी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का अभिन्न अंग है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अमेरिका और चीन ने फासीवाद व सैन्यवाद के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी थी, इसलिए अब भी द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामों की रक्षा करनी चाहिए। ट्रंप ने इस पर सहमति जताई और कहा कि अमेरिका ताइवान के मुद्दे पर चीन की संवेदनशीलता को समझता है। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में चीन की भूमिका को भी महत्वपूर्ण बताया। चीनी विदेश मंत्रालय के अनुसार, ट्रंप ने शी को महान नेता कहा और बुसान बैठक को सकारात्मक बताया। दुनिया की नजरें जापान पर टिकी हैं, जहां नवंबर 2025 में सत्ता संभालने वाली प्रधानमंत्री साने ताकाइची ने ताइवान को लेकर अभूतपूर्व सख्त रुख अपनाया। 7 नवंबर को संसद में ताकाइची ने कहा कि यदि चीन ताइवान पर नौसैनिक नाकाबंदी या आक्रमण करता है, तो यह जापान के लिए जीवन-मरण का संकट होगा। यह शब्द जापानी कानून में महत्वपूर्ण हैं, जो स्व-रक्षा बलों को विदेश में तैनाती की अनुमति देते हैं। ताकाइची ने अमेरिका-जापान सुरक्षा संधि के तहत जापान की भूमिका पर भी जोर दिया, जो ताइवान की निकटता (जापान के दक्षिणी द्वीपों से मात्र 110 किमी) को देखते हुए सैन्य हस्तक्षेप का संकेत देता है। यह जापान का द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे मजबूत बयान है। ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने ताकाइची के बयान का स्वागत किया और कहा कि यह पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के ताइवान संकट जापान संकट है के सिद्धांत से मेल खाता है। चीनी मीडिया और विशेषज्ञों ने ताकाइची के बयान को एशियाई सुरक्षा के लिए खतरा बताया। वे कहते हैं कि ताइवान को केवल क्षेत्रीय मुद्दा बताकर जापान द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की व्यवस्था और वन चाइना सिद्धांत को चुनौती दे रहा है, जिसे अमेरिका ने 1979 में स्वीकार किया था। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि ताकाइची का बयान चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन। 19 नवंबर को चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने इसे रेड लाइन पार करने वाला बताया। चीनी राज्य मीडिया ने कठोर भाषा का सहारा लिया एक राजनयिक ने कहा कि जापानी सैन्यवादियों की गर्दन काटने के लिए चीन का तलवार तैयार है। एक अन्य संपादकीय में दावा किया गया कि जापान को खत्म करना चीन के 72 परमाणु बमों का खेल मात्र है। वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने ताइवान जलडमरूमध्य में मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें तैनात कर दी हैं, जो 200 किलोटन वारहेड ले जा सकती हैं। वीरेंद्र/ईएमएस 27 नवंबर 2025