अंतर्राष्ट्रीय
28-Nov-2025
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वॉशिंगटन (ईएमएस)। ब्रिटेन के ब्रैडफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता माइकल क्रॉउली और मैल्कम डैंडो का कहना है कि अत्याधुनिक विज्ञान और तकनीक इंसानी दिमाग को नया युद्धक्षेत्र बना सकती है। उनका दावा है कि आने वाले समय में दुश्मन बिना गोली चलाए किसी व्यक्ति की सोच, याददाश्त, भावनाओं और निर्णय क्षमता को अपने हिसाब से प्रभावित कर सकता है। दोनों विशेषज्ञ इस हफ्ते द हेग में होने वाली केमिकल वैपन्स कन्वर्जन की बैठक में दुनियाभर के देशों को चेताने वाले हैं कि दिमाग को प्रभावित करने वाली तकनीकों की रफ्तार इतनी तेज है कि अगर आज कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में इसका खतरनाक दुरुपयोग संभव है। उनका कहना है कि यह भले ही किसी विज्ञान-फंतासी फिल्म जैसा लगे, लेकिन खतरा बिल्कुल वास्तविक है और बेहद निकट है। शोधकर्ताओं के अनुसार तीन प्रमुख क्षेत्रों दिमाग का विज्ञान, दवाओं का विज्ञान और कंप्यूटर आधारित निगरानी तकनीक के तेजी से आगे बढ़ने से ऐसे साधन तैयार हो रहे हैं जो सीधे इंसानी दिमाग को प्रभावित कर सकते हैं। इन तकनीकों की मदद से किसी व्यक्ति को भ्रमित करना, बेहोश करना, डर पैदा करना या उसकी मानसिक क्षमता को दबाना संभव हो सकता है। ठंडे युद्ध के समय अमेरिका, सोवियत संघ और चीन जैसे देशों ने पहले भी ऐसे रसायन विकसित किए थे जो व्यक्ति को लंबे समय तक असहाय कर सकते थे। 2002 के मॉस्को थिएटर हमले में रूस द्वारा फेंटानायल डेरीवाटिव्स के प्रयोग से 120 से ज्यादा लोगों की मौत हो जाना इसका बड़ा उदाहरण है। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में दिमागी बीमारियों का इलाज करने वाली तकनीकें गलत हाथों में खतरनाक हथियार बन सकती हैं। ये तकनीकें किसी की सोच बदलने, उसे मजबूर करने या अनजाने में उससे काम करवाने तक का माध्यम बन सकती हैं। यह स्थिति न केवल सुरक्षा बल्कि नैतिकता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करती है। शोधकर्ता चेतावनी दे रहे हैं कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानून इन उभरती तकनीकों को रोकने में सक्षम नहीं हैं। केमिकल वैपन्स कन्वर्जन दिमाग पर असर डालने वाले सभी रसायनों पर पूरी तरह रोक नहीं लगाता और न ही नई दिमागी तकनीकों पर पर्याप्त वैश्विक निगरानी है। उनके अनुसार वैज्ञानिकों के लिए जिम्मेदारी तय करने वाले नियम भी काफी कमजोर हैं। इसी के मद्देनजर उन्होंने सुझाव दिया है कि दिमाग पर असर डालने वाले रसायनों के लिए अलग अंतरराष्ट्रीय समूह बनाया जाए, वैज्ञानिकों को अनिवार्य नैतिक प्रशिक्षण दिया जाए और सभी देशों में दिमागी अनुसंधान पर सख्त निगरानी लागू की जाए। साथ ही “ब्रेन वेपन” की स्पष्ट परिभाषा और नियंत्रण आवश्यक बताया गया है। बता दें कि दुनिया तेजी से बदल रही है और इसके साथ युद्धों का स्वरूप भी। जहां कभी लड़ाइयां बंदूकों, मिसाइलों और गोला-बारूद से तय होती थीं, अब विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि भविष्य का युद्ध इंसानी दिमाग पर लड़ा जा सकता है। सुदामा/ईएमएस 28 नवंबर 2025