कोलकाता,(ईएमएस)। पश्चिम बंगाल की मौजूदा मतदाता सूची में करीब 26 लाख मतदाताओं के नाम 2002-2006 के बीच तैयार पुरानी सूचियों से मेल नहीं खा रहे हैं। निर्वाचन आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) के तहत जब नए फॉर्मों की मैपिंग पुराने रिकॉर्ड से की गई, तो इतनी बड़ी संख्या में विसंगति सामने आई। अभी तक राज्य में छह करोड़ से ज्यादा गणना प्रपत्र पोर्टल पर अपलोड हो चुके हैं, लेकिन 26 लाख नाम अभी भी पुराने डेटा से मैच नहीं कर पा रहे हैं। इस खुलासे ने राजनीतिक तापमान और बढ़ा दिया है। मंगलवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नॉर्थ 24 परगना के बोंगांव में एसआईआर के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया। बोंगांव से ठाकुरनगर तक तीन किलोमीटर लंबा विरोध मार्च निकालते हुए उन्होंने चुनाव आयोग को भाजपा का कमीशन करार दिया। ममता ने सवाल उठाया कि क्या वोटर लिस्ट अब भाजपा दफ्तर से बन रही है? उन्होंने इसे 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले बंगाल के असली मतदाताओं को वोट देने से रोकने की सुनियोजित साजिश बताया। तृणमूल सुप्रीमो ने कहा कि एसआईआर को बंगाल में चुनिंदा तरीके से और दबाव डालकर लागू किया जा रहा है, जबकि भाजपा शासित असम में अगले साल चुनाव होने के बावजूद वहां यह अभियान नहीं चल रहा। हजारों कार्यकर्ताओं के साथ मार्च में नारे लगाते हुए ममता ने चेतावनी दी कि बंगाल का लोकतांत्रिक ताना-बाना बचाने के लिए वे किसी भी हद तक लड़ेंगी। चुनाव आयोग के अधिकारी इसे तकनीकी प्रक्रिया बता रहे हैं, लेकिन तृणमूल कांग्रेस इसे राजनीतिक षड्यंत्र मान रही है। पार्टी का दावा है कि मतदाता सूची से लाखों बंगाली-भाषी और अल्पसंख्यक मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं। दूसरी तरफ आयोग का कहना है कि पुराने और नए डेटा की मैपिंग पूरी होने के बाद ही सही स्थिति स्पष्ट होगी। बंगाल में चल रहा यह विवाद अब राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक जंग बनता दिख रहा है। एक तरफ चुनाव आयोग पारदर्शिता का दावा कर रहा है, तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी इसे लोकतंत्र पर हमला बता रही हैं। वीरेंद्र/ईएमएस/27नवंबर2025